महीने में अगर एक बार भी मिलते हैं परिवार से तो बढ़ जाती है उनकी उम्र: रिसर्च

एक स्टडी में पाया गया कि जो लोग ज्यादा सोशलाइज करते हैं तो वे उन लोगों की तुलना में ज्यादा समय तक जीवित रहते थे जो ऐसा नहीं करते थे. जिन वृद्ध लोगों से उनके दोस्त और परिवार वाले महीने में एक बार भी मिलने जाते हैं, वे लंबा जीते हैं.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 13 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 12:59 PM IST

पांच लाख लोगों पर किए गए नए शोध से पता चलता है कि अगर अपने परिवार और दोस्तों से आप महीने में एक बार मिलते रहें तो वे ज्यादा लंबा जी सकते हैं. खासकर की बढ़ती उम्र में मिलते-जुलते रहना जरूरी है. ब्रिटेन के ग्लासगो विश्वविद्यालय के रिसर्चर्स ने शुक्रवार को बीएमसी मेडिसिन में प्रकाशित एक नए अध्ययन में दोस्तों या परिवार से कभी न मिलने और मरने के बढ़ते रिस्क के बीच एक लिंक का पता लगाया है. 

सामाजिक अलगाव को पहले से ही मृत्यू के साथ जोड़ा गया है. इस नए शोध ने जीवन काल या लाइफ स्पैन पर विभिन्न प्रकार के सोशल इंट्रेक्शन के संभावित प्रभावों की जांच की है. इसमें पाया गया कि दोस्तों और परिवार से मुलाकात, वीकली ग्रुप एक्टिविटी में भाग लेना और अकेले न रहना- उम्र के लंबा होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.  

37 से 73 वर्ष के लोगों पर रिसर्च 
शोधकर्ताओं ने 37 से 73 वर्ष की आयु के 458,146 यूके वयस्कों के डेटा का उपयोग किया, जिनकी औसत आयु 56.5 थी. इन्हें 2006 और 2010 के बीच रिक्रुट किया गया था. प्रतिभागियों से सामाजिक संपर्क के पांच अलग-अलग रूपों के बारे में प्रश्न पूछे गए थे. दो सब्जेक्टिव थे - कितनी बार वे अपने किसी करीबी पर विश्वास करने में सक्षम थे और कितनी बार वे अकेलापन महसूस करते थे - और तीन ऑब्जेक्टिव थे - कितनी बार दोस्त और परिवार मिलने आते थे, कितनी बार उन्होंने वीकली ग्रुप एक्टिविटी में भाग लिया, और क्या वे अकेले रहते थे. 

जब शोधकर्ताओं ने औसतन 12.6 साल बाद (प्रत्येक व्यक्ति को कब भर्ती किया गया था इसके आधार पर) अनुसरण किया, तो उन्होंने पाया कि 33,135 प्रतिभागियों की मृत्यु हो गई थी. जो लोग कम सामाजिक मेलजोल रखते थे उनकी मृत्यु होने की ज्यादा संभावना थी. अगर परिवार या दोस्त आकर नहीं मिलते हैं तो मृत्यू का रिस्क 39% बढ़ जाता है. 
वहीं, स्टडी में पाया गया कि अगर कोई वीकली ग्रुप एक्टिविटी में भाग  ले रहा है लेकिन उससे मिलने परिवार या दोस्त नहीं आते हैं, तब भी उनकी मौत का रिस्क कम नहीं होता है. लेकिन अगर महीने में कोई अपना एक बार भी मिलता है तो मौत का रिस्क कम हो जाता है. दिलचस्प बात यह है कि लगातार मिलने से यह रिस्क और कम नहीं हुआ. 

अकेले रहना बढ़ाता है मौत का खतरा
अकेले रहना और अन्य तरीकों से अलग-थलग रहना, जैसे कि साप्ताहिक समूह की गतिविधियां न करना या नियमित रूप से परिवार और दोस्तों से मिलना, मृत्यु के रिस्क को 77% बढ़ाता है. रिसर्चर्स ने कई अन्य कारकों को भी ध्यान में रखने की कोशिश की- जैसे कि लोग कितने बूढ़े थे, उनका लिंग, उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति, क्या वे धूम्रपान करते थे और भी बहुत कुछ. और समीकरण से उन कारकों को हटाने के बाद भी यह पता चला कि ये सामाजिक संबंध मृत्यु के रिस्क के लिए महत्वपूर्ण थे. 

रिसर्चर्स ने स्टडी की सीमाओं पर प्रकाश डाला और कहा कि निष्कर्ष हर किसी पर लागू नहीं हो सकते हैं. 
स्टडी यह साबित नहीं कर सकती है कि सोशलाइजेशन की कमी मौत का कारण बनती है, लेकिन यह मौजूदा सबूतों में योगदान देता है जो सुझाव देते हैं कि अलगाव और अकेलापन खराब स्वास्थ्य का कारण बन सकता है. हालांकि, ज्यादा विश्वसनीय निष्कर्षों तक पहुंचने के लिए और ज्यादा शोध की जरूरत है.

ब्लू जोन देशों में सोशलाइजिंग है जरूरी 
सामाजिक संपर्क (सोशलाइजिंग) और लंबी उम्र के बीच संबंध नया नहीं है. वास्तव में, इसे अक्सर दुनिया के ब्लू ज़ोन में एक प्रमुख लाइफस्टाइल फैक्टर के तौर पर जाना जाता है. इन जगहों पर सबसे ज्यादा जीने वाले लोग रहते हैं. उदाहरण के लिए, जापान के ओकिनावा में, "मोई" की परंपरा है, जिसमें मजबूत सामाजिक नेटवर्क के भीतर रहना शामिल है. समान रूप से, ग्रीक द्वीप इकारिया पर, परिवार के साथ समय बिताना संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और भोजन एक साथ किया जाता है. 

 

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