Lao Version of Ramayana: लाओस में Lord Ram, लक्ष्मण और माता सीता को किस नाम से जाना जाता है? Laos की Ramlila के बारे में सबकुछ जानिए

रामलीला का मंचन सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग भागों में भी किया जाता है. दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी एशिया के लगभग सभी देशों में किसी न किसी रूप में रामलीला होती है. लाओस की रामायण फ्रा लाक फ्रा राम वाल्मीकि की कथा से गहराई से प्रभावित है. आइए जानते हैं लाओ रामायण की कहानी, जिसने लाओस और भारत को सदियों से जोड़े रखा है. 

Lao Version of Ramayana (Photo: PTI)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 11 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 7:47 PM IST
  • लाओ वर्ष के मौके पर हर साल फ्रा लक फ्रा राम का किया जाता है मंचन 
  • लाओस में फ्रा राम को गौतम बुद्ध का माना जाता है अवतार 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) 21वें आसियान-भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए लाओस (Laos) की राजधानी विएनतियान (Vientiane) में हैं. इस दौरान उन्होंने रामायण के लाओ संस्करण की प्रस्तुति देखी, जिसे फलक फराम या फ्रा लाक फ्रा राम के नाम से जाना जाता है. इसे प्रतिष्ठित रॉयल थिएटर ऑफ लुआंग प्रबांग के कलाकारों ने प्रस्तुत किया.

पीएम मोदी ने शेयर किया वीडियो
पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इसका वीडियो भी शेयर किया है. उन्होंने एक्स पोस्ट में लिखा, 'विजयादशमी कुछ ही दिन दूर है और आज मैंने लाओ पीडीआर में लाओ रामायण का एक हिस्सा देखा, जिसमें रावण पर प्रभु श्री राम की जीत पर प्रकाश डाला गया है. यह देखकर बहुत खुशी होती है कि यहां के लोग रामायण से जुड़े हुए हैं. प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद हम पर सदैव बना रहे'. कार्यक्रम के बाद पीएम मोदी ने रामायण के कलाकारों से मंच पर मुलाकात भी की और उनके संग फोटो भी खिंचवाई. उन्होंने फोटो शेयर करते हुए लिखा, लाओ पीडीआर में मेरे द्वारा देखे गए फलक फराम या फ्रा लाक फ्रा राम के यादगार प्रकरण की कुछ झलकियां'.

लाओस में हो रहा भारतीय संस्कृति का पालन 
विदेश मंत्रालय (MEA) ने एक बयान में कहा कि लाओस में रामायण का आयोजन जारी है और यह महाकाव्य दोनों देशों के बीच साझा विरासत और सदियों पुरानी सभ्यता के संबंध को दर्शाता है. लाओस में सदियों से भारतीय संस्कृति और परंपरा के कई पहलुओं का पालन और संरक्षण किया जाता रहा है. दोनों देश अपनी साझा विरासत को मजबूत करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं.  ये दिखाता है कि महान हिंदू महाकाव्यों में से एक रामायण की कथा जिस तरह से भारत और लाओस समेत दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ती है, कोई अन्य ग्रंथ ऐसा नहीं कर सकता है. 

रामायण की कथा बौद्ध प्रभाव के साथ सदियों से है मौजूद 
दक्षिण पूर्व एशिया में रामायण सदियों पहले पहुंची थी. थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया जैसे दक्षिण एशियाई देशों में बौद्ध धर्म का पालन करने वाले अधिक हैं. इन देशों रामायण की कथा बौद्ध प्रभाव के साथ सदियों से मौजूद है. हालांकि, लाओस में यह दूसरे देशों कंबोडिया और थाइलैंड की तुलना में बहुत बाद में पहुंची. लाओ संस्करण में यह फ्रा लाक फ्रा राम नाम से अपनाई गई. phralakphralam.com के अनुसार लाओ रामायण मूल भारतीय रामायण से अलग है. फ्रा लाक (लक्ष्मण) फ्रा राम रामायण का लाओ रूपांतरण है. लाओस को प्राचीन भारतीय सुवर्णभूमि या सोने की भूमि के रूप में जानते थे. ऐतिहासिक अभिलेखों के मुताबिक जब सम्राट अशोक ने कलिंग के खिलाफ युद्ध छेड़ा तो कई लोग सुवर्ण भूमि चले गए. ये अपने साथ हिंदू और बौद्ध मान्यताओं को लेकर भी पहुंचे. 

