जापान की एक अदालत ने लिंग परिवर्तन कराने वाले लोगों की नसबंदी की अनिवार्यता को असंवैधानिक करार दिया है. हाई कोर्ट का यह फैसला 2003 के इस कानून की संवैधानिक वैधता पर पहला फैसला है, जिसके तहत सरकारी मान्यता प्राप्त लिंग परिवर्तन के लिए प्रजनन अंग हटवाना जरूरी था. यह फैसला ऐसे वक्त आया है जब जापान में बूढ़े लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और प्रजनन दर दुनिया में सबसे कम है.
लिंग बदलने के लिए Gender Dysphoria होना जरूरी
इस मामले में यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय वर्ल्ड प्रोफेशनल एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ और संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों सहित कई अंतरराष्ट्रीय निकायों ने कहा था कि ऐसी आवश्यकताएं भेदभावपूर्ण हैं और मानवाधिकारों का उल्लंघन करती हैं. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि कोर्ट का ये भ्रम पैदा करेगा और महिलाओं के अधिकारों को कमजोर करेगा.
जापानी कानून के मुताबिक जो लोग लिंग बदलना चाहते हैं उन्हें Gender Dysphoria का डायग्नोसिस दिखाना होगा और इन पांच आवश्यकताओं को पूरा करना होगा. ये हैं:
-कम से कम 18 वर्ष का होना.
-शादीशुदा नहीं होना.
-उनके कम उम्र के बच्चे न हों.
-ऐसे रिप्रोडक्टिव सिस्टम का होना जो विपरीत लिंग के समान हों.
-रिप्रोडक्टिव सिस्टम नहीं हैं या काम करना बंद कर चुके हैं.
केस दायर करने वाले वकीलों ने कोर्ट में दलील दी कि लिंग परिवर्तन कराने के लिए मेंडटरी आखिरी की दो रिक्वायरमेंट्स ने उनके मुवक्किल के खुशी और बिना किसी भेदभाव के जीने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन किया है. इससे ट्रांस लोगों को शारीरिक दर्द और वित्तीय बोझ उठाना पड़ेगा. कई देशों ने कानूनी रूप से लिंग परिवर्तन के लिए सर्जरी की आवश्यकता वाले कानूनों को निरस्त कर दिया है. लेकिन जापान में ट्रांस अधिकारों पर अभी भी विवाद है.
जापान में एलजीबीटीक्यू+ को लेकर बढ़ी जागरूकता
जापान में पिछले कुछ समय से LGBTQ+ लोगों से जुड़े मुद्दों को लेकर जागरूकता बढ़ी है. फरवरी में प्रधान मंत्री के पूर्व सहयोगी फुमियो किशिदा ने कहा था कि वो कभी भी एलजीबीटीक्यू+ लोगों के बगल में नहीं रहना चाहेंगे. अगर देश में समलैंगिक विवाह की अनुमति दी गई तो यहां के नागरिक जापान छोड़ देंगे. उनके इस बयान के बाद से कार्यकर्ताओं ने भेदभाव-विरोधी कानून पारित करवाने की कोशिशें तेज कर दी हैं.
भारत में सुरक्षित नसबंदी के लिए कई मानक
भारत में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर सख्त नियम नहीं हैं. सरकार ने सुरक्षित नसबंदी के लिए कई मानक और नियम बनाए हैं. भारत में गर्भ निरोधक के लिए नसबंदी के ऑपरेशन का विकल्प, गरीब आर्थिक और सामाजिक स्तर वाले समुदायों की महिलाओं के बीच आम है. हाल के सालों में सरकार ने परिवार नियोजन के अन्य विकल्प भी अपनाए हैं. भारत के अलग-अलग राज्यों में जनसंख्या को लेकर अलग-अलग कानून है. छत्तीसगढ़ में जहां दो से अधिक संतान होने और किसी एक का जन्म 26 जनवरी 2001 या उसके बाद होने पर सरकारी सेवा के लिए अयोग्य माना गया है. वहीं सिक्कम में जिन सरकारी महिला कर्मचारियों के एक से ज्यादा बच्चे होते हैं, उन्हें सैलरी इन्क्रीमेंट समेत कई सुविधाएं दी जाती हैं.