गुजरात के चलाला गांव में एक छोटे से किराना स्टोर के मालिक को एक बिजनेस आइडिया आया. उसने उसी किराना स्टोर पर चायपत्ती बेचना शुरू कर दिया और काम चल निकला. जब थोड़ा मुनाफा दिखाई दिया तो एक आदमी को लगाकर गांव-गांव चायपत्ती पहुंचाना शुरू कर दिया. चलाला राज्य की राजधानी गांधीनगर से लगभग 296 किमी दूर एक छोटा सा गांव है. ये कहानी है हरेश कठरोतिया और उनके पिता गोरधनभाई कठरोतिया की. हरेश का कहना है कि आज अपनी मेहनत और कंसिसटेंसी के दम पर पिता पुत्र की जोड़ी देश की दूसरी सबसे बड़ी चाय उत्पादक कंपनी बन चुकी है. उनकी कंपनी ने साल 2022-2023 में 225 करोड़ का टर्नओवर अर्जित किया.
पहले थी किराना की दुकान
कंपनी प्रतिदिन 30 टन चाय की प्रोसेसिंग करती है, जो 50 ग्राम से लेकर 1 किलोग्राम तक के विभिन्न आकारों में नौ प्रकार पेश करती है. वेलनेस टी कैटेगरी के हिस्से के रूप में ग्रीन टी और लेमन टी भी दी जाती है. हरेश के पिता गोरधनभाई गांव में किराना की दुकान चला रहे थे और हरेश उस समय स्नातक की पढ़ाई कर रहे थे. एक समय में पिता को कुछ मेडिकल दिक्कत आ गई जिसकी वजह से हरेश को कॉलेज छोड़कर परिवार का बिजनेस संभालना पड़ा. उसके बाद से हरेश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और पूरी तरीके से पिता के कारोबार में हाथ बंटाने लगा. एक किराना की दुकान भी फुल-फ्लेज्ड चाय के कारोबार में जुट गई नाम पड़ा G.M. Tea Packers Pvt. Ltd जिसे तुलसी टी के नाम से बेचा जाने लगा. किराना स्टोर की शुरुआत 1981 में हुई थी और 1999 में उन्होंने चाय के कारोबार में कदम रख दिया था.
हरेश ने GNT Digital से कहा, "हालांकि हमारा व्यवसाय छोटा था, लेकिन चाय की गुणवत्ता के कारण ग्राहक इसे काफी ज्यादा पसंद करने लगे. हमारी चाय कस्बे में सभी को पसंद थी." 90 के दशक की शुरुआत में गोरधनभाई पेपर पैकिंग में चायपत्ति बेचा करते थे. लेकिन धीरे-धीरे, जैसे-जैसे चाय के कारोबार से मांग और आय बढ़ी, उन्होंने पैकेजिंग को बढ़ाने और अमरेली जिले और उसके बाहर व्यापार की बढ़ाने की कोशिश की. साल 2004 में काम पूरी तरीके से फैल चुका था और हरेश अपना बिजनेस एक्पेंड करना चाहते थे क्योंकि वहां पर सोर्सिंग और वितरण की लागत महंगी थी. वह परिवार के साथ अमरेली आ गए.
बनाई खुद की पैकेजिंग यूनिट
चलाला तक हरेश असंगठित तरीके से काम कर रहे थे, लेकिन अमरेली आने के बाद उन्होंने अपनी पैकेजिंग यूनिट स्थापित कर ली थी. इस समय तक, हम चाय की सोर्सिंग के लिए सीधे फार्मलैंड के सीधे संपर्क में आ गए थे. इससे उन्हें और एसकेयू बनाने में मदद मिली.”साल 2008 के आसपास, तुलसी चाय अमरेली के गांवों से आगे निकलकर जूनागढ़, भावनगर, पोरबंदर आदि शहरों में फैल गई. हरेश ने अकेले काम करने के बजाय इन शहरों में वितरकों के साथ करार किया, जिसने व्यवसाय के विकास के लिए उत्प्रेरक का काम किया.
कितना हुआ मुनाफा?
हरेश ने बताया कि 2005 से 2010 तक कारोबार में 10 गुना विस्तार हुआ. बढ़ते उत्पादन की वजह से तुलसी चाय के लिए मौजूदा पैकेजिंग इकाई छोटी पड़ गई. साल 2013 में, हरेश ने अहमदाबाद जिले के बावला साणंद में 1 लाख वर्ग फुट की एक नई उत्पादन सुविधा स्थापित की. तब से, तुलसी चाय अब 60 टन प्रति दिन उत्पादन क्षमता के साथ कई गुना बढ़ रही है. 2016 से 2018 तक, हरेश ने चीजों को और सुव्यवस्थित किया. उन्होंने पूरे गुजरात और गुवाहाटी, सिलीगुड़ी और दार्जिलिंग के खेतों से चाय मंगाना शुरू किया. इसका उन्हें और फायदा मिला और व्यापार राजस्व 12% से बढ़कर 33% हो गया. हरेश ने बताया कि कोरोना महामारी की वजह से उन्हें डिस्ट्रीब्यूशन और कुछ अन्य चीजों को लेकर चैलेंजेंस जरूर आए लेकिन उस समय भी उनकी कंपनी ने 15% प्लस का कारोबार किया. छह वर्षों में, 2017 से 2022 तक कंपनी का राजस्व 73 करोड़ रुपये से बढ़कर 200 करोड़ रुपये हो गया.
क्या कहता है डेटा
तुलसी चाय को जो बात सबसे अलग बनाती है, वह यह है कि यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कस्टमर्स की पसंद बनी हुई है. हरेश तुलसी चाय को गुजरात से बाहर राजस्थान और मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में ले जाने की योजना बना रहे हैं. पायलट प्रोजेक्ट पर यह चल रहा है. उनका कहना है कि यहां अभी डिस्ट्रीब्यूटर से बातचीत चल रही है और हम मार्केट को समझने की कोशिश कर रहे हैं. हरेश के दो बेटे हैं. बड़ा बेटा अभी पढ़ाई कर रहा है और समय मिलने पर कभी-कभी दादाजी से वो बिजनेस ट्रिक्स सीखता रहता है.