अब्राहम लिंकन...एक ऐसा नाम जो किसी परिचय का मोहताज नहीं है. 9 साल में मां को खो दिया. पेट पालने के लिए मजदूरी की. हालात ऐसे थे कि दर-दर भटकना पड़ा. लेकिन, कहते हैं ना कि संघर्ष जारी रखने वाला इंसान एक दिन बुलंदियों पर होता है. लंबे संघर्ष के बाद दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति बने थे अब्राहम लिंकन.
गरीबी से व्हाइट हाउस तक का सफर...
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की जिंदगी का हर पन्ना प्रेरणादायक है. गरीब परिवार में जन्मे लिंकन की जिंदगी संघर्ष से सफलता की कहानी बयां करती है. एक ऐसा शख्स जिन्होंने तमाम दुश्वारियों को झेलने के बाद कभी हार नहीं मानी और गरीबी से लेकर व्हाइट हाउस तक का सफर तय किया. लिंकन ने अपने संघर्ष से यह साबित कर दिया कि गरीब परिवार में जन्म लेकिन शाप हो सकता है लेकन कड़ी मेहनत से बुलंदियों पर आप जरूर पहुंच सकते हैं.
लिंकन 9 साल के थे...जब मां का साया उठा
12 फरवरी 1809 को अमेरिका के एक गरीब परिवार में जन्मे लिंकन का बचपन काफी गरीबी में गुजरा. लिंकन का परिवार इतना गरीब था कि सभी लोग एक लकड़ी के छोटे से घर में रहते थे. जिस जमीन पर घर था उसे लेकर भी विवाद हुआ और पूरे परिवार को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी. लिंकन जब 9 साल के थे तब उनकी मां इस दुनिया से चल बसीं. ये लिंकन के लिए काफी दर्द भरा रहा. पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि उन्हें स्कूल भेज सकें. पेट पालने के लिए लिंकन को बचपन से ही मजदूरी करनी पड़ी.
पढ़ने का था जुनून
लिंकन के बारे में यह कहा जाता है कि उन्हें पढ़ने का जुनून था. जब भी उन्हें समय मिलता वो दूसरे से किताबें लेकर पढ़ने लगते. मां के जाने के बाद उनकी जिंदगी में बहुत तकलीफें आई और उन्हें बहुत दर्द सहना पड़ा. लेकिन, लिंकन ने हार नहीं मानी और छोटी उम्र में ही उन्होंने अपनी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने का फैसला किया.
लिंकन ने पोस्टमास्टर की भी नौकरी की
जब सामने कोई रास्ता नहीं दिखा तब लिंकन ने अपने पिता से बढ़ई का काम सीखकर नाव बनाई और माल ढोने का काम शुरू किया. बचे हुए वक्त में लिंकन लोगों की खेतों में जाकर काम करते थे. बाद में एक दुकान में उनकी नौकरी लग गई जहां उन्हें पढ़ने का भी वक्त मिलने लगा. आगे चलकर लिंकन ने अपने दम पर लॉ की भी पढ़ाई की और बाद में उन्होंने पोस्टमास्टर की भी नौकरी की.
लोगों की परेशानी देखकर राजनीति में आए लिंकन
लिंकन ने समाज में देखा कि लोगों को कई चीजों को लेकर काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इसको देखते हुए लिंकन ने राजनीति में जाने का फैसला किया. ये वो वक्त था जब अमेरिका में दास प्रथा चरम पर थी और लिंकन इसे खत्म करना चाहते थे. इसी विचार के साथ लिंकन ने पहली बार चुनाव लड़ा और इसमें उन्हें करारी हार झेलनी पड़ी. चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने पोस्टमास्टर की नौकरी भी छोड़ दी थी. उस वक्त तक उन्हें वकालत के लिए लाइसेंस भी मिल चुका था लेकिन इसमें भी उन्हें नाकामी ही हाथ लगी क्योंकि वो गरीबों का केस लड़ने के लिए पैसे नहीं लेते थे. लिंकन ने अपनी मेहनत और जज्बे से यह साबित कर दिया कि कोई भी लक्ष्य नामुमकिन नहीं होता.