The World Mosquito Program: वोल्बाचिया तरीके से मच्छर-जनित बीमारियों को रोक रहा है यह प्रोग्राम, जानिए क्या है यह तरीका

The World Mosquito Program की मदद से कई देशों में मच्छर-जनित बीमारियों को कम किया जा रहा है. आखिर क्या है यह प्रोग्राम और कैसे करता है काम.

The World Mosquito Program
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 19 जून 2023,
  • अपडेटेड 2:45 PM IST
  • ओशिनिया, एशिया, यूरोप और अमेरिका के देशों में चल रहा है प्रोग्राम
  • प्रोग्राम की 12 देशों में परियोजनाएं चल रही हैं

एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल सात लाख से ज्यादा लोगों की मौत मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारियों की वजह से होती है. मच्छरों में भी मादा मच्छर हानिकारक वायरस जैसे डेंगू, जीका और चिकनगुनिया आदि को इंसानों मे फैलाती हैं. इसे रोकने के लिए The World Mosquito Program या विश्व मच्छर कार्यक्रम (WMP) चलाया जा रहा है. 

WMP, मोनाश विश्वविद्यालय के स्वामित्व वाली कंपनियों का एक नॉन-प्रॉफिट ग्रुप है जो वैश्विक समुदाय को डेंगू, जीका, पीला बुखार और चिकनगुनिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों से बचाने के लिए काम करता है. 

वोल्बाचिया तरीके से कर रहे हैं काम 
विश्व मच्छर कार्यक्रम की इनोवेटिव बोल्वाचिया विधि दुनिया भर के समुदायों को मच्छर जनित रोग के प्रसार को रोकने में मदद कर रही है. वोल्बाचिया एक छोटा-सा बैक्टीरिया है, जिसका उपयोग करके अविश्वसनीय चीजें कर सकते हैं. मच्छर जनित बीमारियों को रोकने के लिए यह सुरक्षित, प्राकृतिक और प्रभावी तरीका दशकों से रिसर्च और अत्याधुनिक तकनीक के माध्यम से विकसित किया गया है. यह उस हर जगह काम करता है जहां एडीज एजिप्टी पाया जाता है. 

विश्व मच्छर कार्यक्रम के तहत ओशिनिया, एशिया, यूरोप और अमेरिका के देशों में काम हो रहा है, और ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, फ्रांस और पनामा में कार्यालय स्थापित किए गए हैं. प्रोग्राम की 12 देशों में परियोजनाएं चल रही हैं और वोल्बाचिया मच्छर 10 मिलियन से अधिक लोगों तक पहुंच चुके हैं. जिन इलाकों में वोल्बाचिया हाई-लेवल पर सेल्फ-सस्टेन करता है, वहां निगरानी से पता चलता है कि वायरस का संचरण बहुत कम हो गया है. 

कैसे करता है काम 
वोल्बाचिया अत्यंत सामान्य जीवाणु हैं जो 50 प्रतिशत कीट प्रजातियों में स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं, जिनमें कुछ मच्छर, फ्रूट फ्लाइज, पतंगे, ड्रैगनफ़्लाइज़ और तितलियां शामिल हैं. वोल्बाचिया मनुष्यों और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है. वोल्बाचिया कीट कोशिकाओं के अंदर रहता है और एक कीट के अंडों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक फैलता है. 

रिसर्चर्स ने पाया कि जब एडीज एजिप्टी मच्छर वोल्बाचिया को ले जाते हैं, तो बैक्टीरिया डेंगू, जीका, चिकनगुनिया और पीले बुखार जैसे वायरस से मुकाबला करता है. इससे वायरस के लिए मच्छरों के अंदर प्रजनन करना कठिन हो जाता है और मच्छरों के एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में वायरस फैलाने की संभावना बहुत कम होती है. इसका मतलब यह है कि जब एडीज एजिप्टी मच्छर प्राकृतिक वोल्बाचिया बैक्टीरिया ले जाते हैं, तो डेंगू, जीका, चिकनगुनिया और पीले बुखार जैसे वायरस का संचरण कम हो जाता है. 

इसलिए, विश्व मच्छर कार्यक्रम में, टीम वोल्बाचिया मच्छरों का प्रजनन करती है. फिर, स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी में, इन्हें मच्छर जनित बीमारियों से प्रभावित क्षेत्रों में छोड़ दिया जाता है. जिसका अर्थ है कि स्थानीय मच्छरों की आबादी में वोल्बाचिया आने के बाद समुदायों में बीमारी का रिस्क कम हो जाता है. 

प्रभावी है यह तरीका 
साल 2022 में, WMP के ब्राज़ील चैप्टर ने देश के मध्य-पश्चिमी शहर कैंपो ग्रांडे में 17 पब्लिक स्कूलों के साथ मिलकर काम किया. लगभग 1,600 छात्रों को लगभग 16 हफ्तों में 2.5 मिलियन वोल्बाचिया मच्छरों का प्रजनन करने के लिए खास किट दीं ताकि बच्चे उचित मच्छर सुरक्षा के बारे में सीखें. हालांकि, ब्राजील में डब्ल्यूएमपी का संचालन करने वाले लुसियानो एंड्रेड मोरेरा का कहना है कि यह संपूर्ण समाधान नहीं है.

टीके और कीटनाशकों के साथ वोल्बाचिया एक और टूल है मच्छरजनित बीमारियों से बचने का. यह कार्यक्रम दुनिया में कई जगह पॉजिटिव परिणाम दिखा रहा है. उदाहरण के लिए, एयोग्याकार्ता, इंडोनेशिया में इस तरीके को अपनाने के बाद डेंगू के मामलों में 77 फीसदी की कमी देखी गई है. 

 

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