साल 1992 में इंदौर के प्रकाश अग्रवाल ने जेड ब्लैक (Zed Black Agarbatti) के साथ अपने बिजनेस की शुरुआत की थी. इंदौर में अपने घर के गैरेज में उन्होंने मैसूर डीप परफ्यूमरी हाउस (MDPH) की शुरुआत की थी. आज करीब 30 साल बाद, ये कंपनी देशभर में जानी जा रही है. 4000 कर्मचारियों के साथ वे हर दिन तकरीबन तीन करोड़ अगरबत्तियां बना रहे हैं. मैसूर डीप परफ्यूमरी हाउस 1,200 से ज्यादा प्रोडक्ट करीब छह महाद्वीपों में 30 से ज्यादा देशों में निर्यात करती है. आज MDPH का सालाना कारोबार करीब 650 करोड़ रुपये का है.
इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जेड ब्लैक अगरबत्ती भारत के तीन प्रमुख ब्रांडों में से एक है. एमडीपीएच में काम कर रहे 4,000 लोगों में से 80% महिलाएं हैं. ये महिलाएं इत्र बनाने से लेकर पैकिंग, मशीन चलना आदि सब काम करती हैं. इनका नेतृत्व कर रही हैं अमिता अग्रवाल ने 23 साल पहले परफ्यूमरी विभाग का कार्यभार संभाला था. तब से लेकर आज तक वे इस कंपनी का सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं.
80% महिलाएं करती हैं काम
GNT डिजिटल से बात करते हुए, अमिता ने बिजनेस में कदम रखने से लेकर आज इसके सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बनने की अपनी यात्रा के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि कैसे कंपनी में काम कर रहीं 80% महिलाएं इसे आज और आगे बढ़ाने में मदद कर रही हैं. अमिता कहती हैं, “जब मेरी शादी हुई तब मेरी सास मोहिनी अग्रवाल बिजनेस का मैनेजमेंट संभाल रही थीं. उस वक्त मेरे पति फ्रेग्रेन्स के फॉर्मूलेशन और प्रोडक्शन का काम देख रहे थे. तब उन्होंने मुझसे इसे सीखने का आग्रह किया.”
अमिता बताती हैं, “बच्चे जब बड़े हुए तब लगा कि अब कुछ और करना चाहिए. मेरी सास शुरू से ही काफी एक्टिव थीं. वो खुद काम करती थीं. हमारे यहां पहले मोमबत्ती का बिजनेस था तो वो खुद अपने हाथ से करती थीं. हमारे घर में कभी वो कॉन्सेप्ट था ही नहीं कि बहुएं काम नहीं करेंगी. लेकिन वो काम इतना भी नहीं था कि सभी को उसमे लगना पड़े.”
23 साल पहले ज्वाइन की थी कंपनी
अमिता ने 23 साल पहले इस कंपनी को ज्वाइन किया था. वे बताती हैं, “फैक्ट्री का जो भी मजदूरों का काम था वो सब सास देखा करती थीं. पहले दिन से ही वे चाहती थीं कि महिलाओं के लिए काम किया जाए. वो खुद भी करती थीं. जिसके बाद साल 2000 में मैं इस कारोबार में शामिल हो गई. तब कंपनी छोटी हुआ करती थी और लोग भी ज्यादा नहीं थे.”
दरअसल, अगरबत्तियों के लिए फ्रेग्रेन्स बनाना इस बिजनेस का सबसे जरूरी और गोपनीय हिस्सा है. केवल परिवार को इसकी जानकारी होती है. अमिता ने अपने पति प्रकाश से इसे सीखना शुरू किया. आज, अमिता इस पूरे डिपार्टमेंट की प्रमुख हैं.
अमीता कहती हैं, “मेरी सास मेरे लिए शुरू से ही आदर्श थीं. हम शुरू से ही चाहते थे कि ऐसी महिलाओं को रोजगार मिले जिनको इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है. हमारे पास ऐसी महिलाएं हैं जो पिछले 30 साल से हमारे साथ काम कर रही हैं. कुछ अगर जाती भी हैं तो वापस आ जाती हैं. हमारे दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले रहते हैं.”
परिवारवालों ने हमेशा दिया साथ
अमिता आगे कहती हैं, “बचपन में या पहले ये कॉन्सेप्ट ही नहीं था कि लड़कियां बिजनेस में जाएं. आज से 50 साल पहले माहौल एकदम अलग था. मेरे ससुराल का माहौल वर्किंग ही था. सास-ससुर को भी काम करने से कोई परेशानी नहीं थी. तो उन्होंने भी आगे ही बढ़ाया कि तुम्हें करना है तुम करो. परिवार बड़ा था लेकिन धीरे-धीरे समझ आने लगा और मैं सीखती चली गई. थोड़ा टाइम लगा लेकिन सब सीख लिया. हम आगे के लिए भी चाहते हैं कि जितनी महिलाएं हो सकती हैं उतनी आएं.”
शुरुआत में होती है महिलाओं की ट्रेनिंग
हालांकि, अगरबत्ती बनाना इतना भी आसान नहीं है. इसके लिए महिलाओं को पहले ट्रेनिंग दी जाती है. अमिता बताती हैं, “काम शुरू करने से पहले 10-15 दिन की ट्रेनिंग दी जाती है. इसे लेकर अमिता कहती हैं, “किसी भी फील्ड में थोड़ा तो टाइम लगता है. हम पहले महिलाओं को सिखाते हैं. पहले के टाइम में महिलाओं को केवल घर में रहना होता था और घर संभालना होता था. लेकिन अब वे घर के साथ बाहर का काम भी करना चाहती हैं. उनमें एक उत्साह रहता है काम करने का, हमलोग उन्हें टारगेट भी देते हैं और वे उसे पूरा भी करती हैं.
हर दिन बनती हैं 4 करोड़ अगरबत्ती
जेड ब्लैक के डायरेक्टर अंशुल अग्रवाल ने GNT डिजिटल को बताया कि कंपनी के पास अपनी खुद की 170 से ज्यादा फ्रेग्रेन्स हैं, जिनका उपयोग अगरबत्ती बनाने में किया जाता है. हर दिन ये लोग 4 करोड़ अगरबत्ती बनाते हैं. वहीं इसके प्रोसेस के बारे में बात करते हुए अंशुल कहते हैं, “पहले वुड पाउडर या दूसरे पाउडर का बेस बनाते हैं. फिर एक मशीन होती है जिसके अंदर बेम्बू स्टिक जाती है. वो बेस फिर उस स्टिक पर लग जाता है. हमारे पास दुनिया का सबसे बड़ा फैक्ट्री सेटअप है. जिसमें एक अकेले फ्लोर पर 800 मशीनें लगाई गई हैं. ये सभी महिलाएं चलाती हैं. हर मशीन अगरबत्ती बनती है. फिर अगरबत्ती को सुखाया जाता है. इसके बाद इसको परफ्यूम में डुबोया जाता है. फिर इसकी पैकिंग होती है. हम करीब 4 करोड़ अगरबत्ती एक दिन में बनाते हैं.”
अमिता आखिर में कहती हैं कि नौकरी ने उन्हें आत्म-सम्मान और समझ दी है. साथ ही महिलाओं के लिए काम करने का हौसला भी. और महिलाएं अपनी बेहतरी के लिए आएगी आएं इसके लिए वे हर दिन उन सभी औरतों से बात करती हैं जो वहां काम कर रही हैं.