नई तकनीक का कमाल! पहली बार किसी महिला का AIDS का इलाज कामयाब

इससे पहले एचआईवी से ठीक होने वाले दो मरीज के मामले सामने आए हैं. पहला मामला एक मामला श्वेत पुरुष का था जबकि दूसरा एक दक्षिण अमेरिकी मूल के पुरुष का. इन दोनों का भी स्टेमसेल ट्रांसप्लांट हुआ था. अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी की अध्यक्ष शैरन लेविन ने एक बयान में इस एकस्पेरिमेंट की कामयाबी पर खुशी जाहिर की है.

स्टेम सेल थेरेपी ने दिलाई एचआईवी वायरस से निजात
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 16 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 6:52 PM IST
  • पहली बार किसी महिला के AIDS का कामयाब इलाज किया गया है.
  • इस महिला का इलाज स्टेमसेल ट्रांसप्लांट जरिए हुआ है

अमेरिका में डॉक्टरों ने एचआईवी AIDS पीड़ित एक महिला को पूरी तरह से ठीक कर दिया है. इस महिला का इलाज स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के जरिए हुआ है. इस स्टेमसेल को एक ऐसे व्यक्ति ने डोनेट किया था जिसके अंदर एचआईवी वायरस के खिलाफ नेचुरल एंटीबॉडी थी. एड्स से ठीक होने वाली अधेड़ उम्र की ये महिला श्वेत-अश्वेत माता पिता की संतान है. बता दें कि इस मामले में शोधकर्ताओं ने जो तरीका अपनाया है वो पहले कभी नहीं अपनाया गया था. अच्छी बात ये है कि यह तरीका ज्यादा लोगों को फायदा पहुंचा सकता है. 

डॉक्टरों ने पहली बार गर्भनाल के खून का इस्तेमाल महिला के ल्युकेमिया का इलाज करने के लिए किया. ल्युकेमिया के इलाज के बाद महिला 14 महीने पूरी तरह से ठीक है और उसे एचआईवी के लिए भी दवाओं की जरूरत नहीं पड़ी है.

पहली बार हुआ महिला का इलाज

ऐसा पहली बार है जब किसी महिला के एड्स का कामयाब इलाज किया गया है. इससे पहले एचआईवी से ठीक होने वाले दो मरीज के मामले सामने आए हैं. पहला मामला एक मामला श्वेत पुरुष का था जबकि दूसरा एक दक्षिण अमेरिकी मूल के पुरुष का. इन दोनों का भी स्टेमसेल ट्रांसप्लांट हुआ था.अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी की अध्यक्ष शैरन लेविन ने एक बयान में इस एकस्पेरिमेंट की कामयाबी पर खुशी जाहिर की है. यह इलाज एक खास अध्ययन के तहत किया गया है. इस अध्ययन का मकसद एचआईवी से जूझ रहे 25 लोगों का स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के जरिए कैंसर या कई गंभीर बीमारियों का इलाज करना है.

कैसे हुआ इलाज?

सबसे पहले ट्रायल में हिस्सा लेने वाले मरीज की कीमोथेरेपी की जाती है ताकि कैंसर कोशिकाओं को जड़ से खत्म किया जा सके. उसके बाद डॉक्टर विशेष जेनेटिक म्यूटेशन वाले व्यक्ति से स्टेमसेल लेकर उसे मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट करते हैं. रिसर्चर का मानना है कि इस ट्रांसप्लांट के बाद मरीजों में एचआईवी से लड़ने के ल‍िए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है. 

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एक एड्स विशेषज्ञ डॉ स्टीवन डीक्स के मुताबिक एचआईवी पीड़ित ज्यादातर लोगों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट बेहतर रिजल्ट नहीं देता है. उन्होंने कहा, "रिपोर्ट बताती है कि एचआईवी का इलाज मुमकिन है और आगे चल कर जीन थेरेपी एचआईवी के इलाज के लिए  कारगर साबित होगी. 


 

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