नॉनस्टिक कुकवेयर, ग्रीस-रेसिस्टेंट फूड पैकेजिंग, और वाटरप्रूफ कपड़े ये सभी ऐसे प्रोडक्ट हैं जिन्हें हम लगभग हर दिन इस्तेमाल करते हैं. इन चीजों पर पानी, दाग या तेल न चिपके इसके लिए इनपर केमिकल लगाए जाते हैं. इन केमिकल्स को इंसान खुद बनाते हैं, इसलिए इन्हें फॉरएवर केमिकल्स कहा जाता है. इंसानों के बनाये इन केमिकल्स को पीएफएएस या पॉलीफ्लोरोएल्किल सब्सटांस कहा जाता है. लेकिन अब ये केमिकल्स हमारे घरों, हमारे ऑफिस यहां तक कि हमारे किचन में भी अपनी जगह बना चुके हैं. लेकिन इनके नुकसान भी हैं.
इसी नुकसान को देखते हुए अमेरिका में पहली बार नल से आ रहे पानी में फॉरएवर केमिकल को लिमिट करने का निर्देश दिया गया है.
स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए काफी खतरनाक
पहली नजर में, पॉलीफ्लोरोएल्काइल सब्सटांस (PFAS) नुकसान न पहुंचाने वाले केमिकल लग सकते हैं. क्योंकि हम अपनी रोजमर्रा की चीजों में इनका इस्तेमाल करते हैं. लेकिन असलियत इससे काफी अलग है. पीएफएएस आपके स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए काफी खतरनाक है. इसी को देखते हुए इसे लेकर बारीकी से जांच और जागरूकता की बात कही जा रही है.
उपयोगिता के बावजूद, पीएफएएस में कुछ केमिकल गुण होते हैं जो उन्हें लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहने देते हैं. इसका नतीजा है कि ये पदार्थ दुनिया भर में पानी, मिट्टी और जीवित जीवों में प्रवेश कर चुके हैं. इसमें आर्कटिक ग्लेशियर से लेकर 98% अमेरिकी आबादी भी शामिल है.
पीने के पानी में भी है ये केमिकल
पीएफएएस को लेकर सबसे ज्यादा चिंताजनक पहलु ये है कि ये अब पीने के पानी में आ गया है. हाल के अनुमानों से पता चलता है कि अमेरिका के कम से कम 45% नल के पानी में अब सामान्य प्रकार के पीएफएएस का पता लगाया जा सकता है. इसके दूरगामी नुकसान को देखते हुए और इसके खतरे को कम करने के लिए कार्रवाई की तत्काल जरूरत की मांग हो रही है.
PFAS से है लोगों के स्वास्थ्य को खतरा
PFAS केमिकल लोगों के स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचा सकता है. समय के साथ जमा होता जाता है. पीएफएएस पर हुई कई रिसर्च से पता चला है कि इससे लोगों को थायरॉयड, हाई कोलेस्ट्रॉल लेवल, लिवर खराब होना और अलग-अलग तरह के कैंसर, जैसे किडनी और टेस्टिकुलर कैंसर का खतरा हो सकता है.
सबसे ज्यादा चिंताजनक है कि इसका असर गर्भवती महिलाओं और शिशुओं पर भी पड़ता है. अध्ययनों से पता चलता है कि नवजात शिशु पर जन्म से पहले ही इसका प्रभाव पड़ सकता है. इसमें जन्म के समय कम वजन, टीके की प्रभावशीलता में कमी और माताओं में स्तनपान की क्षमता में कमी शामिल है.