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The Ambassador Story: पीएम से लेकर आम आदमी की सवारी एंबेसडर कैसे बनी रईसों की पहचान

एलीट क्लास के लिए ये कार रुसूख़ का प्रतीक थी. प्रधानमंत्री, राजनेता और नौकरशाह इसकी सवारी करते थे. ये ऐसा कार थी जिसे चलाने का सपना मिडिल क्लास में पैदा हुआ हर इंसान देखता था.

The Ambassador Story The Ambassador Story
हाइलाइट्स
  • एम्बेसडर पहली बार 1958 में सड़कों पर उतरी

  • एलीट क्लास के लिए ये कार रुसूख़ का प्रतीक थी.

इसे भारत की पहली कार कहा जाता है.. इसने कई दशकों तक भारत की सड़कों पर राज किया. इसे ‘किंग ऑफ इंडियन रोड’ का दर्जा भी मिला. इसके रंग से लोग ओहदे का पता लगा लिया करते थे. सिविल सर्वेंट से लेकर एलीट क्लास तक... सभी इसके चाहने वाले थे. भारत में इसे हमेशा पावर, रसूक और स्टेटस सिंबल माना गया. दशकों तक लोगों में इसकी चाहत बरकरार रही. इसे भारतीय कारों की रानी कहा जाता था...जी हां हम बात कर रहे हैं Ambassador की. भारतीयों के लिए एम्बेसडर न केवल पहली भारतीय निर्मित कार थी, बल्कि उससे भी कहीं ज्यादा थी.

द Ambassador स्टोरी...

एलीट क्लास के लिए ये कार रुसूख़ का प्रतीक थी. प्रधानमंत्री, राजनेता और नौकरशाह इसकी सवारी करते थे. ये ऐसा कार थी जिसे चलाने का सपना मिडिल क्लास में पैदा हुआ हर इंसान देखता था. यहां तक ​​कि टैक्सी ड्राइवरों को भी ये कार खूब पसंद आती थी. ये मॉडर्न इंडिया का सिंबल थी. उस दौर में इसे प्यार से 'एंबी' बुलाया जाता था. इसकी मेंटेनेस भी कम थी...जैसे कि अगर ये कार खराब हो जाती या बंद हो जाती तो इसे ठीक करने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी. यह पहली भारतीय निर्मित डीजल कार भी थी.

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पहली भारतीय निर्मित डीजल कार थी Ambassador

Ambassador न केवल स्वदेशी का प्रतीक था क्योंकि इसका निर्माण पूरी तरह से भारत में किया गया था, बल्कि इसलिए भी क्योंकि हिंदुस्तान मोटर्स का स्वामित्व बिड़ला फैमिली के पास था. जिसके आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. बी.एम. बिड़ला ने 1942 में हिंदुस्तान मोटर्स लिमिटेड की शुरुआत की. हिंदुस्तान मोटर्स लिमिटेड ने लागत बचाने के लिए भारत में वाहनों को असेंबल करने के लिए इंग्लैंड की मॉरिस मोटर्स के साथ पार्टनरशिप की. भारत को आजादी मिली. भारत में manufacturing युग की शुरुआत हुई. एम्बेसडर को ब्रिटिश कार निर्माता मॉरिस मोटर्स द्वारा निर्मित मॉरिस ऑक्सफोर्ड सीरीज III पर तैयार किया गया था.

Ambassador सबसे लंबे समय तक चलने वाली कार

बिड़ला फैमिली ने एक लाइसेंस एग्रीमेंट के तहत कार का निर्माण करने का फैसला किया और अपना आधार गुजरात के ओखा से पश्चिम बंगाल के उत्तरपारा में शिफ्ट कर दिया. 1980 के दशक के मध्य तक Ambassador ने भारतीय सड़कों पर राज किया लेकिन धीरे-धीरे मारुति 800 जैसी कारों ने इसका ओहदा छीन लिया. Ambassador का निर्माण कलकत्ता के उत्तरपारा प्लांट में किया जाता था और प्रोडक्शन बंद होने यानी 2014 तक इस कार की 7 जनरेशन आ चुकी थी. जब इसे रिटायर किया गया उस वक्त Ambassador 56 साल पुरानी थी. भारतीय इतिहास में Ambassador सबसे लंबे समय तक चलने वाली कार रही है. टैकनिकल इनोवेशन के बावजूद डिंपल बोनट वाली इस कार का छह दशकों तक सिग्नेचर लुक बरकरार रहा.

भारत की ऑटोमोटिव इंडस्ट्री पर एक नजर...

1940 के दशक तक भारत की ऑटोमोटिव इंडस्ट्री विदेशी वाहन निर्माताओं पर निर्भर थी. क्योंकि असेंबली प्लांटों का स्वामित्व फोर्ड और जनरल मोटर्स जैसी विदेशी कार कंपनियों के पास था. 1940 के दशक में भारत के बिजनेस घरानों ने ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में प्रवेश किया. इनमें बिड़ला भी शामिल थे, जिन्होंने 1942 में गुजरात के छोटे से बंदरगाह ओखा में हिंदुस्तान मोटर्स की स्थापना की थी. इनके अलावा प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स लिमिटेड के वालचंद हीराचंद, टाटा और महिंद्रा के टेल्को भी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में प्रवेश कर रहे थे. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध ने इनके प्लान पर पानी फेर दिया.

Image: Hindustan moters
Image: Hindustan moters

जब 1945 में विश्व युद्ध समाप्त हुआ और 1947 में भारत को आजादी मिली, तो इन योजनाओं को दोबारा बल मिला. एक साल बाद हिंदुस्तान मोटर्स ने उत्तरपारा में एक कारखाना खोला. मॉरिस मोटर्स के सहयोग के साथ कंपनी ने भारत में ब्रिटिश कंपनी की कारों को असेंबल करना और बेचना शुरू किया.

कलकत्ता स्थित हिंदुस्तान मोटर्स की एम्बेसडर पहली बार 1958 में सड़कों पर उतरी थी. 1980 के दशक के मध्य तक यह भारतीयों की पहली पसंद थी. एम्बेसडर के जमाने में भी दूसरी कंपनियों की कारें सड़कों पर दौड़ती रहीं. धीरे-धीरे एम्बेसडर Era खत्म हुआ...  और आखिरकार 2003 में भारत के तात्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी एंबेसडर की सवारी बंद कर दी. इसकी जगह BMW ने ले ली. साल 2001 में हुए संसद हमलों के सुरक्षा कारणों से एंबेसडर को प्रधानमंत्री के काफिले से अलग कर दिया गया था. 

इसके बाद सड़कों पर इक्का दुक्का Ambassador कारें नजर आती रहीं. और आखिरकार वो दिन भी आया जब कंपनी को इसका प्रोडक्शन बंद करना पड़ा. हिंदुस्तान मोटर्स ने Ambassador का आखिरी मॉडल 2013 में लॉन्च किया था. इसे 'एनकोर' ब्रांड दिया गया था. अब Ambassador भारतीय सड़कों पर कम ही दिखाई देती है.

अनटोल्ड फैक्ट: ये वही कार थी जिसे खरीदने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) को लोन लेना पड़ा था. तब इस कार की कीमत 12 हजार रुपये थी. लाल बहादुर शास्त्री के अकाउंट में सिर्फ 7 हजार रूपये थे. इसलिए उन्होंने बैंक से 5000 का लोन लिया था.