अपनी आजादी के बाद से सबसे खराब आर्थिक स्थिति से जूझ रहे श्रीलंका में सोमवार को 21वां संविधान संशोधन कैबिनेट के समक्ष मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा. इस संशोधन विधेयक के पेश होने के बाद श्रीलंका में क्या कुछ बदलेगा आइए जानते हैं.
क्या था 19वां और 20वां संविधान संशोधन
श्रीलंका के 21वें संविधान संशोधन को समझने के लिए 19वें और 20वें संविधान संशोधन का समझना बेहद जरूरी है. श्रीलंका में 19वां संविधान 2015 में पारित किया गया था, इस संशोधन के बाद से श्रीलंका के राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री को पद से हटाने की शक्तियां खत्म हो गई थीं. इसके लिए श्रीलंका के संविधान के अनुच्छेद 46(2)और 48 में संशोधन किया गया था. इसके जरिए केंद्रीय मंत्री को उनके पद से तभी हटाया जा सकता था जब श्रीलंका का प्रधानमंत्री किसी कारणवश अपने पद पर न रहें. या फिर उन्हें पद से तब हटाया जा सकता है जब श्रीलंका की संसद श्रीलंका की किसी सरकारी नीति को खारिज कर दे. या फिर श्रीलंका की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दे. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य थे.
श्रीलंका का 20वां संविधान संशोधन 2020 में पारित किया गया था. इसने 19 (ए) को पूरी तरह से खत्म कर दिया था. इसमें राष्ट्रपति की शक्तियां बढ़ा दी गई थीं. दोहरी नागरिकता वाले लोगों को संसद में बने रहने का अधिकार दिया गया था. सभी शक्तियां कार्यपालिका में हाथ में आ गई थीं.
श्रीलंका में 21वां संविधान संशोधन आने से क्या बदलाव होगा
इस संशोधन के बाद श्रीलंका में एक बार फिर से राष्ट्रपति की शक्तियां सीमित हो जाएंगी और संसद शक्तिशाली हो जाएगी.
20 (ए) को 19वें संशोधन को रद्द कर लाया गया था, जिसमें संसद के पास अधिक शक्तियां थीं. इसके आने से प्रधानमंत्री की शक्तियां बढ़ जाएंगी. इस वक्त रनिल विक्रिमसिंघे श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं.
केंद्रीय बैंक के गवर्नर की नियुक्ति का अधिकार संवैधानिक परिषद के पास होगा.
21ए के अनुसार दोहरी नागरिकता वाले सांसदों के लिए संसद में बने रहना असंभव हो जाएगा.