हाल ही में, आइसलैंड की महिलाओं ने एक दिवसीय हड़ताल की. इन हड़ताली महिलाओं में प्रधान मंत्री कैटरीन जैकब्सडॉटिर भी शामिल थीं. यह हड़ताल महिलाओं ने लिंग भेदभाव के विरोध में की थी. दिलचस्प बात यह है कि आइसलैंड को दुनिया का सबसे ज्यादा लिंग-समान देश कहा जाता है.
लगातार 14 सालों से, आइसलैंड विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लिंग अंतर रैंकिंग में टॉप पर है. ऐसे में सवाल है कि यहां की महिलाएं असमानता का विरोध क्यों कर रही हैं? और इस हड़ताल में प्रधानमंत्री क्यों शामिल हो रही हैं.
इक्वलिटी के मामले में टॉप पर है आइसलैंड
आइसलैंड उत्तरी अटलांटिक महासागर में स्थित एक यूरोपीय द्वीप राष्ट्र है, जिसकी आबादी 4 लाख से कम है. यहां की महिलाओं ने कार्यबल में प्रतिनिधित्व और समानता के अधिकार का समर्थन करने वाले कानून के मामले में काफी प्रगति की है. इनमें से कई फायदे 24 अक्टूबर, 1975 को मनाए गए राष्ट्रव्यापी 'महिला दिवस अवकाश' (Women's Day Off) के बाद आए.
लेकिन आज 48 साल बाद, दो प्रमुख सेक्टर बने हुए हैं - वेतन अंतर और लिंग आधारित हिंसा. द गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ व्यवसायों में आइसलैंड की महिलाएं अभी भी पुरुषों की तुलना में 21% कम कमाती हैं, और 40% से ज्यादा महिलाएं लिंग-आधारित या सेक्सुअल हिंसा का अनुभव किया है.
क्या है इस हड़ताल का उद्देश्य
इस हड़ताल को "कल्लारू ज़ेट्टा जाफ़नरेती?" (आप इसे समानता कहते हैं?) कहा जाता है. इसे श्रमिक संघ संचालित करते है और यह हड़ताल साल 1975 की कार्रवाई से प्रेरित है. महिलाओं ने घरेलू कामकाज और बच्चों की देखभाल सहित वेतन और अवैतनिक सभी प्रकार के काम करने से इनकार कर दिया. प्रधान मंत्री, जैकब्सडॉटिर ने भी कहा कि वह उस दिन काम नहीं करेंगी, और उम्मीद करती हैं कि उनकी महिला सहकर्मी भी काम से दूर रहेंगी.
हड़ताल में शामिल एक्टिविस्ट ने कहा कि महिलाओं को कम वेतन मिलना और लिंग आधारित हिंसा का मुद्दा दोनों एक ही तरह की सोच से उपजे हैं, जो महिलाओं को कमतर आंकते हैं. लिंग वेतन अंतर की समस्या - महिलाओं को समान योग्यता वाले समान काम के लिए पुरुषों की तुलना में कम भुगतान किया जाता है - 2018 के कानून के बावजूद बनी हुई है. इसके लिए कंपनियों और सरकारी एजेंसियों को यह साबित करने की जरूरत है कि वे पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से भुगतान कर रहे हैं.
वर्क प्रोफाइल में महिलाओं का ज्यादा वर्चस्व होता है, जैसे केयर वर्क और हॉस्पिटेलिटी में कम भुगतान किया जाता है. प्रवासी महिलाओं को और भी कम भुगतान किया जाता है. इस प्रकार, इस हड़ताल का उद्देश्य सामाजिक मानसिकता को बदलना है.
48 साल पहले की हड़ताल ने बदला बहुत-कुछ
1975 के बाद से महिलाएं कई घंटों तक हड़ताल कर चुकी हैं, लेकिन यह पहली बार था कि पूरे दिन की हड़ताल की गई है. 1975 में डे ऑफ में द्वीप की लगभग 90% कामकाजी महिलाओं की भागीदारी थी. एनवाईटी के अनुसार, उस दिन स्कूल और थिएटर बंद कर दिए गए, और राष्ट्रीय एयरलाइन को उड़ानें रद्द करनी पड़ीं क्योंकि ज्यादातर फ्लाइट अटेंडेंट महिलाएं थीं.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि बैंकों, कारखानों और कुछ दुकानों को बंद करना पड़ा, साथ ही स्कूलों और नर्सरी को भी बंद करना पड़ा - जिससे कई पिताओं के पास अपने बच्चों को काम पर ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था. ऐसी खबरें थीं कि पुरुष अपने वर्कस्पेस पर बच्चों मैनेज करने में परेशानियां झेल रहे थे. इसके एक साल बाद, 1976 में, आइसलैंड ने समान अधिकार देने वाला एक कानून पारित किया जिसमें लिंग का कोई आधार नहीं है.