दुनियाभर में COVID-19 के मामले सोमवार को 250 मिलियन को पार कर गए. पूर्वी यूरोप के कुछ देशों में रिकॉर्ड आउटब्रेक के चलते दुनियाभर में महामारी से संक्रमित लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई. रॉयटर्स के विश्लेषण के अनुसार, पिछले तीन महीनों में मामलों की दैनिक औसत संख्या में 36% की गिरावट आई है. लेकिन डेल्टा वैरिएंट के कारण वायरस अभी भी हर 90 दिनों में दुनिया भर में 50 मिलियन लोगों को संक्रमित कर रहा है.
यूरोप में मामलों में जबरदस्त उछाल
इसके विपरीत, पहले 50 मिलियन COVID-19 मामलों को दर्ज करने में लगभग एक साल का समय लगा था. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि कई देशों ने टीकों और नैचुरल इम्यूनिटी की बदौलत महामारी को कंट्रोल में रखा है. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि ठंड के मौसम और आगामी त्योहारों के चलते मामले बढ़ सकते हैं. विश्लेषण के अनुसार, महामारी शुरू होने के बाद से रूस, यूक्रेन और ग्रीस के साथ, करीब 240 देशों में संक्रमण अभी भी बढ़ रहा है. पूर्वी यूरोप में इस क्षेत्र में सबसे कम टीकाकरण दर है. विश्लेषण के अनुसार, दुनिया भर में रिपोर्ट किए गए सभी नए संक्रमणों में से आधे से अधिक यूरोप के देशों से थे. वहां हर चार दिनों में एक लाख नए संक्रमण के मामले सामने आए.
महामारी से 50.4 लाख से ज्यादा लोगों की मौत
दुनियाभर में इस महामारी से अब तक कुल 50.4 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी हैं जबकि 7.24 अरब से ज्यादा का वैक्सीनेशन हुआ है. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के रविवार सुबह शेयर किए गए अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने बताया कि वर्तमान में कोरोना के कुल 250,610,452,5,048,865 वैश्विक मामले हैं. महामारी से मरने वालों की कुल संख्या दुनियभार में 7,246,604,164 हो गई है.
दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी को वैक्सीन की एक भी खुराक नहीं
रूस में बीमारी के कारण रिकॉर्ड मौतें हुई हैं. सोमवार को रूस ने 39,400 नए कोविड मामले दर्ज किए, जिनमें अकेले मॉस्को में लगभग 5,000 केस सामने आए. जर्मनी में भी टीकाकरण के बावजूद, महामारी की शुरुआत के बाद से संक्रमण दर अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है . इसके विपरीत, जापान ने एक साल से अधिक समय में पहली बार रविवार को कोरोना से कोई दैनिक मौत दर्ज नहीं की गयी. आंकड़ों के अनुसार, दुनिया की आधी से अधिक आबादी को अभी तक COVID-19 वैक्सीन की एक भी खुराक नहीं मिली है, यह आंकड़ा कम आय वाले देशों में 5% से भी कम है.
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