Exclusive: एक पैर से दुनिया फतह कर रही हैं सीता! 12 साल की उम्र में खोया था एक पैर, आज हैं फेमस कथक डांसर

नेपाल की एक बेटी आज न सिर्फ नेपाल बल्कि भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बन गई है. सिर्फ एक पैर होने के बावजूद यह बेटी आज कमाल की कथक डांसर है और यह मुकाम उन्होंने मेहनत के दम पर हासिल किया है. 

Sita Subedi
निशा डागर तंवर
  • नई दिल्ली ,
  • 15 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 3:36 PM IST
  • 12 साल की उम्र में हुआ था कैंसर 
  • हर मुश्किल का किया सामना 

“लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...”

जब भी हमें किसी का मनोबल बढ़ाना होता है तो अक्सर हम सोहनलाल द्विवेदी जी की ये पंक्तियां गुनगुनाते हैं. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी प्रेरणा के बारे में जिन्होंने इन पंक्तियों को चरितार्थ करके दिखाया है. यह कहानी है नेपाल की एक बेटी की जो आज पूरी दुनिया के लिए मिसाल बनी हुई है. 

37 साल की सीता सुबेदी एक क्लासिकल कथक डांसर हैं. खुद परफॉर्म करने के अलावा, उन्होंने सैकड़ों बच्चों को डांस सिखाया भी है. अब आप सोचेंगे कि दुनिया में बहुत सारे डांसर हैं तो सीता में ऐसा खास क्या है? उनकी खास बात यह है कि उनका एक पैर नहीं है लेकिन फिर भी वह कथक करती हैं और जब कथक करती हैं तो किसी की नजर उनसे नहीं हटती.

हालांकि, यह राह आसान नहीं थी लेकिन सीता ने हार नहीं मानी और अपनी मंजिल को पाकर ही दम लिया. हाल ही में, वह MS. Nepal International 2023 की विनर भी बनी हैं. GNT Digital के साथ एक एक्सक्लुसिव बातचीत में उन्होंने अपने सफर के बारे में विस्तार से बताया. 

12 साल की उम्र में कैंसर 
सीता ने बताया, "मुझे बचपन से ही डांस का शौक था, यह मेरा पैशन था. मुझे डांस सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए नहीं करना था, मैं डांस पढ़ना चाहती थी. पर जब मैं 12 साल की थी तो पता चला कि मेरे बाएं पैर में कैंसर डेवलप हो रहा है. काफी इलाज हुआ लेकिन आखिर में पैर काटना पड़ा." यह समय सीता और उनके परिवार के लिए आसान नहीं था. सिर्फ 12 साल की उम्र में एक पैर खो देना, उनके ऊपर पहाड़ टूटने जैसा था. 

लेकिन जब हर तरफ अंधेरा नजर आए तो जरा-सी रोशनी भी आपको रास्ता दिखाने के लिए काफी होती है. कुछ ऐसा ही, सीता के साथ हुआ. अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने लोगों की नजरों में अपने लिए दया देखी, उनकी बातें सुनी कि अब तो उनका जीवन खत्म हो गया है. लेकिन उसीदौरान उन्हें किसी ने भारतीय डांसर और एक्टर, सुधा चंद्रन के बारे में बताया. सीता कहती हैं कि सुधा चंद्रन को देखकर उनका डांस करने का सपना फिर से जी उठा और वह उनकी इंस्पिरेशन बन गईं. 

हर मुश्किल का किया सामना 
इलाज के लगभग एक साल बाद सीता अपनी मां के सपोर्ट से बैसाखी के सहारे स्कूल पहुंची. स्कूल में उनका समय बिल्कुल भी आसान नहीं रहा. लोगों उन्हें हीन भावना से देख रहे थे. उनके साथ बच्चे बैठ भी नहीं रहे थे क्योंकि सबको डर था कि कहीं उन्हें इंफेक्शन न हो जाए. इस सबके बावजूद सीता का हौसला बना रहा और साल 2002 में उन्होंने स्कूल पास किया. स्कूल के बाद वह डांस और म्यूजिक में पढ़ाई करना चाहती थीं. 

सीता ने बताया, "मैं जहां भी डांस और म्यूजिक के लिए गई मुझे हर जगह से रिजेक्ट किया गया. सबने कहा डांस करने के लिए और सबसे ज्यादा कथक करने के लिए दोनों पैर होना जरूरी है. यह सब सुनकर मैंने ठान लिया कि मैं डांस करके सबको गलत साबित करूंगी." सीता ने लाइफ स्किल डेवलपमेंट में वोकेशनल ट्रेनिंग की, जिससे उन्हें और ज्यादा कॉन्फिडेंस मिला. उन्होंने अपने लेवल पर डांस जारी रखा और साल 2015 में उन्होंने पद्म कन्या कैंपस ज्वॉइन किया और फिर कलानिधि इंदिरा संगीत महाविद्यालय से जुड़ी. 

यह संस्थान भारत के प्रयागराज में प्रज्ञा संगीत समिति से जुड़ा है. उन्होंने कलानिधि में डांस स्किल्स पर काम किया और महारत हासिल की. उन्होंने म्यूजिक और नेपाली में मास्टर्स भी पूरी की. कुछ समय पहले तक वह सैकड़ों बच्चों को डांस भी सिखा रही थीं लेकिन अब उन्होंने एक और प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए एक ब्रेक लिया है. 

नेपाल के लोगों को करना है जागरूक 
सीता अब अपने पैशन को फॉलो करते हुए अपने देश का नाम भी रोशन कर रही है. साल 2019 में उन्हें कथक परफॉर्मेंस के लिए साउथ कोरिया बुलाया गया. और साल 2022 में Summer Hot Fashion Show and Musical Night 2022 में उन्होंने 21 मॉडल्स के साथ बैसाखी लिए हुए रैंप वॉक की. उनका हौसला देखकर हर किसी का मन जोश से भर गया. 

सीता कहती हैं कि वह नेपाल में डांस को शौक के तौर पर नहीं बल्कि करियर के तौर पर प्रमोट करना चाहती हैं. वह चाहती हैं कि लोग बच्चों को अपना पैशन फॉलो करने दें. उनका कहना है कि उनके पास भले ही एक पैर नहीं है पर वह दिल से डांस करती हैं. और चाहती हैं कि जो भी बच्चे के दिल में है वह वही करे और वह इस दिशा में काम कर रही हैं ताकि नेपाल के बच्चे अपने किसी भी सपने को पूरा करने से न झिझकें. अंत में वह सिर्फ यही कहती हैं कि मेहनत, अनुशासन और पैशन से आप अपना हर सपना पूरा कर सकते हैं. 

 

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