जापान ने समुद्र में छोड़ा रेडियोएक्टिव वॉटर, कहां से आया 133 करोड़ लीटर रेडियोएक्टिव पानी…क्या हैं इसके नुकसान

जापान ने गुरुवार को बंद हो चुके फुकुशिमा दाइची न्यूक्लियर प्लांट से 10 लाख टन से ज्यादा रेडियोएक्टिव पानी प्रशांत महासागर में छोड़ना शुरू कर दिया है. इसके जवाब में चीन ने जापान से सीफूड का इम्पोर्ट बंद कर दिया है. चीन ने जुलाई में जापान से लगभग 3.2 मिलियन डॉलर का सीफूड आयात किया.

Radioactive Water
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 24 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 5:12 PM IST

जापान ने गुरुवार को बंद हो चुके फुकुशिमा दाइची न्यूक्लियर प्लांट से 10 लाख टन से ज्यादा रेडियोएक्टिव पानी प्रशांत महासागर में छोड़ना शुरू कर दिया है. इसके जवाब में चीन ने जापान से सीफूड का इम्पोर्ट बंद कर दिया है. चीन ने जुलाई में जापान से लगभग 3.2 मिलियन डॉलर का सीफूड आयात किया. चीन और रूस चाहते हैं कि जापान पानी को समंदर में छोड़ने के बजाए उसे भाप बनाकर उड़ा दे. लेकिन जापान इसके लिए तैयार नहीं है. दक्षिण कोरिया और रूस भी इसे लेकर चिंता जताते रहे हैं.

हालांकि जापान की सरकार और टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी का दावा है कि ये पानी इंसानों के लिए सुरक्षित है और वे यह सुनिश्चित करने के लिए रेडियोएक्टिव वाटर की लगातार देखरेख कर रहे हैं. कंपनी का कहना है कि पानी में अब केवल हाइड्रोजन का आइसोटोप ट्रिटियम बचा है. इस पानी को फिल्टरिंग और डायल्यूशन करके अगले 10 सालों तक धीरे-धीरे छोड़ा जाता रहेगा.

दो साल पहले किया गया था एलान

दो साल पहले जब से जापान ने रेडियोएक्टिव वॉटर को समुद्र में छोड़ने की घोषणा की थी, तब भी इसे लेकर बड़े पैमाने पर विरोध हुआ था. इस योजना की वजह से चीन और दक्षिण कोरिया के साथ राजनीतिक तनाव पैदा हो गए. चीनी सरकार ने पहले इस योजना की आलोचना करते हुए इसे असुरक्षित बताया था. खुद जापान के मछुआरों ने इस कदम का विरोध किया था. उनका कहना था कि इससे उनकी आजीविका प्रभावित हो सकती है. हालांकि विरोध के बावजूद जापान ने इसे नहीं रोका और आज यानी गुरुवार से इसकी शुरुआत हो गई.

कहां से आया इतनी बड़ी मात्रा में रेडियोएक्टिव वॉटर

साल 2011 में भूकंप और सुनामी के चलते वहां के फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट में ब्लास्ट हो गया. तब से प्लांट बंद पड़ा है और उसे ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल हुआ रेडियोधर्मी पानी हजारों स्टेनलेस स्टील के टैंकों में जमा है. इस पानी में कार्बन-14, आयोडिन-131, सीजियम- 137, स्ट्रोनटियम-90 कोबाल्ट, हाइड्रोजन-3 और ट्रिटियम जैसे एलिमेंट्स मिल गए. अब चूंकि कार्बन-14 जैसे कुछ मटेरियल का असर कम होने में 5 हजार साल लगते हैं. इसके अलावा न्यूक्लियर रिएक्टर पानी में अभी भी ट्राइटियम के कण मौजूद हैं. यूरेनियम, थोरियम, एक्टिमियम, पोलोनियम तथा रेडियम आदि रेडियोएक्टिव पदार्थ के उदाहरण हैं. रेडियोधर्मिता कुछ घंटों से सैकड़ों सालों तक रह सकती है. सरकार का कहना है कि प्लांट में 1.34 मिलियन टन से ज्यादा रेडियोएक्टिव वॉटर पहले से ही जमा है. बिजली कंपनी के पास जल्द ही स्टोरेज हो जाएगा और उसके पास पानी को समुद्र में छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.

मछुआरों के लिए मुआवजे का एलान

पहली किश्त में 7,800 टन ट्रीटमेंट वॉटर लगभग 17 दिनों तक समुद्र में छोड़ा जाएगा. टेप्को और जापान की मत्स्य पालन एजेंसी दोनों ने कहा है कि वे इस बात का ध्यान रखेंगी कि आईएईए के मानकों के मुताबिक योजनाबद्ध तरीके से पानी को समुद्र में छोड़ा जाए. इसके अलावा जापानी सरकार ने मछुआरों के लिए 80 बिलियन येन (552 मिलियन डॉलर) आवंटित किया है. इसके असर को लेकर बहस शुरू हो चुकी है. चूंकि भारत का समुद्री इलाका जापान से दूर नहीं है लिहाजा इसका असर इधर भी होगा. 

 

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