समंदर को बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने पहला ऐतिहासिक इंटरनेशनल पर्यावरणीय समझौता अपनाया है. इसमें शामिल 193 देश जैव विविधता समझौते को लेकर कानूनी तौर पर बाध्य हैं. इससे समुद्री पर्यावरण की रक्षा, प्राकृतिक संसाधनों, शिपिंग और दूसरे मामलों में विवादों को निपटारे में मदद मिलेगी. इसके लिए करीब दो दशक से बातचीत चल रही थी. लेकिन अब जाकर इसको अमलीजामा पहनाया गया है. ये समझौता हाई सी में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक कानूनी ढांचा स्थापित करेगी. दुनिया के महासागरों का 60 फीसदी से अधिक हिस्सा हाई सी है. यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस समझौते का स्वागत किया. चलिए आपको 5 प्वाइंट्स में बताते हैं कि ये समझौता दुनिया के लिए क्यों जरूरी है.
देशों की सीमाओं के बाहर के समंदर की सुरक्षा-
आज हर देश अपने समुद्री सीमा क्षेत्र के जलमार्गों की सुरक्षा और उसके इस्तेमाल के लिए जिम्मेदार हैं. लेकिन पॉल्यूशन और फिशिंग से हाई सी को बचाने के लिए कोई भी कानून नहीं था. लेकिन अब इस समझौते को अपनाने के बाद हाई सी को प्रोटेक्ट करने का कानूनी रास्ता खुल जाएगा. नए समझौते का मकसद समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा, देखभाल और जिम्मेदारी पूर्ण इस्तेमाल सुनिश्चित करना है.
महासागर को साफ रखना-
इस समझौते का मकसद महासागरों की सफाई करना है. जहरीले रसायन और लाखों टन प्लास्टिक कचरा कोस्टल इकोसिस्टम में समस्या पैदा कर रहा है. मछली, समुद्री कछुए, समुद्र पक्षियां और समुद्री जीवों को खत्म कर रहा है. सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 में 17 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक महासागरों में गया है, जो समुद्री कूड़े का 85 फीसदी है. संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक अगर एक्शन नहीं लिया गया तो साल 2050 तक समंदर में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक हो सकता है. समझौते के प्रावधानों के तहत इसमें शामिल सभी देशों को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर किसी भी गतिविधियों के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का आंकलन करना होगा.
फिश स्टॉक का लगातार प्रबंधन-
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्लोबल फिश स्टॉक का अत्याधिक दोहन किया जा रहा है. यह समझौता समुद्री टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर और कैपेसिटी बिल्डिंग के महत्व को दर्शाता है. जिसमें संस्थागत क्षमता और राष्ट्रीय नियामक ढांचा या तंत्र का विकास और मजबूती शामिल है. इसमें क्षेत्रीय समुद्री संगठनों और क्षेत्रीय मात्स्यिकी प्रबंधन संगठनों के बीच बढ़ता सहयोग शामिल है.
तापमान कम करना-
ग्लोबल हीटिंग की वजह से समंदर का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है, जो समुद्री तूफानी को और बढ़ावा दे रहा है. समंदर का लेवल बढ़ रहा है. ये समझौता इन तमाम चिंताओं पर फोकस करता है और मार्गदर्शन प्रदान करता है. जिसमें महासागर मैनेजमेंट का एक एकीकृत अप्रोच शामिल है, जो इन तमामों समस्याओं से निपटने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को लचीला बनाता है. इस समझौते के प्रावधान स्थानीय समुदायों और स्वदेशी लोगों के अधिकार की रक्षा करता है. इसके साथ ही सांइटिफिक रिसर्च और फायदों को सही तरीके से बंटवारे की जरूरत को भी पहचानता है.
2030 एजेंडा को साकार के लिए जरूरी-
यूएन चीफ ने कहा कि यह समझौता समंदर के सामने आने वाले खतरों और 2030 एजेंडा के लक्ष्यों को साकार करने के लिए महत्वपूर्ण है. इसका लक्ष्य साल 2025 तक समुद्री पॉल्यूशन को घटाना करना है. इसके साथ ही फिश स्टॉक को बढ़ाना है. इसके लिए जरूरी है कि तकनीकी के जरिए अत्याधिक मछली पकड़ने को खत्म करना होगा.
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