मूल हिंदू प्रभाव हो गया है समाप्त 
लाओस की रामायण फ्रा लाक फ्रा राम वाल्मीकि की कथा से गहराई से प्रभावित है, लेकिन इसका मूल हिंदू प्रभाव समाप्त हो गया है. इसमें लाओस के इतिहास और जीवन शैली का असर दिखाई देता है. इसे बौद्ध जातक कथाओं के रूप में देखा जाता है, जो गौतम बुद्ध के पिछले जीवनकाल को दिखाती हैं. लाओस रामायण की कहानी यहां के मेकांग नदी के किनारे आसपास घूमती है, जो यहां पर गंगा के समान पवित्र मानी जाती है. इसमें लाओस की बौद्ध संस्कृति की बेहद शानदार झलक देखने को मिलती है. 

लक्ष्मण का नाम पहले लिखे जाने की कहानी है दिलचस्प 
फ्रा लक फ्रा राम का मंचन हर साल लाओ वर्ष के मौके पर खास तौर से किया जाता है. लाओस में फ्रा राम को गौतम बुद्ध का अवतार माना जाता है, जो भगवान श्रीराम के रास्तों पर चलते थे. इसके अलावा लाओस में रावण को राक्षस मारा का अवतार माना जाता है, जो गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति में बाधा डालने का प्रयास करता है. लाओस रामायण के नाम में फ्रा लाक का तात्पर्य लक्ष्मण से है. कथा के नायक राम के होने के बावजूद लक्ष्मण का नाम पहले लिखे जाने की कहानी भी दिलचस्प है. स्थानीय लोगों के मुताबिक लक्ष्मण ने स्वेच्छा से राम का सहायक होना स्वीकार किया, जिसके चलते उनका नाम आगे लिया जाता है. अन्य प्रमुख पात्रों में नांग सिदा (सीता), थोत्सखान या हपखानसौने (रावण), हनुमान, संपाती और जटायु हैं. 

बौद्ध बहुसंख्यक देश है लाओस 
लाओस दक्षिण पूर्व एशिया के केंद्र में स्थित है. इस देश की सीमा बर्मा, कंबोडिया, चीन, थाईलैंड और वियतनाम से लगती है. लाओस एक बौद्ध बहुसंख्यक देश (Buddhist Majority Countries) है. संयुक्त राज्य अमेरिका की एक अधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक साल 2015 की राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार लाओस में कोई हिंदू नहीं है. रिपोर्ट में ईसाई और बौद्ध धर्म की आबादी का आंकड़ा मौजूद है. अमेरिकी वेबसाइट ने बताया कि साल 2023 में लोओस में 79 लाख आबादी रहती थी.

लाओस में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है. यहां की कुल आबादी में से 64.7 फीसदी लोग बौद्ध धर्म से हैं. ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या केवल 1.7 फीसदी है. इस देश के 31.4 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिन्होंने बताया कि वह किसी धर्म को नहीं मानते हैं. यहां की 2.2 फीसदी जनसंख्या अन्य धर्मों से जुड़ी है, लेकिन धर्म नहीं बताया गया है. लाओस में दो कैलेंडर हैं. एक ग्रेगोरियन कैलेंडर जिसका उपयोग व्यवसाय के लिए किया जाता है और दूसरा चंद्र कैलेंडर जिसका उपयोग छुट्टियों और त्योहारों के लिए किया जाता है. लाओस अपनी मेहमानवाजी के लिए जाना जाता है. 

 

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