

दुनियाभर में एक बार फिर से टैरिफ को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. अमेरिका ने हाल ही में स्टील और एल्युमिनियम के आयात पर 25% टैरिफ (शुल्क) लगा दिया है. इसके जवाब में, कनाडा और यूरोपीय संघ (EU) ने अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर अरबों डॉलर के टैरिफ लगा दिए हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो यहां तक धमकी दी है कि अगर यूरोपीय संघ अमेरिकी व्हिस्की पर 50% टैरिफ को खत्म नहीं करता, तो वह यूरोपीय शराब पर 200% टैरिफ लगा देंगे.
हालांकि, टैरिफ का यह खेल नया नहीं है. करीब 100 साल पहले, 1930 में अमेरिका ने ऐसा ही एक बड़ा फैसला लिया था. इसका नाम था Smoot-Hawley Tariff Act. इससे न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था बल्कि पूरी दुनिया को आर्थिक मंदी के अंधकार में धकेल दिया था.
Smoot-Hawley Tariff Act थी एक ऐतिहासिक भूल
Smoot-Hawley Tariff Act को United States Tariff Act of 1930 भी कहा जाता है. इसे अमेरिकी सरकार ने व्यापारिक सुरक्षा नीति के तहत लाया था. इसका उद्देश्य अमेरिकी किसानों और उद्योगों को सस्ते विदेशी प्रोडक्ट्स से बचाना था. इस कानून के तहत अमेरिका ने लगभग 20,000 वस्तुओं पर 40% से 60% तक का टैरिफ लगा दिया था.
हालांकि, यह फैसला अमेरिका के पक्ष में जाने के बजाय उसके खिलाफ हो गया. दूसरे देशों ने भी अमेरिका के प्रोडक्ट्स पर भारी टैरिफ लगा दिए, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार लगभग 65% गिर गया. इससे अमेरिकी निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ और अर्थव्यवस्था और भी ज्यादा मुश्किल में आ गई.
दरअसल, 1920 के दशक में अमेरिका की कृषि अर्थव्यवस्था काफी मुश्किल से गुजर रही थी.
इसके दो कारण थे:
इसके बाद, 1928 में राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर (Herbert Hoover) ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया कि वह किसानों को राहत देने के लिए बाहर के देशों से आयत होने वाले कृषि उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाएंगे. लेकिन जब वह सत्ता में आए, तो उद्योगों ने भी टैरिफ बढ़ाने की मांग शुरू कर दी.
28 मई 1929 को इस कानून के प्रस्ताव को अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में मंजूरी मिली, जिसके बाद स्टॉक मार्केट गिरने लगा. 24 मार्च 1930 को सीनेट में यह पारित हुआ, जिसके बाद शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गई. 17 जून 1930 को राष्ट्रपति हूवर ने इस पर हस्ताक्षर किए और कुछ ही दिनों में स्टॉक मार्केट पूरी तरह से डाउन हो गया.
अमेरिकी किसानों और उद्योगों पर असर
इस कानून से अमेरिकी किसानों को फायदा होने की उम्मीद थी, लेकिन हुआ इसका उल्टा. अमेरिका से अनाज और कृषि उत्पाद आयात करने वाले देशों ने अपने टैरिफ बढ़ा दिए, जिससे अमेरिकी किसान अपनी फसलें बेच नहीं पाए. निर्यात 1929 में $7 बिलियन से घटकर 1932 में मात्र $2.5 बिलियन रह गया.
साथ ही, जब अमेरिका ने टैरिफ बढ़ाया, तो कनाडा, यूरोप और एशिया के देशों ने भी जवाबी कार्रवाई में अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिए. इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार 65% तक घट गया, जिससे वैश्विक मंदी और गहरी हो गई. अमेरिका में बेरोजगारी दर तेजी से बढ़ी और लाखों लोग नौकरी खो बैठे.
Smoot-Hawley Act कैसे बना महामंदी की जड़?
जब Smoot-Hawley Act लागू हुआ, उस समय अमेरिका पहले से ही महामंदी की चपेट में था. लेकिन यह कानून इस संकट को और गहरा कर गया.
इस एक्ट के पारित होते ही अमेरिकी स्टॉक मार्केट में भारी गिरावट आई. विदेशी निवेशकों ने अमेरिकी शेयरों से पैसे निकालना शुरू कर दिया, जिससे मार्केट डगमगा गया.
जब विदेशी देशों ने अमेरिकी उत्पादों पर टैक्स बढ़ा दिया, तो अमेरिका के उद्योगों को भारी नुकसान हुआ. इसका सीधा असर नौकरियों पर पड़ा. आयात महंगे होने के कारण अमेरिका में भी चीजों के दाम बढ़ गए, जिससे बेरोजगार लोगों के लिए गुजारा करना मुश्किल हो गया.
इस एक्ट ने दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी को और भी गंभीर बना दिया. कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसी टैरिफ पॉलिसी की वजह से राजनीतिक उथल-पुथल बढ़ी और दूसरे विश्व युद्ध के हालात तैयार हुए.
1934 में अमेरिका को अपनी गलती समझ आई
चार साल के अंदर ही Smoot-Hawley Act का प्रभाव इतना साफ नजर आया कि अमेरिका को अपनी पॉलिसी बदलनी पड़ी. 1934 में राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने Reciprocal Trade Agreements Act पर हस्ताक्षर किए, जिसने टैरिफ कम करने और देशों के बीच व्यापारिक सहयोग को बढ़ावा देने का काम किया.
Smoot-Hawley Act का प्रभाव
Smoot-Hawley Tariff Act ने अमेरिका की आर्थिक नीति पर गहरा असर डाला. इसके बाद अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कई सारे अग्रीमेंट्स में भाग लिया, जैसे:
गौरतलब है कि जब टैरिफ बढ़ता है, तो उत्पाद महंगे हो जाते हैं. इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं पर सीधा असर पड़ सकता है. साथ ही, जैसे 1930 में हुआ था, वैसे ही इस बार भी अन्य देश अमेरिका के खिलाफ व्यापारिक प्रतिबंध लगा सकते हैं. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.