हिज्बुल्लाह प्रमुख सैयद हसन नसरल्लाह की हत्या के बाद इजराइल ने लेबनान में सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी है. एक तरफ जहां इजराइल लेबनान में कई जगहों पर हवाई हमले कर चुका है, वहीं इस सप्ताह की शुरुआत में उसने इस देश में जमीनी ऑपरेशन भी शुरू किया.
हालांकि यह पहली बार नहीं है कि इजराइल ने हिज्बुल्लाह के उकसाने पर लेबनान की सीमाओं में प्रवेश किया हो. साल 2006 (Lebanon War 2006) में भी हिज्बुल्लाह के एक हमले के बाद लेबनान में युद्ध शुरू हुआ था, जिसमें लेबनान के करीब 1200 लोग मारे गए थे. साल 2006 की इस जंग में क्या हुआ था, आइए डालते हैं एक नजर.
जब इजराइल से लड़ने के लिए हुआ हिज़्बुल्लाह का जन्म
जब इजराइल ने 1982 में लेबनान में पहली बार घुसपैठ की तो वहां के कुछ शिया मौलानाओं ने हिज़्बुल्लाह (Hezbollah) का गठन किया. हिज़्बुल्लाह का लक्ष्य था लेबनान से इजराइल को निकालना और वहां एक इस्लामिक गणराज्य स्थापित करना. लेबनान के शिया बहुल इलाकों में मौजूद हिज़्बुल्लाह को शुरू से ही ईरान का भी समर्थन प्राप्त रहा.
ब्रिटैनिका के अनुसार, अपने शुरुआती सालों में हिज़्बुल्लाह कथित तौर पर अपहरण और कार बम धमाकों जैसे आतंकवादी हमलों में शामिल रहा. ये हमले ज्यादातर पश्चिमी देशों से आने वाले लोगों के खिलाफ होते थे, हालांकि इस दौरान उसने अपने समर्थकों के लिए एक सामाजिक सेवा नेटवर्क भी तैयार किया.
अब बात करते हैं इजराइल के खिलाफ हिज्बुल्लाह के रवैये की. साल 1982 की घुसपैठ के बाद इजराइल ने दक्षिणी लेबनान (Southern Lebanon) में अपने पांव जमा लिए और 18 साल तक यहां अपनी सेना को मौजूद रखा. इस दौरान इजराइल ने लेबनान में कई छोटी नागरिक सेनाओं (Militias) को भी खड़ा किया.
हिज़्बुल्लाह ने इजराइल और उसके द्वारा खड़ी की गई सेनाओं के खिलाफ गोरिल्ला वॉरफेयर (Gorilla Warfare) की रणनीति अपनाकर लड़ाई की. सन् 2000 में इजराइल में प्रधानमंत्री एहुद बराक की सरकार आई तो उन्होंने लेबनान से इजराइली सेना को वापस बुलाने का फैसला किया. इजराइल के जाने के बाद तमाम नागरिक सेनाएं भी बिखर गईं और हिज़्बुल्लाह ने लेबनान में प्रसिद्धी हासिल कर ली. साथ ही इन 18 सालों ने हिज़्बुल्लाह और इजराइल के रिश्तों को भी परिभाषित कर दिया था.
फिर हिज़्बुल्लाह ने किया हमला
जब हिज़्बुल्लाह ने 12 जुलाई 2006 को इजराइल पर हमला किया तो उसका मकसद था इजराइली जेलों में बंद तीन लेबनानवासियों को घर वापस लाना. इस हमले में हिज़्बुल्लाह ने उत्तरी इजराइल पर बमबारी कर इजराइली सेना का ध्यान भटकाया. और दूसरी तरफ हिज़्बुल्लाह के कुछ लड़ाके इजराइल की सीमाओं में घुस गए.
अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट बताती है कि इस हमले में हिज़्बुल्लाह ने वसीम नज़ल, एयाल बेनिन और शनी तुर्गमैन नाम के तीन इजराइली सैनिकों को मार डाला था. एहुद गोल्डवैसर और एल्दाद रेगेव नाम दो इजराइली सैनिकों को बंदी बनाकर लेबनान लाया गया था. तत्कालीन हिज़्बुल्लाह चीफ नसरल्लाह (Nasrallah) को उम्मीद थी कि वह ऐसा करके इजराइल पर लेबनानवासियों को रिहा करने का दबाव बना पाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
इजराइल ने रात होते-होते लेबनान पर हमला बोल दिया. यह युद्ध 34 दिन तक चला. इजराइल ने शुरुआत से ही बड़े पैमाने पर हवाई अभियान चलाया. बेरूत में हिज़्बुल्लाह हेडक्वार्टर और रॉकेट भंडार पर हमला करने के अलावा बेरूत हवाई अड्डे, सड़कों और पुलों जैसे बुनियादी ढांचे को भी निशाना बनाया गया.
इस युद्ध में दक्षिणी लेबनान के बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान तो पहुंचा ही, साथ ही बड़ी संख्या में लोग भी विस्थापित हुए. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस युद्ध में इजराइल के पांच लाख जबकि लेबनान के करीब 10 लाख लोग विस्थापित हुए. इसके अलावा लेबनान के करीब 1200 लोगों की मौत हुई, जिनमें से ज्यादातर नागरिक थे. इजराइल के 116 सैनिकों और 43 पुलिसकर्मियों की जान गई.
कैसे हीरो बना हिज़्बुल्लाह?
इस युद्ध का अंत तब हुआ जब अगस्त में इजराइल, हिज्बुल्लाह और लेबनान सरकार ने शांति प्रस्ताव स्वीकार किया. 12 जुलाई को बंदी बनाकर लेबनान लाए गए इजराइली सैनिक हिज्बुल्लाह की गिरफ्त में ही रहे. करीब दो साल बाद दोनों सैनिकों के शव लेबनान के पांच कैदियों और 200 मृतकों के शवों के बदले इजराइल के सुपुर्द कर दिए गए.
लेकिन उससे पहले हिज्बुल्लाह ने वह कर दिखाया था जिसकी शायद ही किसी को उम्मीद थी. यह चरमपंथी समूह इजराइली सेना को सीधे तौर पर टक्कर देने में कामयाब रहा था, जो अब तक अरब का कोई समूह नहीं कर सका था. इस कामयाबी के बाद हिज़्बुल्लाह को अरब दुनिया में एक ताकतवर मिलिशिया के तौर पर देखा जाने लगा था.