जर्मनी के एक शहर में कबूतरों की पूरी आबादी को खत्म को करने का फैसला किया है. हालांकि, लिम्बर्ग एन डेर लाहन शहर में, कबूतरों की पूरी आबादी को खत्म करने के इस फैसले पर विवाद भी भड़क उठा है. एनिमल एक्टिविस्ट और लोकल लोगों के बीच में बहस छिड़ गई है. हाल ही में हुए जनमत संग्रह में ज्यादातर शहरवासियों ने पक्षियों को मारने के पक्ष में वोट किया है.
कबूतरों से समस्या
लिम्बर्ग को अपने आर्किटेक्चर और शांत परिवेश के लिए जाना जाता है. सालों से, शहर के निवासी और व्यवसाय मालिक कबूतरों के मल के निरंतर हमले से जूझ रहे हैं. सेंट्रल स्क्वायर, न्यूमर्कट, जो स्थानीय व्यवसायों और सामुदायिक कार्यक्रमों का केंद्र है, को पक्षियों के आक्रमण का खामियाजा भुगतना पड़ा है.
निराश रेस्टोरेंट मालिकों, मार्किट वेंडर और रोजमर्रा के नागरिकों की शिकायतें चरम पर हैं. पक्षियों की बीट से पैदा होने वाली गंदगी और इससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को देखते हुए कठोर उपायों की मांग की गई है. लोकल लोगों का कहना है, “हम वर्षों से इस समस्या से निपटने की कोशिश कर रहे हैं. कबूतर नियंत्रण से बाहर हैं, और यह हमारे व्यवसाय और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं."
कबूतरों को मारने से भी नहीं चला काम
पिछले साल नवंबर में, लिम्बर्ग की नगर परिषद ने एक आदमी को कबूतरों को पकड़ने और मारने के लिए नियुक्त किया था. योजना सरल लेकिन गंभीर थी: वह आदमी कबूतरों को फंसाता था, लकड़ी की छड़ी से उनके सिर पर वार करके उन्हें बेहोश कर देता था और फिर उनकी गर्दन तोड़ देता था. हालांकि, इससे पक्षियों की आबादी कम तो हुई लेकिन कई पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इसपर अपना गुस्सा जताया.
कार्यकर्ताओं के आक्रोश के कारण जनमत संग्रह की शुरुआत हुई, जिससे लिम्बर्ग के नागरिकों को इस मामले पर अपनी बात कहने का मौका मिला. इस महीने की शुरुआत में, जनमत संग्रह के नतीजे घोषित किए गए: ज्यादातर निवासियों ने कबूतरों को मारने का समर्थन किया.
एक्टिविस्ट का क्या कहना है?
हालांकि, जनमत संग्रह के नतीजे के बावजूद, लिम्बर्ग के अधिकारी अभी भी अपने विकल्पों पर विचार कर रहे हैं. शहर के प्रवक्ता जोहान्स लाउबैक ने इस बात पर जोर दिया कि इस फैसले को लागू करने के लिए तत्काल कोई समयसीमा नहीं है.
कबूतर मारने की प्रक्रिया आगे बढ़ाने के फैसले पर पशु अधिकार समूहों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया मिली है. उनका तर्क है कि यह विधि अमानवीय और बाद के लिए अप्रभावी है.कबूतरों को मारना एक क्रूर और अदूरदर्शी समाधान है. इसके लिए ज्यादा मानवीय और टिकाऊ तरीकों का पता लगाने की जरूरत है.