दुनिया के नक्शे पर चींटी जितना देश हाथी की ताकत लिए रूस का जमकर सामना कर रहा है. देश का राष्ट्रपति हो, छोटे बच्चे हों या वहां की महिलाएं हों, सभी अपने-अपने हिस्से की लड़ाई लड़ रहे हैं. यूक्रेन की आर्मी में 17 फीसदी महिलाएं हैं.रूस के सैनिकों की आंखों में आंख डालकर जंग लड़ रही ये महिलाएं ल्यूडमिला पवलिचेंको (Lyudmila Pavlichenko) की याद दिला रही हैं. यूक्रेन के घर-घर में ल्यूडमिला पवलिचेंको की वीरता की कहानियों सुनाई जाती हैं. कीव में जन्मी इस खतरनाक लड़की ने दूसरे विश्व युद्ध में हिटलर के 309 सैनिकों को चुन-चुनकर मारा था. इसी लिए इन्हें ‘लेडी डेथ’ (Lady Death) के नाम से भी जाना जाता है.
रेड आर्मी में बतौर स्नाइपर की जॉइनिंग
ये बात है साल 1940 और 1941 की जब दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था. तब रूस और यूक्रेन अलग नहीं था, बल्कि सोवियत संघ था. हिटलर ने बर्बरोस्सा ऑपरेशन लॉन्च किया था. ल्यूडमिला पवलिचेंको उस वक्त केवल 24 साल की थी जब उन्होंने रेड आर्मी बतौर स्नाइपर ज्वाइन की. उस दौरान कुल 2000 महिलाओं ने आर्मी ज्वाइन की. जिसमें से युद्ध के बाद केवल 500 ही बच पाईं.
यूक्रेन पर हिटलर की सेना बम बरसा रही थी. तब ल्यूडमिला ने ठाना कि वे उन्हें मार गिराएंगी. लेडी डेथ के नाम से जानी जाने वाली इस खतरनाक महिला के किस्से आज भी कहे सुने जाते हैं.
जर्मन सेना ने धमकी से लेकर दिया अफसर बनवाने का लालच
यही नहीं, ल्यूडमिला को रोकने के लिए जर्मन सेना ने कई बार लालच भी दिया. उन्होंने रेडियो लाउडस्पीकरों पर संदेश भेजते हुए उसे रिश्वत देने का भी प्रयास किया. ढेर सारी चॉकलेट के साथ जर्मन अफसर बनने तक का लालच दिया गया. इनसे भी काम नहीं बना तो धमकी तक दी गई. जर्मन सेना ने धमकी देते हुए कहा, “अगर हम तुम्हें पकड़ लेते हैं, तो तुम्हारे 309 टुकड़े कर देंगे और उन्हें हवाओं में बिखेर देंगे।.”
हालांकि, इन धमकियों को सुनकर भी इस धमकी को सुनकर भी ल्यूडमिला की हिम्मत, जज्बा और हौसला कोई काम नहीं पाया. वे केवल यह सुनकर खुश थी कि दुश्मन उनके रिकॉर्ड को ठीक से जानते हैं.
15 साल की उम्र में हुई शादी
ल्यूडमिला पवलिचेंको अपने संस्मरण में बताती हैं कि 15 साल की उम्र में उन्हें किसी से प्यार हुआ, शादी हुई और वे मां बन गई. हालांकि, शादी ज्यादा समय तक नहीं चली. वे अपने संस्मरण में लिखती हैं, “पीछे देखती हूं तो कुछ भी वैसा नहीं है जैसा था, दुनिया जैसे खत्म हो गयी है.” उनके संस्मरण से पता चलता है कि कुछ समय तक उन्होंने हथियार फैक्ट्री में भी काम किया. निशानेबाजी का शौक था, तो उन्होंने स्नाइपर स्कूल में दाखिला लिया और फिर उसके बाद उन्होंने सोवियत संघ की 25वीं राइफल डिवीज़न ज्वाइन की.
हीरो ऑफ सोवियत यूनियन
रूस ने कितने सैनिकों को मारा इसका आंकड़ा तो किसी के पास नहीं है, लेकिन स्नाइपर स्कूल से निकली इन दो हजार महिलाओं ने मिलकर 12 हजार जर्मन सैनिकों को मौत एक घाट उतार दिया. ल्यूडमिला की बहादुरी के चर्चे पूरे देश में फैल गए. यहां तक की उनके पोस्टर्स भी जोश बढ़ाने के लिए सैनिकों में बटवायें गए. इन पोस्टर्स पर उनके फोटो के साथ ‘दुश्मन को गोली से उड़ा दो, चूको मत’ लिखा होता था.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद वे नौसेना के रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़ी रही. इसके साथ ल्यूडमिला को हीरो ऑफ सोवियत यूनियन के सम्मान से भी नवाजा गया.