नेपाल के शेरपा तेनजिंग नोर्गे, माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचने वाले पहले पर्वतारोही थे और उनके साथ न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी भी थे. 29 मई, 1953 को माउंट एवरेस्ट की चोटी फतेह करने वाले इन पर्वतारोहियों के सम्मान में World Everest Day मनाया जाता है. पहली बार यह दिन नेपाल सरकार की औपचारिक घोषणा के बाद 2008 में 29 मई को मनाया गया था.
आपको बता दें कि सागरमाथा इस चोटी का प्राचीन संस्कृत और नेपाली नाम है, जिसे बाद में एवरेस्ट के नाम से जाना गया. तिब्बती भाषा में, सबसे ऊंचे पर्वत को "चोमोलुंगमा" या "विश्व की मां देवी" के रूप में जाना जाता है. साल 1865 में इसका नाम जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा गया था, जो भारत के पूर्व सर्वेयर जनरल थे.
मैन ऑफ द एवरेस्ट बने तेनजिंग
नोर्गे नेपाल के रहने वाले हैं और अपनी आत्मकथा, 'मैन ऑफ एवरेस्ट: द ऑटोबायोग्राफी ऑफ तेनजिंग' में नोर्गे ने उल्लेख किया है कि उनका जन्म और पालन-पोषण पूर्वोत्तर नेपाल के सोलुखुम्बु जिले के तेंगबोचे गांव में हुआ था. हालांकि, उनके बेटे, जामलिंग तेनजिंग नोर्गे ने 'टचिंग माई फादर्स सोल: ए शेरपाज़ सेक्रेड जर्नी टू द टॉप ऑफ़ एवरेस्ट' किताब में लिखा है कि नोर्गे का जन्म तिब्बत के यू-त्सांग में हुआ था और वह नेपाल के थामे गांव में पले-बढ़े थे.
तेनजिंग नोर्गे ने छह एवरेस्ट अभियानों में भाग लिया, लेकिन कोई भी कभी भी माउंट एवरेस्ट के शिखर पर नहीं पहुंचा, जो 8,849 मीटर (29,032 फीट) पर है. अत्यधिक कम तापमान और तेज हवाएं, भारी बर्फ और ऑक्सीजन की कमी के कारण 1924 के अभियान के जॉर्ज मैलोरी और एंड्रयू इरविन सहित 300 से अधिक पर्वतारोहियों की मौत हुई.
सातवें प्रयास में किया एवरेस्ट फतेह
अपने सातवें प्रयास में नोर्गे भाग्यशाली रहे. वह और हिलेरी 29 मई, 1953 को सुबह 11.30 बजे शिखर पर पहुंचे और ऐसा करने वाले वे पहले दो पर्वतारोही थे. नोर्गे को उस वर्ष क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय से जॉर्ज मेडल, नेपाल के ऑर्डर ऑफ द स्टार, प्रथम श्रेणी और 1959 में अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मानों में पद्म भूषण मिला. सितंबर 2013 में नेपाल सरकार ने एक पूरी चोटी उनके नाम कर दी.