संगम का पवित्र किनारा और इसके किनारे पर बिखरे आस्था और भक्ति के अनेको रंग, कहीं साधना में लीन साधु-संत हैं और कहीं भक्ति और भजन हैं. महाकुंभ के इन्हीं अनेखों रंगों को करीब से देखने के लिए सिर्फ देश के कोने-कोने से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग पहुंचने शुरू हो चुके हैं. इन विदेशी मेहमानों को भारत की ये अनूठी संस्कृति यहां तक खींच लाई है. जिसका जीती जागती मिसाल हैं 65 साल की फ्रांसीसी महिला पास्कल, जो महाकुंभ के लिए खास तौर पर भारत आई हैं.
1984 से है भारत से रिश्ता
पास्कल बताती हैं कि वह 1984 में पहली बार भारत आई थी. तब से उनका जुड़ाव हिंदू धर्म से हुआ और उनकी भगवान शिव में बहुत आस्था है. इतना ही नहीं उन्हें भगवद गीता और पुराणों का भी ज्ञान है. उन्होंने कहा, "मुझे कुंभ मेले के बारे में सब कुछ पता है और मुझे समुद्र मंथन के बारे में भी पूरी जानकारी है. मुझे अमृत की बूंद के बारे में भी पूरी जानकारी है. मुझे हिंदू धर्म और भगवान शिव से बहुत लगाव है. हिंदू धर्म के प्रति अपने लगाव को व्यक्त करने का मेरे पास कोई कारण नहीं है."
फ्रांस ही नहीं बल्कि अमेरिका और इंग्लैंड से भी लोग कुंभ में पहुंचे हैं, जो किसी साधु-संन्यासी की तरह ही यहां रहकर भक्ति और भजन कर रहे हैं. इनके रहन-सहन और पहनावे को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन्हें सनातन धर्म ने कितना प्रभावित किया है. इसी लगाव के चलते इन लोगों ने अपने नाम तक बदल लिए.
जैकब बने जय कृष्णानंद सरस्वती
साधु-संन्यासियों का ये अद्भुत संसार हमेशा से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. यही वजह है कि जब भी अर्ध कुंभ या कुंभ का आयोजन होता है. विदेशों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और मोह-माया को छोड़कर वैराग्य का रास्ता चुनते हैं. इस बार भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. इंग्लैंड से आए जैकब अब जय कृष्णानंद सरस्वती बन चुके हैं.
अध्यात्म का ये मेला 13 जनवरी से शुरु हो जाएगा. तब शाही स्नान के अलावा साधु-संतों के शिविरों में होने वाले धार्मिक आयोजन भी लोगों को अपनी ओर खींचते हैं. महाकुंभ में मेहनाओं के आने का सिलसिला शुरू होते ही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पूरे मेला क्षेत्र में घूमकर तैयारियों का जायजा लिया.