क्या होता है गुरिल्ला युद्ध, जिसके जरिए चीन को करारा जवाब दे सकता है ताइवान

गोरिल्ला युद्ध का सिद्धांत है - 'मारो और भाग जाओ'. इसमें सैनिक छिपकर हमला करते हैं और फिर भाग जाते हैं. वैसे ताइवान अपने आप में सशक्त है और वह तकनीक के मामले में भी बहुत आगे है और उसके पास आधुनिक हथियारों की भी कोई कमी नहीं है. 

गुरिल्ला युद्ध
अपूर्वा राय
  • नई दिल्ली,
  • 05 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 11:51 AM IST
  • ताइवान तकनीक के मामले में भी बहुत आगे है.
  • ताइवान के सैनिक गोरिल्ला युद्ध में माहिर हैं.

यूनाइटेड स्टेट्स हाउस की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान पहुंचने से अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ गया है. चीन ने ताइवान को घेरने के लिए उसकी सीमा के आसपास घेराबंदी शुरू कर दी है. चीन ने ताइवान के उत्तर पूर्व और दक्षिण पश्चिम सीमा के पास समुद्र में कई डॉन्गफेंग बैलेस्टिक मिसाइलें दागी हैं. हालांकि ताइवान भी चीन के मंसूबों को लेकर सतर्क हो गया है. ताइवान ने भी किसी भी तरह के हमले से निपटने के लिए तैयारी तेज कर दी गई है.

ताइवान चीन के 20 लाख सैनिकों से लड़ने के लिए गोरिल्ला युद्ध की नीति अपना सकता है क्योंकि वहां के सैनिकों को इसमें महारथ हासिल है. एक रिपोर्ट के मुताबिक ताइवान में मिलिट्री रिजर्व सिस्टम में 25 लाख सैनिक हैं और 10 लाख सिविल डिफेंस वॉलेंटियर्स हैं. यह संख्या ताइवान की आबादी की 15 फीसदी है. वहां 10 में से लगभग हर 4 आदमी गन चलाने की ट्रेनिंग ले रहा है. ताइवान अपने आप में सशक्त है और ताइवान तकनीक के मामले में भी बहुत आगे है और उसके पास आधुनिक हथियारों की भी कोई कमी नहीं है. 

क्या होता है गोरिल्ला युद्ध

गोरिल्ला युद्ध अर्धसैनिकों की टुकड़ियों अथवा अनियमित सैनिकों द्वारा विरोधी सेना के पीछे या पार्श्व में आक्रमण करके लड़े जाते हैं. गोरिल्ला युद्ध का सिद्धांत है - 'मारो और भाग जाओ'. इसमें सैनिक छिपकर हमला करते हैं और फिर भाग जाते हैं. इस युद्ध में कायदे कानून नहीं होते, क्योंकि इस युद्ध की रणनीति दुश्मन पर वार कर छुप जाने की होती है. भारत में इस युद्ध का प्रयोग सबसे पहले छत्रपति शिवाजी राव ने मुगलों के विरुद्ध किया था. इसी के दम पर उन्होंने मुगलों की सेना का बहुत नुकसान पहुंचाया और कई युद्ध जीते थे. ज्यादातर इस युद्ध तकनीक का इस्तेमाल आतंकवादी करते हैं.

क्यों है अमेरिका-चीन आमने सामने

चीन ताइवान को एक अपने एक प्रांत के रूप में देखता है. दूसरी ओर, ताइवान खुद को एक आजाद मुल्क मानता है. चीन चाहता है कि ताइवान उनके कब्‍जे को मानने के लिए मजबूर हो जाए. चीन कई बार बल का प्रयोग कर ताइवन को खुद में शामिल करने की रणनीति अपना चुका है. इसी बीच अमेरिका की तीसरी सबसे शक्तिशाली शख्सियत नैंसी पेलोसी के ताइवान पहुंचने के बाद से तनाव और बढ़ गया. अमेरिका की विदेश नीति के लिहाज से ताइवान काफी अहम हैं.

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