हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव दिया, जिसमें इज़राइल से गोलान हाइट्स का कब्जा छोड़ने के लिए कहा गया. इस प्रस्ताव के समर्थन में भारत सहित 91 देशों ने वोट किया. इस दस्तावेज़ में कहा गया है, "UNGA ने अपनी मांग दोहराई है कि प्रासंगिक सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुपालन में इज़राइल 4 जून, 1967 की सीमा तक सभी कब्जे वाले सीरियाई गोलान से हट जाए." आपको बता दें कि 1967 में छह दिवसीय युद्ध में इज़राइल ने सीरिया से गोलान हाइट्स पर कब्ज़ा कर लिया था.
अब यह मामला एक बार फिर चर्चा में है क्योंकि यूएन में इजराइल को अपना कब्जा छोड़ने के लिए कहा गया है. भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, चीन, लेबनान, ईरान, इराक और इंडोनेशिया सहित 91 देशों ने संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया. इस बीच, 8 देशों - ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, पलाऊ, माइक्रोनेशिया, इज़राइल, कनाडा और मार्शल द्वीप समूह ने इसके खिलाफ मतदान किया. यूक्रेन, फ्रांस, जर्मनी, डेनमार्क, बेल्जियम, जापान, केन्या, पोलैंड, ऑस्ट्रिया और स्पेन सहित 62 देशों ने इसमें भाग नहीं लिया.
क्या है गोलान हाइट्स का मामला
गोलन हाइट्स सीरिया में एक पहाड़ी इलाका है और यहां से सीरिया की राजधानी दमिश्क पर नजर रखी जा सकती है. साल 1967 में इज़राइल ने छह दिवसीय युद्ध में इस इलाके के ज्यादातर क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया और 1981 में इसे अपनी सीमारेखा में मिलाने की घोषमा कर दी. हालांकि, इस एकतरफा कब्जे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं दी गई थी, और सीरिया इस क्षेत्र की वापसी की मांग लगातार करता आ रहा है.
1973 के मध्य पूर्व युद्ध में सीरिया ने गोलान हाइट्स को फिर से हासिल करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा. इज़राइल और सीरिया ने 1974 में युद्धविराम पर हस्ताक्षर किए और तब से गोलान अपेक्षाकृत शांत था. साल 2000 में, इज़राइल और सीरिया ने गोलान की संभावित वापसी और शांति समझौते पर अपनी हाई-लेवल टॉक की. लेकिन बात नहीं बनी.
इज़राइल गोलान क्यों चाहता है?
सुरक्षा के लिए- इज़राइल का कहना है कि सीरिया में सिविल वॉर पठार को इज़राइली शहरों और उसके पड़ोसी की अस्थिरता के बीच एक बफर जोन के रूप में रखने की जरूरत को दर्शाता है. इज़राइल सरकार का कहना है कि उन्हें यह भी डर है कि सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद का सहयोगी ईरान, इज़राइल पर हमले शुरू करने के लिए सीमा के सीरियाई हिस्से पर स्थायी रूप से खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रहा है.
दोनों पक्षों को गोलान के जल संसाधनों और प्राकृतिक रूप से उपजाऊ मिट्टी का भी लालच है. सीरिया का कहना है कि इजराइल के कब्जे वाले गोलान का हिस्सा अभी भी उसका क्षेत्र है और उसने इसे वापस करने की मांग की है.
गोलान में कौन रहता है
इजराइल के कब्जे वाले गोलान में 40,000 से ज्यादा लोग रहते हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा ड्रुज़ निवासी हैं. ड्रुज़ एक अरब अल्पसंख्यक हैं जो इस्लाम की एक शाखा का पालन करते हैं और सीरिया में इसके कई अनुयायी लंबे समय से असद शासन के प्रति वफादार रहे हैं. गोलान पर कब्ज़ा करने के बाद, इज़राइल ने ड्रूज़ को नागरिकता का विकल्प दिया, लेकिन ज्यादातर ने इसे अस्वीकार कर दिया और अभी भी वे सीरियाई के रूप में पहचान करते हैं. लगभग 20,000 अन्य इजराइली निवासी भी वहां रहते हैं, उनमें से कई खेती और पर्यटन में काम करते हैं.
2011 में सीरिया में गृह युद्ध शुरू होने से पहले, इजराइली और राष्ट्रपति बशर अल-असद के प्रति वफादार सीरियाई बलों के बीच एक गतिरोध था. लेकिन 2014 में सरकार विरोधी इस्लामी विद्रोहियों ने सीरियाई क्षेत्र के कुनीत्रा प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया. विद्रोहियों ने असद की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया और क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र की सेना पर भी हमला कर दिया, जिससे उन्हें अपने कुछ पदों से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा. यह क्षेत्र 2018 की गर्मियों तक विद्रोहियों के नियंत्रण में रहा. असद की सेनाएं अब कुनेइत्रा क्रॉसिंग के सीरियाई हिस्से के नियंत्रण में वापस आ गई हैं, जिसे अक्टूबर 2018 में फिर से खोला गया.
हालांकि, अब एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र में मांग उठी है कि इजरायइल को गोलान पर अपना कब्जा छोड़ दे और भारत जैसे देश भी इसी समर्थन में हैं.