प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के मॉरीशस दौरे पर हैं. मॉरीशस में 'गीत गवई' से पीएम मोदी का स्वागत किया गया. यह लोकप्रिय लोकगीत बिहार में है. लेकिन मॉरीशस में काफी पॉपुलर है. इस देश में भारतीय मूल की अच्छी-खासी आबादी रहती है. इसमें से बिहारी मूल के लोगों की संख्या ठीक-ठाक है. 191 साल पहले अंग्रेज 36 भारतीयों को मॉरीशस ले गए थे. ये सभी लोग बिहार से थे.
पहली बार बिहार से गए थे 36 लोग-
191 साल पहली बार 36 भारतीय मजदूरों को मॉरीशस ले जाया गया था. इनको गिरमिटिया मजदूर कहा जाता था. 10 सितंबर 1834 को कोलकाता से एटलस नाम के जहाज से 36 मजदूरों को मॉरीशस ले जाया गया था. 53 दिनों के सफर के बाद ये जहाज 2 नवंबर को मॉरीशस पहुंचा था. ये सभी मजदूर बिहार के थे, लेकिन ये कोलकाता में काम करते थे.
मॉरीशस क्यों ले जाए गए थे बिहारी-
18वीं सदी में भारत में अकाल और भूखमरी के चलते करीब 3 करोड़ लोगों की जान चली गई थी. देश में गरीबी को देखते हुए अंग्रेजों एक प्रयोग किया. इसको द ग्रेट एक्सपेरिमेंट नाम दिया गया. अंग्रेजों ने कर्ज के बदले मजदूरों को दूसरी जगह काम करने का लालच दिया. अंग्रेजों के मुताबिक जो भी बधुआ मजदूरी के लिए मान जाता था, उसका कर्ज माफ कर दिया था. इस तरह से अंग्रेज भारतीय लोगों को मॉरीशस ले गए.
जिस घाट पर पहली बार भारतीय मजदूर उतरे थे तो उसे आज अप्रवासी घाट कहा जाता है. इसकी याद में 2 नवंबर को मॉरीशस में अप्रवासी दिवस मनाया जाता है.
मॉरीशस में भारतीय गिरमिटिया कहलाए-
उस समय अंग्रेजों को चाय और कॉफी का शौक था. इसमें चीनी का इस्तेमाल होता था. इसके लिए गन्ने की जरूरत थी और कैरिबियन द्वीपों पर इसकी खेती के लिए अंग्रेज भारतीयों को मॉरीशस ले गए.
शुरुआत में अंग्रेजों ने 5 साल नौकरी का ऑफर दिया. पुरुषों को 5 रुपए महीने और महिलाओं को 4 रुपए महीने सैलरी दी गई. इसके लिए एग्राीमेंट साइन कराया गया. इसे भारतीय गिरमिट कहा जाता था और साइन करने वाले लोगों को गिरमिटिया कहा जाता था.
क्या था गिरमिट एग्रीमेंट-
इस एग्रीमेंट के तहत भारतीय मजदूरों को 5 साल के लिए ले जाया जाता था. उसके बाद उनको वापस भेजने का वादा किया गया था. हालांकि कभी भारतीयों को आने नहीं दिया गया. हालांकि कुछ समय बाद में इस नियम को बदल दिया गया. साल 1860 में एग्रीमेंट में घर वापस आने का नियम हटा दिया गया था.
शुरुआत में मजदूरों के साथ अमावीय व्यवहार किया जाता था. उनको समय पर मजदूरी भी नहीं मिलती थी. इसके साथ ही उनको ठीक से खाना भी नहीं मिलता था.
हालांकि बाद में उनकी स्थिति में बदलाव आया. साल 1878 में लेबर लॉ पास किया गया. जिसके बाद समय पर सैलरी मिलने लगी. इसके बाद मजदूर एकजुट हुए और अपनी लड़ाई लड़ने लगे. साल 1917 में मॉरीशस में आंदोलन होने लगे तो भारतीयों को वापस भेजने का फैसला किया गया. लेकिन भारतीय लोगों ने वापस आने से इनकार कर दिया.