19 साल के लड़के ने शुरू की थी समंदर की सफाई, अब हर घंटे निकाल रहा 1500 किलो कूड़ा... जानिए The Ocean Cleanup project के बारे में

जब बोयन ने यूनान में स्कूबा डाइविंग करते हुए समंदर में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक देखा तो उनके मन में सवाल उठा, "क्या इसे साफ नहीं किया जा सकता?" इसी सवाल का जवाब ढूंढते हुए बोयन उस जगह पहुंच गए हैं जहां उनका एनजीओ दुनियाभर के समंदरों और नदियों को साफ कर रहा है.

BOYAN SLAT THE OCEAN CLEANUP
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 28 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 11:32 AM IST

पृथ्वी के बेअंत समंदरों ने हमेशा ही इस ग्रह की शोभा बढ़ाई है. लेकिन जबसे मानव ने 'सभ्यता' बसाई, इन समंदरों में कूड़ा भी बेअंत भरने लगा. करीब 11 साल पहले नीदरलैंड्स के एक लड़के ने दुनियाभर के समंदरों को साफ करने का बीड़ा उठाया था. यह काम आसान नहीं था, लेकिन नामुमकिन भी नहीं था. 

उस लड़के के मजबूत इरादों का नतीजा यह निकला कि अब 2024 में उसका प्रोजेक्ट हर घंटे समंदर से 1500 किलो कूड़ा निकाल रहा है. उस लड़के का नाम है बोयन स्लाट और उस प्रोजेक्ट का नाम है द ओशियन क्लीनअप (The Ocean Cleanup). आइए आपको बताते हैं कैसा रहा है यह सफर. 

कैसे शुरू हुआ था ओशियन क्लीनअप प्रोजेक्ट?
जब बोयन 16 साल की उम्र में यूनान में स्कूबा डाइविंग करने गए तो उन्होंने पाया कि समंदर में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक है. उनके मन में सवाल उठा, "क्या इसे साफ नहीं किया जा सकता?" इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए बोयन ने एक स्कूल प्रोजेक्ट के लिए प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या पर अध्ययन करने का फैसला किया. 

उन्होंने दुनिया के पांचों समंदरों में प्लास्टिक की मौजूदगी का अध्ययन किया और पाया कि प्रशांत महासागर में 'ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच' में दुनिया का सबसे ज्यादा समुद्री कूड़ा है. साल 2012 में बोयन ने टेडएक्स (TedX) में समुद्री कूड़े को हटाने के तरीके को लेकर एक स्पीच दी. उनकी यह स्पीच वायरल हो गई. इसी के बाद उन्होंने स्कूल छोड़कर द ओशियन क्लीनअप प्रोजेक्ट शुरू करने का फैसला किया. 

करीब 11 साल की रिसर्च और टेस्टिंग के बाद ओशियन क्लीनअप प्रोजेक्ट के पास ऐसी तकनीक और मशीनें है जिससे न सिर्फ वे समंदरों में मौजूद कूड़े को हटा रहे हैं, बल्कि नदियों में भी प्लास्टिक को रोक रहे हैं ताकि वह समंदरों तक न पहुंचे. 

कैसे काम करता है यह प्रोजेक्ट?
नदियों से समंदरों में जाने वाला कूड़ा एक चक्र में फंस जाता है. यह चक्र हर समंदर में होता है और इन्हें 'ओशियेनिक जायर' (Oceanic Gyres) कहा जाता है. एक बार प्लास्टिक इनमें फंस जाए तो वह धीरे-धीरे टूटकर माइक्रोप्लासिट की शक्ल ले लेता है. न सिर्फ इस 'माइक्रोप्लास्टिक मलबे' को साफ करना ज्यादा मुश्किल होता है, बल्कि समंदर में रहने वाले जीव इसे खाना समझकर निगल भी लेते हैं, जो उनके लिए जानलेवा साबित हो सकता है. 
 

एक इंटरसेप्टर बैरियर

इस समस्या को हल करने के लिए ओशियन क्लीनअप प्रोजेक्ट दो तरह से काम कर रहा है. अव्वल तो यह एनजीओ समंदरों में मौजूद कूड़े को निकाल रहा है. दूसरा यह नदियों के कूड़े को भी आगे नहीं बढ़ने दे रहा है. नदियों के कूड़े को निकालने के लिए यह एनजीओ 'इंटरसेप्टर' नाम की मशीन का इस्तेमाल कर रहा है. यह मशीन नदी के बहाव की मदद से कूड़े को एक कूड़ेदान में इकट्ठा करती है और फिर उसे नदी से बाहर ले जाती है. छोटी नदियों में इंटरसेप्टर बैरियर, बैरिकेड और टेंडर जैसी मशीनों को भी तैनात किया जाता है. 

बात करें समंदरों की तो ये नदियों की तुलना में कई गुना बड़े होते हैं और इनमें कूड़े को एक जगह रोकना बहुत मुश्किल होता है. इस काम को करने के लिए ओशियन क्लीनअप प्रोजेक्ट कम्प्यूटर की मदद से प्लास्टिक हॉटस्पॉट को ट्रैक करता है और फिर मछली पकड़े के जाल की तरह एक बैरियर बनाकर प्लास्टिक को इकट्ठा करता है. इसके बाद यह प्लास्टिक रिसाइकल कर दिया जाता है.

नई उड़ान भर रहा है ओशियन क्लीनअप प्रोजेक्ट
बीते एक दशक में ओशियन क्लीनअप प्रोजेक्ट ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. लेकिन यह लगातार आगे बढ़ता रहा है. नवंबर 2023 में बोयन ने खबर दी थी कि यह एनजीओ हर घंटे औसतन 750 किलोग्राम कूड़ा इकट्ठा कर रहा है. अब उन्होंने सूचित किया है कि द ओशियन क्लीनअप प्रोजेक्ट हर घंटे औसतन 1500 किलोग्राम कूड़ा समंदर से निकाल रहा है. 

बोयन ने ट्वीट किया, "2024 में अब तक, द ओशियन क्लीनअप साल के हर घंटे औसतन 1500 किलोग्राम कचरा इकट्ठा कर रहा है." इस एनजीओ का लक्ष्य 2040 तक 90 प्रतिशत तैरते हुए प्लास्टिक को साफ करना है. इस लक्ष्य के साथ बहुत हद तक मुमकिन है कि द ओशियन क्लीनअप 1500 किलो के आंकड़े को बहुत जल्द पीछे छोड़ दे. 

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