कहा जाता है कि जज्बे और हौसले से किसी भी मंजिल को हासिल किया जा सकता है. ऐसी ही एक कहानी पश्चिम बंगाल में हुगली के चांपदानी के एक युवा उद्यमी सुरेश मिश्रा की है. उन्होंने अपने जीवन में कभी भी नहीं सोचा कि एक दिन वह खुद का उद्योग लगाएंगे और सैकड़ों लोगों को रोजी-रोटी और रोजगार उपलब्ध कराएंगे. लेकिन हालात ऐसे बने कि उनको अपनी जमा पूंजी से गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को खोलना पड़ा. उनके पास इस उद्योग को चलाने के लिए कोई तजुर्बा नहीं था. लेकिन जब वो कोरोना काल में गरीबों को रोजी-रोटी के लिए भटकते देखा तो खुद को रोक नहीं पाए.
गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की शुरुआत-
सुरेश मिश्रा ने सोशल मीडिया, पत्र-पत्रिकाओं से गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग उद्योग शुरू करने की जानकारी हासिल की. इसके बाद उन्होंने एलकहार्न एंव पुरंजय नाम से नया ब्रांड लांच किया. उन्होंने फॉर्मल और फैशनेबल कमीजों का निर्माण करना शुरू कर दिया. सुरेश ने खुद महाराष्ट्र और गुजरात के कपड़ा मिलों में जाते हैं और उच्च क्वालिटी के पकड़े लाते हैं और इन कपड़ों से अपनी कंपनी में कमीजों का निर्माण करते हैं. वो कम दाम और कम समय में खरीदारों को गारमेंट उपलब्ध कराना शुरू किया.
50 कर्मचारियों के साथ शुरू किया था कारोबार-
सुरेश मिश्रा ने जब गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की शुरुआत की तो इसमें 50 कर्मचारी काम करते थे. आज उनके पास 100 से ज्यादा लोग काम करते हैं, जिसमें से 20-25 महिलाएं हैं. उनकी इस यूनिट से कई परिवारों का घर चलता है. सुरेश मिश्रा का कहना है कि राजनीति का उनको काफी पहले तजुर्बा था. लेकिन कारोबार जगत में वो नौसिखिए थे. लेकिन उनके यहां काम करने वाले मजदूरों की मेहनत से धीरे-धीरे उनका कारोबार बढ़ने लगा. उनका कहना है कि उनका मकसद प्रॉफिट कमाना नहीं है, बल्कि जिन कमीजों को गरीब और मजूदर पहनने को तरसते हैं, उनको कम और सुलभ दामों पर उपलब्ध कराना है.
गरीब भी पहन सकते हैं ये गारमेंट-
सुरेश मिश्रा का मकसद सुलभ दामों पर गरीबों को कपड़े पहुंचाना है. इसके साथ ही गरीब परिवारों को रोजी-रोटी का जुगड़ा करना भी उनका मकसद है. सुरेश ने बताया कि उनकी मेहनत और श्रमकिों की कोशिश रंग लाई है. उनका कहना है कि उनको इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनके धंधे से लाभ हो रहा है या कमी. उनका कहना है कि सुकून इस बात का है कि गरीब लोग स्वालंबी हो रहे हैं जिन क्रेताओं को ये महंगा गारमेंट नसीब नहीं हो पा रहे थे, वह भी इसे खरीदकर पहन सकते हैं.
घर का चलता है खर्च- कर्मचारी
इस कारखाने में कई महिलाएं काम करती हैं. उनमें से एक कर्मचारी का कहना है कि चंद महीने पहले उनके पास अपने परिवार के खर्चे के लिए रोजी-रोटी का जुगाड़ नहीं था. लेकिन जब से उनको यहां नौकरी मिली है. वो अपने पैरों पर खड़ी हो गई हैं. उनका कहना है कि उनको अपने परिवार के भरण पोषण का सहारा मिल गया है.
(हुगली से भोला नाथ साहा की रिपोर्ट)
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