परमाणु हथियारों को दुनिया से खत्म करने की मुहिम चलाने वाले जापान के समूह 'निहोन हिंदानक्यो ' (Nihon Hidankyo) को नोबेल शांति पुरस्कार 2024 (Nobel Peace Prize 2024) से सम्मानित किया गया है. नोबेल प्राइज़ की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, निहोन हिंदानक्यो को 'एक परमाणु हथियार मुक्त दुनिया बनाने' के उनके प्रयासों के लिए और 'चश्मदीद गवाहों के जरिए परमाणु हथियारों का विरोध करने' के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है.
दरअसल जब 1945 में अमेरिका के दो परमाणु बमों ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी को तबाह कर दिया था तब इस समूह का गठन किया गया था. करीब सात दशक बाद यह समूह पूरी दुनिया के लोगों को परमाणु हथियारों को त्यागने के लिए प्रेरित कर रहा है.
कब और कैसे बना निहोन हिंदानक्यो?
हिरोशिमा और नागासाकी पर गिरे परमाणु बमों ने 1.2 लाख लोगों की जान ली थी. धमाके के जख्मों और रेडियेशन्स से भी आने वाले एक साल में दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई. धमाकों में जो 6.5 लाख लोग बच गए उन्हें 'हिबाकुशा' (Hibakusha) कहा गया. करीब एक दशक तक ये लोग नजरंदाज होते रहे.
फिर 1956 में स्थानीय हिबाकुशा ने प्रशांत महासागर में अमेरिका की परमाणु टेस्टिंग के पीड़ितों के साथ मिलकर 'ए और एच बमम पीड़ितों का परिसंघ' तैयार किया. यह धीरे-धीरे जापान का सबसे बड़ा हिबाकुशा समूह बन गया. जापानी भाषा में इसे 'निहोन जेनसुइबाकू हिगाइशी दानताई क्योगी-काई' उर्फ निहोन हिंदानक्यो कहा गया.
कैसे काम करता है यह समूह?
निहोन हिंदानक्यो के दो मुख्य उद्देश्य हैं. पहला जापान के बाहर रहने वाले लोगों सहित सभी हिबाकुशा के सामाजिक और आर्थिक अधिकारों को बढ़ावा देना है. दूसरा यह सुनिश्चित करना कि किसी को भी फिर से परमाणु हमले का शिकार न होना पड़े. व्यक्तिगत गवाहों के बयानों के माध्यम से निहोन हिंदानक्यो ने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का विरोध करता रहा है.
अपनी स्थापना के बाद से ही निहोन हिंदानक्यो अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेता रहा है. अपने गठन के एक साल बाद संगठन 1957 में एक जापानी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनकर सोवियत संघ, चीन और मंगोलिया गया था. संगठन ने यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में स्वतंत्र भाषण यात्राएं भी कीं. बाद के वर्षों में निहोन हिंदानक्यो यूरोप और अफ्रीका में कई अतिरिक्त पहलों में शामिल होता नजर आया.
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चले शीत युद्ध (Cold War) के दौरान भी निहोन हिंदानक्यो ने निरस्त्रीकरण का समर्थन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष सत्र में अपने प्रतिनिधि भेजे. उस समय परमाणु तनाव अपने चरम पर था. लेकिन निहोन हिंदानक्यो के प्रतिनिधियों की गवाही ने परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए समर्थन बनाने में अहम योगदान दिया.
निहोन हिंदनक्यो 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में भी लगातार परमाणु हथियारों के खिलाफ काम करता रहा है. इस कोशिश में इनका आदर्श वाक्य "अब और हिबाकुशा नहीं" इनकी पहचान बन गया है.
...बूढ़े होते जा रहे हैं हिबाकुशा
निहोन हिंदानक्यो ने हमेशा परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया बनाने की वकालत की है लेकिन इसके मूल सदस्य अब बूढ़े होते जा रहे हैं. अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट हिरोशिमा के मेयर काज़ुमी मात्सुई के हवाले से कहती है, "हिबाकुशा तेजी से बूढ़े हो रहे हैं. और बहुत कम लोग हैं जो परमाणु बम रखने की निरर्थकता और उससे जुड़ी बुराई की गवाही दे सकते हैं."
हिरोशिमा-नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों के 79 साल बाद जो चश्मदीद गवाह बचे हैं वे अपनी उम्र के आखिरी साल जी रहे हैं. यूरोप और पश्चिमी एशिया में जारी घमासान के बीच परमाणु युद्ध की संभावना इस समय अपने चरम पर है. यह कहना मुश्किल है कि वे कब तक अपनी आपबीती सुना सकेंगे और शीत युद्ध की तरह एक बार फिर परमाणु तनाव को ठंडा करने में कोई भूमिका निभा सकेंगे.
निहोन हिंदोनक्यो के संयुक्त-चेयरमैन तोमोयुकी मिमाकी कहते हैं, "कहा गया है कि परमाणु हथियारों की वजह से दुनिया में शांति कायम है. लेकिन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल आतंकवादी भी कर सकते हैं. मिसाल के तौर पर, अगर रूस यूक्रेन के खिलाफ, इजराइल गजा के खिलाफ उनका इस्तेमाल करता है, तो यह यहीं खत्म नहीं होगा. राजनेताओं को ये बातें पता होनी चाहिए."