अद्भुत है ये परंपरा...इंडोनेशिया के तोराजा में है लाश को निकालकर उसे सजाने की प्रथा

इंडोनेशिया के तोराजा में एक ऐसी प्रथा है जिसके तहत यहां के लोग अपने मरे हुए परिजनों को उनके ताबूत में से निकालकर उन्हें सजाते हैं, उन्हें नए कपड़े पहनाते हैं, और उनके सामने खाने-पीने का सामान रखते है.

मानेने
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 15 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 4:42 PM IST
  • ताबूत से निकालकर पहनातें हैं नए कपड़े
  • मृत्यु नहीं है जीवन का अंत

दुनिया भर में जगह-जगह अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं, कुछ त्योहार और प्रथाएं तो ऐसी जिनके बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे. इंडोनेशिया के तोराजा में भी एक ऐसी ही प्रथा है, जिसके बारे में जानकर आप हो जाएंगे. यहां के लोग एक ऐसी प्रथा का पालन करते हैं, जिसकी आपने शायद कभी कल्पना भी नहीं की होगी. यहां के लोग हर तीन साल में एक बार, अपने मरे हुए परिजनों को उनके ताबूतों से बाहर निकालते हैं, उन्हें साफ करते हैं और नए कपड़े पहनाते हैं. ऐसा करके वो अपने मरे हुए परिजनों के की जिंदगी को याद करते हैं. इस त्योहार को मानेने कहा जाता है. तोराजा के लोगों के लिए ये एक बेहद ही खास उत्सव है, जिसमें वो अपने मरे हुए करीबीयों को अपने पास ही पाते हैं.

ताबूत से निकालकर पहनातें हैं नए कपड़े
सुलावेसी के इंडोनेशियाई द्वीप पर तोराजा के लोग लाशों को परिवार का एक जरूरी हिस्सा मानते हैं. अंग्रेजी में मानेने त्योहार का मतलब है 'शवों को साफ करने का समारोह'. द्वीप के लोगों का मानना ​​है कि मृत्यु के बाद, उनके करीबी लोगों की आत्माएं पास रहती हैं, और उन्हें देखभाल की जरूरत होती है. इसलिए वो उन्हें खाना, पानी यहां तक कि सिगरेट भी देते हैं. तोराजा में जब भी कोई मरता है तो उसके परिवार वाले और रिश्तेदार उसकी लाश को प्रिजर्व करके उसे ममी (Mummy) बना देते हैं. जिससे लाश में जल्दी सड़न पैदा ना हो, और उसे तीन साल बाद उन्हें ताबूत से निकाला जा सके. 

मृत्यु नहीं है जीवन का अंत
तोराजा के लोगों का मानना है कि मौत जीवन का अंत नहीं है, बल्कि वो इसे आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत मानते हैं. कब्रों को खोलने के बाद, वो लाशों को साफ करते हैं और उन्हें फिर से नए कपड़े पहनाते हैं. वे अपने प्रियजनों के पर्सनल सामान जैसे ज्वेलरी, चश्मा और बहुत कुछ अपने पास रखते हैं. इसी की तर्ज पर थाईलैंड में एक ऑफबीट डेथ-थीम वाला कैफे भी है.

भैंस और बैल की दी जाती है बलि 
लाश को दफनाने की प्रक्रिया भैंस और बैल की बलि से शुरू होती है. तोराजा के लोग तब मृतक के घर को सजाने के लिए भैंस और बैल की सींगों का उपयोग करते हैं. ज्यादा से ज्यादा सींग दिवंगत के लिए अधिक सम्मान का प्रतीक हैं. इसके अलावा, लाशों को आमतौर पर लकड़ी के ताबूतों में रखकर जमीन में दफनाने के बजाय पत्थर की कब्रों के अंदर दफनाया जाता है. अगर कोई बच्चा मर जाए तो उसे पेड़ों के खोखले में रखा जाता है. सड़न से बचाने के लिए लोग लाश को कपड़ों की कई परतों में लपेटते हैं.

महंगा है अंतिम संस्कार 'रंबू सोलो' 
तोराजा के लोगों के लिए लाश दफनाना सबसे महत्वपूर्ण अवसरों में से एक है. इतना ही नहीं यहां के लोग जीवन भर पैसे इसलिए बचाते हैं जिससे वो सारा पैसा अपने अंतिम संस्कार पर खर्च कर सकें. तोराजा में अंतिम संस्कार को 'रंबू सोलो' के नाम से जाना जाता है. ये अंतिम संस्कार काफी महंगा होता है, क्योंकि इसमें कई तरह की तैयारियां होती हैं. कई बार तो लोग अंतिम संस्कार तब तक नहीं करते जब तक उनके पास अच्छे से अंतिम संस्कार करने के पैसे न हों. मरने के बाद वो लाश को एक अलग कमरे में रख देते हैं, और उसे ऐसा ट्रीट करते हैं, मानो वो इंसान बस बीमार हो. 

दुनिया भर से आते हैं पर्यटक 
इस त्योहार को देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं. इस त्योहार को मनाते के समय, कुछ पुरुष लोक गीत गाते हैं. कई विदेशी इस त्योहार को डरावना और अजीब मानते हैं. लेकिन तोराजा के लोगों के लिए ये एक परंपरा है, जो उन्हें मृत्यु से परे अपने परिवार के सदस्यों के साथ हमेशा के लिए जोड़े रखती है.

 

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