Israel vs Hamas: वह इजराइली प्रधानमंत्री जिनकी कर दी गई थी हत्या, इजराइल और फिलिस्तीन के बीच करवाना चाहते थे समझौता... पढ़िए Yitzhak Rabin की हत्या की कहानी

इजराइल की स्थापना के बाद रबिन ने ब्रिटिश स्टाफ कॉलेज से 1953 में ग्रैजुएशन की और 1964 में इजराइली सेना प्रमुख बन गए. छह दिन के युद्ध (Six-Day War 1967) में इजराइल की जीत के बाद रबिन को एक हीरो के तौर पर देखा जाने लगा. वह एक ऐसे शख्स माने जाने लगे जो इजराइल को सुरक्षित रख सकता था. 

Yitzhak Rabin
शादाब खान
  • नई दिल्ली,
  • 20 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 1:44 PM IST
  • इजराइल के पांचवें प्रधानमंत्री थे रबिन
  • फिलिस्तीन के साथ किया था ऑस्लो संधि पर हस्ताक्षर

इजराइल के वर्तमान प्रधानमंत्री बेन्यमिन नेतन्याहू के निजी आवास पर हुए ड्रोन हमले ने बीते दिनों में सुर्खियां बटोरीं. हमले के बाद नेतन्याहू ने बयान जारी करते हुए कहा कि वह किसी भी सूरत में पिछे नहीं हटेंगे और इजराइल यह युद्ध जीतकर ही रहेगा. 

युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने शायद इस हमले की उम्मीद की होगी, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब शांति की ओर बढ़ रहे इजराइल में एक प्रधानमंत्री पर जानलेवा हमला हुआ था. हैरानी की बात यह है कि प्रधानमंत्री यित्ज़हाक रबिन (Yitzhak Rabin) पर हुए इस हमले को अंजाम देने वाला एक इजराइली ही था. और हमले में प्रधानमंत्री रबिन की मौत हो गई थी.

कौन थे प्रधानमंत्री रबिन?
यरुशलम (Jerusalem) में एक जनवरी 1922 को जन्मे रबिन इजराइल के प्रधानमंत्री बनने से पहले एक सैनिक थे. कदूरी एग्रिकल्चरल स्कूल से ग्रैजुएशन करने वाले रबिन 1941 में हगानाह (1920-48 के बीच फिलिस्तीन में यहूदियों की सेना) का हिस्सा बन गए. साल 1948-49 में जब पहला इजराइल-अरब युद्ध हुआ तो रबिन ने यरुशलम के आसपास इजराइली सेना की अगुवाई की. साथ ही वह नेगेव में मिस्र की सेना के खिलाफ भी युद्ध के अगुवा रहे. 

छह दिवसीय युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री लेवी एश्कोल के साथ रबिन (Photo/Wikimedia Commons)

इजराइल की स्थापना के बाद रबिन ने ब्रिटिश स्टाफ कॉलेज से 1953 में ग्रैजुएशन की और 1964 में इजराइली सेना प्रमुख बन गए. छह दिन के युद्ध (Six-Day War 1967) में इजराइल की जीत के बाद रबिन को एक हीरो के तौर पर देखा जाने लगा. वह एक ऐसे शख्स माने जाने लगे जो इजराइल को सुरक्षित रख सकता था. 

सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद रबिन 1968 में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) में इजराइल के प्रतिनिधि बन गए. यहां उन्होंने बड़े अमेरिकी नेताओं के साथ रिश्ते मजबूत किए और इजराइल के लिए कई आधुनिक हथियार भी हासिल किए. रबिन इन तमाम कारणों से अपने देश के हीरो थे लेकिन एक बात थी जिसकी वजह से इजराइली चरमपंथी उनकी आलोचना करते थे- रबिन अरब देशों के साथ समझौता करने के लिए उन क्षेत्रों को खाली करना चाहते थे जो इजराइल ने 1967 की जंग में कब्जा किए थे.

जब सियासत की ओर मुड़े कदम
शांति के ऐसे ही कुछ विचारों के साथ रबिन मार्च 1973 में इजराइल लौटे और राजनीति में शामिल हो गए. वह जल्द ही चुनाव जीतकर इजराइली संसद पहुंचे और मार्च 1974 में प्रधानमंत्री गोल्डा मियर (Golda Meir) की कैबिनेट का हिस्सा बन गए. जब पीएम मियर ने इस्तीफा दिया तो पार्टी की कमान रबिन के हाथों में गई और वह इजराइल के पांचवें प्रधानमंत्री भी चुन लिए गए. 

रबिन इजराइल के इतिहास के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिसका जन्म फिलिस्तीन में हुआ था. उनसे पहले सभी प्रधानमंत्री यूरोपीय थे. प्रधानमंत्री रबिन इस मामले में भी खास थे कि वह फिलिस्तीन और अन्य अरब देशों के साथ शांति चाहते थे. उन्हें एक ऐसे नेता के तौर पर देखा गया जो इजराइल को फिलिस्तीन (Palestine) और दूसरे अरब देशों के साथ दोस्ती की ओर लेकर गया. यही बात आगे चलकर उनकी मौत का कारण भी बनी. 

ऑस्लो अकॉर्ड, और रबिन की हत्या
प्रधानमंत्री बनने के बाद रबिन के विचार उनकी नीतियों में भी साफ दिखने लगे. प्रधानमंत्री के तौर पर राबिन ने कई कब्जे वाले क्षेत्रों में नई इजरायली बस्तियां बनाने पर रोक लगा दी. उनकी सरकार ने पीएलओ (Palestine Liberation Organisation) के साथ गुप्त वार्ता. इसी का नतीजा रहा कि इज़राइल-पीएलओ के बीच सितंबर 1993 समझौता हुआ. इसे ही ऑस्लो समझौता (The Oslo Accords) कहा गया. यह समझौता दो हिस्सों में हुआ. पहले अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के सामने. दूसरा मिस्र के तबा में. 
 

प्रधानमंत्री रबिन इजराइल-फिलिस्तीन के बीच शांति का चेहरा बन गए थे. (Photo/Wikimedia Commons

इन समझौतों के तहत इज़राइल ने पीएलओ को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी. साथ ही इस समझौते के बाद वेस्ट बैंक और गज़ा पट्टी में आंशिक तौर पर शासन करने के लिए फिलिस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण (Palestinian National Authority) की स्थापना पर भी दोनों देशों के बीच सहमति हो गई. लेकिन इजराइल में कई लोगों को यह मंजूर नहीं था. 

सितंबर 1995 में मिस्र के तबा में ऑस्लो समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद रबिन ने फैसला किया कि वह इजराइल में लोगों के बीच शांति की भावना पैदा करेंगे. उन्होंने चार नवंबर 1995 को ऑस्लो संधि के समर्थन में तेल अवीव के किंग्स ऑफ इजराइल स्क्वेयर पर मार्च निकालने का फैसला किया. जब वह रैली के बाद अपनी कार की ओर बढ़ रहे थे तब यिगल अमीर नाम के एक चरमपंथी ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. 

रबिन को इस हमले में दो गोलियां लगीं. उन्हें फौरन अस्पताल ले जाया गया जहां फेफड़े पंक्चर होने और खून बहने से उनकी मौत हो गई. अमीर को फौरन गिरफ्तार कर लिया गया. अदालत में सुनवाई के बाद यिगल अमीर और उसके भाई हगई अमीर को उम्र कैद की सजा दे दी गई. दोनों ही भाइयों ने कभी भी रबिन की हत्या पर पछतावा जाहिर नहीं किया और कहा कि वे "अपने किए पर गर्व महसूस करते हैं."
 

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