प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पोलैंड और यूक्रेन के दौरे पर हैं. पीएम मोदी अभी पोलैंड में हैं. पीएम मोदी बुधवार शाम करीब साढ़े 5 बजे पोलैंड की राजधानी वारसॉ पहुंचे. यहां भारतीय समुदाय ने होटल में उनका स्वागत किया. इसके बाद PM मोदी ने जामनगर के 'जाम साहब' महाराज दिग्विजय सिंहजी जडेजा के स्मारक पर श्रद्धांजलि दी.
पीएम ने अपने ट्वीट में लिखा, 'मानवता और करुणा एक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण विश्व की महत्वपूर्ण नींव हैं. वारसॉ में नवानगर मेमोरियल के जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जडेजा के योगदान पर प्रकाश डालते हैं, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बेघर हुए पोलैंड के बच्चों को आश्रय दिया. जाम साहब को पोलैंड में डोब्री महाराजा के नाम से याद किया जाता है.'
पीएम ने कोल्हापुर स्मारक पर दी श्रद्धांजलि
इसके बाद पीएम ने वारसॉ में कोल्हापुर स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की. उन्होंने कहा, 'यह स्मारक कोल्हापुर के महान शाही परिवार को एक श्रद्धांजलि है. यह शाही परिवार द्वितीय विश्व युद्ध के कारण विस्थापित पोलैंड की महिलाओं और बच्चों को आश्रय देने में सबसे आगे था. छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों से प्रेरित होकर, कोल्हापुर के महान शाही परिवार ने मानवता को हर चीज से ऊपर रखा और पोलैंड की महिलाओं और बच्चों के लिए सम्मान का जीवन सुनिश्चित किया. करुणा का यह काम पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा.'
पोलिश शरणार्थियों को दी पनाह
नवानगर मेमोरियल का जाम साहब गुजरात के नवानगर (अब जामनगर) के पूर्व महाराजा, जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी को समर्पित है. जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को पोलैंड में काफी सम्मान के साथ देखा जाता है. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूएसएसआर से भागकर आए पोलैंड के सैकड़ों बच्चों को शरण दिया था. 1942 से 1948 के बीच पोलैंड के लगभग 6 हजार शरणार्थियों को भारत में पनाह दी गई. पोलैंड में स्थित यह स्मारक उनकी विरासत को एक श्रद्धांजलि है.
कौन थे दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी
जामश्री दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जडेजा का जन्म 1895 में सरोदा में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा राजकुमार कॉलेज, माल्वर्न कॉलेज और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में हासिल की. 1919 में ब्रिटिश आर्मी में कमीशन हो गए. 1931 में कैप्टन के पद से रिटायर हुए. 1933 में दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी नवानगर रियासत के महाराजा बने. द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के बाद उन्हें इम्पीरियल वॉर कैबिनेट का हिस्सा बनाया गया.
कैबिनेट का हिस्सा रहते हुए जब उन्हें पोलैंड के शरणार्थियों के बारे में पता चला तो महाराजा ने उनकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाया. उन बच्चों के लिए महाराज ने खाना, कपड़ा, चिकित्सा समेत कई सुविधाएं उपलब्ध कराईं. उन्हें 'गुड महाराजा' के नाम से भी जाना जाता है.
उस समय महाराजा दिग्विजयसिंह ने नवानगर में पोलिश बच्चों को शरण देते हुए कहा, "अपने आप को अनाथ मत समझो. नवानगर की जनता मुझे बापू कहती है, आज से मैं तुम्हारा भी बापू हूं."
उन्होंने न सिर्फ हजारों पोलिश लोगों की मदद की बल्कि नौ सालों तक उनका ख्याल रखा. इन्ही शरणार्थी बच्चों में एक बच्चा बाद में पोलैंड का पीएम बना और महाराजा "जाम साहब दिग्विजय सिंह" को हमेशा के लिए अमर कर दिया. पोलैंड ने महाराजा को मरणोपरांत सर्वोच्च नागरिक सम्मान कमांडर्स क्रॉस ऑफ दि ऑर्डर ऑफ मेरिट भी दिया. पोलैंड की राजधानी वारसॉ में कई कई योजनाएं उनके नाम पर चलती हैं.