इजरायल और हमास का एक युद्ध वो है जो सबके सामने है. वहीं दूसरा वो है जो इंटरनल चल रहा है. दुनिया भर के हैक्टिविस्ट इस जंग में शामिल हो गए हैं. इन हैक्टिविस्टों ने इजरायली और फिलिस्तीनी दोनों वेबसाइटों और एप्लिकेशन पर साइबर हमले शुरू कर दिए हैं. उन्होंने सरकारी वेबसाइटों, मीडिया आउटलेट्स को भी खत्म करना शुरू कर दिया है. इन सब चीजों को ऑफलाइन करने के प्रयास में जंक ट्रैफिक के साथ टारगेट को ओवरलोड करने के लिए DDoS अटैक का उपयोग किया है. कुछ ग्रुप्स ने तो डेटा चोरी करने, इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर को टारगेट करने और रेड अलर्ट के नाम से जानी जाने वाली इजरायली मिसाइल अलर्ट सर्विस तक को हैक करने का दावा किया है.
बदल रहा है लड़ाई का तरीका
दरअसल, जैसे-जैसे डिजिटल तकनीक बदल रही है वैसे-वैसे लड़ाई करने का तरीका बदलता जा रहा है. बढ़ती संख्या में नागरिक डिजिटल माध्यमों से इन लड़ाई में शामिल हो रहे हैं. जिन देशों में युद्ध हो रहा है, के साथ बाहर से कुछ दूरी पर बैठे हुए, नागरिक - जिनमें हैक्टिविस्ट से लेकर साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट, व्हाइट हैट, ब्लैक हैट हैकर्स शामिल हैं - उनके खिलाफ कई तरह के साइबर ऑपरेशन चला रहे हैं.
हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि सिविलियन हैकर किसी जंग में शामिल हो रहे हैं. इससे पहले यूक्रेन और रूस की जंग में भी उनका योगदान रहा है.
कैसे पहुंचा रहे हैं नुकसान?
आम नागरिक भी इस डिजिटल युद्ध में शामिल हो रहे हैं. ये सिविलियन हैकर्स जो साइबर ऑपरेशन चलाते हैं वो कई कारणों से चिंताजनक है. एक, वे नागरिक आबादी को नुकसान पहुंचाते हैं, या फिर आम नागरिकों से जुड़ी चीजों को सीधे निशाना बनाकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं. वे बैंकों से लेकर कंपनियों, फार्मेसियों, अस्पतालों, रेलवे नेटवर्क और नागरिक सरकारी सेवाओं सहित चीजों को भी बाधित कर देते हैं.
दो, सिविलियन हैकर्स खुद को और अपने आसपास के लोगों को भी मिलिट्री ऑपरेशन के सामने उजागर करने का जोखिम उठाते हैं. ये सीधे तौर पर दुश्मनी लेना है. इसका मतलब यह है कि वे जिन कंप्यूटरों और डिजिटल बुनियादी ढांचे का उपयोग करते हैं, उन पर हमला होने का खतरा हमेशा बना रहता है. कई मामलों में तो हैकर कहां बैठता है, उन पर गोली, मिसाइल या साइबर ऑपरेशन द्वारा हमला किया जा सकता है.
तीन, जब अधिक नागरिक इस साइबर युद्ध में भाग लेते हैं, तो कौन सिविलियन है और कौन लड़ाकू हैं, इसके बीच की रेखा उतनी ही धुंधली होती जाती है. परिणामस्वरूप, बेकसूर नागरिकों को इससे नुकसान पहुचंता है.
क्या कहते हैं नियम?
इंटरनेशनल ह्यूमैनिटेरियन 'हैकिंग' को प्रतिबंधित नहीं करता है. लेकिन इससे जुड़े कुछ नियम हैं. जैसे सिविलियन हैकर्स साइबर के माध्यम से युद्ध में जुड़ते हैं ऐसे में उन पर आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है. हालांकि, IHL के तहत, नागरिकों पर तब तक हमला नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि वे सीधे इस लड़ाई में भाग न लें. इससे जुड़े कुछ नियम हैं-
1. वो सिविलियन चीजें जिनका कोई सैन्य उद्देश्य नहीं हैं, इसमें सिविलियन इंफ्रास्ट्रक्चर, पब्लिक सर्विस, कंपनियां, निजी संपत्ति और सिविलियन डेटा शामिल हैं.
2. ऐसे मैलवेयर या दूसरे उपकरण या तकनीकों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए जो ऑटोमेटिक तरीके से फैलती हैं. उदाहरण के लिए, मैलवेयर जो ऑटोमैटिक रूप से फैलता है, और सैन्य उद्देश्यों से जुड़ी चीजों सहित नागरिकों से जुड़ी वस्तुओं को नुकसान पहुंचाता है, उसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए.
3. किसी सैन्य उद्देश्य के खिलाफ साइबर हमले की योजना बनाते समय, आपके ऑपरेशन के नागरिकों पर पड़ने वाले प्रभावों से बचने या कम करने के लिए हर संभव प्रयास करें.
4. चिकित्सा और मानवीय सुविधाओं के खिलाफ कोई साइबर ऑपरेशन न करें. अस्पतालों या मानवीय राहत संगठनों को कभी भी निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए.
5. आबादी के अस्तित्व को जिससे नुकसान हो ऐसी वस्तुओं के खिलाफ कोई साइबर हमला न करें.
6. नागरिकों में आतंक फैलाने के लिए हिंसा की धमकियाँ न दें.
7. अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के उल्लंघन को न भड़काएं.
8. इन सभी नियमों को फॉलो किया जाना चाहिए चाहे दुश्मन इन्हें फॉलो कर रहा हो या नहीं.