Cluster Bomb क्या है और कितना खतरनाक है, क्यों US इसे दे रहा Ukraine को, जानें इस डील पर दुनिया के अधिकांश देश क्यों जता रहे आपत्ति 

Cluster Bomb का सबसे पहले प्रयोग द्वितीय विश्वयुद्ध के समय तत्कालीन सोवियत संघ और जर्मनी की फौजों ने किया था. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद के वर्षों में कम से कम 15 देशों ने इसका इस्तेमाल किया है. 

Cluster Bombs (photo social media)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 12 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 7:52 PM IST
  • क्लस्टर बमों को विमानों, तोपखाने और मिसाइलों से दागा जा सकता है
  • अब तक 15 देश क्लस्टर बमों का कर चुके हैं इस्तेमाल 

यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच यूएस के एक फैसले का दुनिया के अधिकांश देश विरोध कर रहे हैं. यूक्रेन को अमेरिका क्लस्टर बम देने जा रहा है. यूके, कनाडा, न्यूजीलैंड, स्पेन जैसे देश इस बम के इस्तेमाल के विरोध में हैं. आइए जानते हैं क्लस्टर बम क्या है और कितना खतरनाक होता है?

क्लस्टर बम क्या है
क्लस्टर बम असल में सैकड़ों छोटे-छोटे बमों का संग्रह होता है. जब इन बमों को दागा जाता है तब ये बीच रास्ते में फट कर बहुत बड़े इलाके को नुकसान पहुंचाते हैं. इससे टारगेट के आसपास भी भारी नुकसान पहुंचता है. इसका इस्तेमाल अधिकतर इंफेंट्री यूनिट या दुश्मन देश की सेना के जमावड़े को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है. रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति (आईसीआरसी) के अनुसार, इन्हें विमानों, तोपखाने और मिसाइलों से दागा जा सकता है. क्लस्टर बमों को हवा और जमीन दोनों जगहों से दागा जा सकता है. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक एकल क्लस्टर 30 हजार वर्ग मीटर तक के क्षेत्र को कवर कर सकता है. यह बम लंबे समय तक लैंडमाइंस की तरह बिना विस्फोट के पड़े रह सकते हैं. जब कोई इनके संपर्क में आएगा तो इनमें विस्फोट हो सकता है. 

कई सालों तक रहने लायक नहीं बचती है जगह
इन बमों का जहां इस्तेमाल होता है, वहां कई सालों तक रहने लायक जगह नहीं बचती. कई बम में महीने या सालों बाद भी विस्फोट हो सकता है. ऐसे में पुनर्वास और लोगों के अपने घर वापस आने में दिक्कत होती है. इस बम से बच्चों को विशेष रूप से चोट लगने का खतरा होता है क्योंकि बम किसी आवासीय या खेत क्षेत्र में छोड़े गए एक छोटे खिलौने के समान हो सकते हैं और अक्सर बच्चे इसे जिज्ञासावश उठा लेते हैं. मानवाधिकार संस्थाएं भी इन बमों का विरोध करती हैं. 

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सबसे पहले किया गया था प्रयोग
क्लस्टर बमों का सबसे पहले प्रयोग द्वितीय विश्वयुद्ध के समय साल 1943 में तत्कालीन सोवियत संघ और जर्मनी की फौजों ने किया था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद के वर्षों में कम से कम 15 देशों ने इसका इस्तेमाल किया है. इनमें इरिट्रिया, इथियोपिया, फ्रांस, इस्राइल, मोरक्को, नीदरलैंड, ब्रिटेन, रूस और अमेरिका शामिल हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 200 प्रकार के क्लस्टर बम बनाए जा चुके हैं.

108 देश संधि पर कर चुके हैं हस्ताक्षर
2008 में डबलिन में कन्वेंशन ऑन क्लस्टर म्यूनिशन नाम से अंतरराष्ट्रीय संधि अस्तित्व में आई. इस संधि के तहत क्लस्टर बमों को रखने, बेचने या इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी गई थी. हालांकि, दुनिया के कई देशों ने इस संधि का विरोध किया और इसके सदस्य नहीं बने. जिसमें भारत, रूस, अमेरिका, चीन, पाकिस्तान और इस्राइल शामिल थे. सितंबर 2018 तक इस संधि पर दुनिया के 108 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं. क्लस्टर बम को वैश्विक तरीके से बैन करने का प्रयास उसके मानवीय, पर्यावरणीय और नैतिक दुष्प्रभावों के कारण किया गया है. 

अमेरिका क्लस्टर बम यूक्रेन क्यों भेज रहा 
यूक्रेन की सेनाओं के पास गोले-बारूदों की बेहद कमी है. यूक्रेन ने अमेरिका से रूसी पैदल सेना को निशाना बनाने के लिए क्लस्टर हथियारों की आपूर्ति को फिर से स्टॉक करने के लिए कहा है. इसे स्वीकार करना वाशिंगटन के लिए एक आसान निर्णय नहीं रहा है. अमेरिका में इस मुद्दे पर कई महीने से बहस चल रही थी. क्लस्टर बम अमेरिका की तरफ से 80 करोड़ डॉलर के उस नए सैन्य सहायता पैकेज का हिस्सा है, जो यूक्रेन को भेजा जाएगा. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलीवान ने कहा है कि अमेरिका क्लस्टर बमों के ऐसे संस्करण भेजेगा, जिनकी डूड रेट बहुत कम होगी. इसका मतलब है कि इसमें ऐसे छोटे-छोटे बम बहुत कम निकलेंगे, जो फटेंगे नहीं.

 

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