इराक में सत्ता का संघर्ष बढ़ता जा रहा है. प्रभावशाली शिया मौलवी मुक्तदा सदर और ईरान समर्थित शिया प्रतिद्वंदियों के बीच संघर्ष तेज हो गया है. मौलवी समर्थक ईरान समर्थित गठबंधन के पीएम उम्मीदवार मोहम्मद शिया अल-सुदानी का विरोध कर रहे हैं. सैकड़ों मौलवी समर्थक प्रदर्शनकारी संसद में घुस गए. दरअसल शिया समुदाय में अगली सरकार बनाने को लेकर संघर्ष चल रहा है. जिससे शिया समुदाय में दरार आ गई है. चलिए आपको बताते हैं कि इस प्रतिद्वंदिता के पीछे की क्या वजह है और ईराक के लिए इसका क्या मतलब है.
कौन है मुक्तदा सदर-
मुक्तदा सदर एक पॉपुलर मौलवी वंश से आते हैं. जिनका अपना एक समर्थक वर्ग है. सदर का एक कट्टरपंथी ट्रैक रिकॉर्ड है. जिसमें अमेरिकी सेना से लड़ाई और इराकी अधिकारियों के साथ लड़ाई भी शामिल है. मुक्तदा सदर ने एक शक्तिशाली मिलिशिया मेहदी सेना की कमान भी संभाली थी. हालांकि साल 2008 में इस सेना को भंग कर दिया गया. इराक में उनका दबदबा है. कई अहम पदों पर उनके समर्थकों का कब्जा है. हाल के कुछ वर्षों में मुक्तदा अल सदर ने अमेरिका और ईरान दोनों का विरोध किया है और इराक की जनता में खुद को एक राष्ट्रवादी की तौर पर मजबूत किया है.
क्या है कोऑर्डिनेशन फ्रेमवर्क गठबंधन-
मुक्तदा अल सदर के विरोध में शिया प्रतिद्वंदियों ने कोऑर्डिनेशन फ्रेमवर्क नाम का गठबंधन बनाया है. जिसमें ईरान के समर्थन वाले लीडर जैसे पूर्व पीएम नूरी अल मलिकी शामिल हैं. इसके अलावा इस गठबंधन में वैसे अर्धसैनिक समूह शामिल हैं, जिनको ईरान ने ट्रेनिंग दी है. इनमें से कई का संबंध इराक-ईरान युद्ध के वक्त से तेहरान के साथ है. उस वक्त सत्ता में सद्दाम हुसैन थे और ईरान ने शिया विद्रोहियों का समर्थन किया था.
दोनों गुटों में तनाव क्यों बढ़ा-
दोनों गुटों में तनाव बढ़ने की वजह चुनाव नतीजे हैं. दरअसल अक्टूबर में चुनाव हुए. जिसमें मुक्तदा सदर को 74 सीटों पर जीत मिली थी. 329 सीटों वाली संसद में सदर ने सबसे ज्यादा सीटें जीती. जबकि ईरान समर्थित गुट का सिर्फ 17 सीट ही जीत सकता. इससे पहले के चुनाव में ईरान समर्थित गठबंधन ने 48 सीटें जीती थीं. इसके बाद मुक्तदा सदर ने- कुर्द और सुन्नी अरब सहयोगियों के साथ सरकार बनाने की कोशिश की. लेकिन उसमें उनको सफलता नहीं मिली. इसके बाद सदर ने अपने सांसदों को जून में संसद छोड़ने के लिए कह दिया.
सदर के इस फैसले ने कोऑर्डिनेशन फ्रेमवर्क गठबंधन को सरकार बनाने का रास्ता खोल दिया. इसके बाद सदर के विरोधी मलिकी ने प्रधानमंत्री बनाने के लिए खुद का नाम आगे किया. लेकिन जब सदर ने उनका विरोध किया तो मलिकी ने अपना कदम पीछे खींच लिया. इसके बाद विरोधियों ने मोहम्मद शिया अल सुदानी को उम्मीदवार बनाया. सुदानी को सदर समर्थकों ने मलिकी का वफादार के तौर पर देखने लगे. इसके बाद तनाव और बढ़ गया.
राजनीतिक गतिरोध का जनता पर असर-
इराक में 9 महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है, जहां बिना सरकार के कामकाज चल रहा है. सद्दाम हुसैन के कार्यकाल के बाद ये एक रिकॉर्ड है. इस वक्त कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने इराक के राजस्व को रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा दिया है. लेकिन इसके बावजूद साल 2022 के लिए सरकार के पास कोई बजट नहीं है. जिसकी वजह से जरूरी बुनियादी सुविधाओं और आर्थिक सुधारों में देरी हो रही है.
लोगों को समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. बिजली की कटौती आम हो गई है. पानी की सप्लाई में समस्या आ रही है. विश्व खाद्य कार्यक्रम के मुताबिक 39 मिलियन आबादी में से 2.4 मिलियन लोगों को खाना और आजीविका सहायता की जरूरत है. राजनीतिक उठापटक की वजह से खाद्य कीमतों, सूखे और इस्लामिक स्टेट के खतरे की तरफ कोई ध्यान नहीं जा रहा है.
क्या फिर हिंसा की आग में जलेगा इराक-
संयुक्त राष्ट्र ने तनाव कम करने का आह्वान किया है. इराकी नेताओं ने भी शांति बनाए रखने की अपील कर रहे हैं. मुक्तदा सदर ने शांतिपूर्ण राजनीतिक कदम की कसम खाई है. लेकिन उनको सशस्त्र पीस ब्रिगेड का समर्थन है. इतना ही नहीं, हथियारबंद नागरिक भी सदर के समर्थन में हैं. अगर गतिरोध बढ़ता है तो सशस्त्र संघर्ष की आशंका बढ़ जाएगी. अगर इराक में सशस्त्र संघर्ष होता है तो ईरान के लिए भी बुरी खबर होगी. हालांकि ईरान ने अब तक इस घटना पर को टिप्पणी नहीं की है. लेकिन इससे पहले वो इराक में आंतरिक अशांति की हालत में हस्तक्षेप कर चुका है.
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