scorecardresearch

Success Story: हल्दीराम के वंशज, बिकाजी की कहानी...8वीं पास शख्स ने बीकानेरी भुजिया के दम पर खड़ी की 12 हजार करोड़ की कंपनी

बीकानेर का बिजनेस शिव रतन अग्रवाल के हाथों में है. इसका रेवेन्यू 1600 करोड़ रुपये है. साल 1877 में महाराजा श्री डूंगर सिंह के समय बीकानेर स्‍टेट में पहली बार भुजिया बनाई गई थी.

Bikaji Bhujia Bikaji Bhujia

कहा जाता है कि सबसे अच्छा शिक्षक अनुभव है. अनुभव हमें नई चीजें सीखने का मौका देता है. आज हम राजस्थान के 8वीं पास एक व्यक्ति के बारे में जानेंगे, जिन्होंने भारतीय बाजार को स्नैक का एक बड़ा क्रेज दिया. भारत में नमकीन सेगमेंट में दो बड़े हिस्से हैं. एक हल्दीराम (Haldiram) और दूसरा बीकाजी (Bikaji). इस बात की बहुत कम लोगों को जानकारी है कि बीकाजी भी हल्दीराम फैमिली बिजनेस से ही निकली हुई कंपनी है.

कहानी शुरू होती है 80 साल पहले साल 1940 में राजस्‍थान के शहर बीकानेर में एक छोटी सी भट्टी पर भुजिया बनाने के लिए एक छोटी सी दुकान से शुरुआत हुई थी. आज यह कंपनी 12 हजार करोड़ रुपए के नेट वर्थ वाली विशालकाय कंपनी में तब्‍दील हो गई है. बीकाजी के शुरू होने, खड़े होने और एक दिन दुनिया के नामी ब्रांड्स में से एक बन जाने की कहानी काफी उतार-चढ़ावों, संघर्षों, पारिवारिक विवादों और अदम्‍य जज्‍बे की कहानी है.  

कैसे हुआ अविष्कार
दरअसल सबसे पहले भुजिया का अविष्कार भी बीकानेर में ही हुआ था. साल 1877 में महाराजा श्री डूंगर सिंह के समय बीकानेर स्‍टेट में पहली बार भुजिया बनाई गई थी. बीकानेर में बनी भुजिया देश भर में इतनी प्रसिद्ध हुई कि अब ब्रांड का नाम चाहे जो भी हो, लोग हर भुजिया को अकसर बीकानेरी भुजिया कहते ही पाए जाते हैं. आपको बता दें कि बीकाजी ब्रांड का नाम हमेशा से बीकाजी नहीं था. उनकी दुकान का नाम पहले 'हल्दीराम भुजियावाला' हुआ करता था, जिसकी शुरुआत की थी हल्‍दीराम अग्रवाल ने. शुरू में ये एक छोटी सी दुकान हुआ करती थी. उसी दुकान में भुजिया बनाई और बेची जाती थी. हल्‍दीराम खुद अपने हाथों से भुजिया बनाते थे. उनकी दुकान धीरे-धीरे पूरे शहर में प्रसिद्ध हो गई. इसके बाद ये शहरों और राज्यों में फैल गई. हल्‍दीराम बाद में कोलकाता चले गए और वहीं जाकर बस गए. हल्‍दीराम के जीवनकाल में उनके नमकीन ने बीकानेर शहर में तो खूब नाम कमाया था, लेकिन उसे 1600 करोड़ की बड़ी कंपनी बनाने का काम किया उनके बच्चों ने.

कैसे बीकाजी नाम पड़ा
हल्‍दीराम के बाद 'हल्दीराम भुजियावाला' का बिजनेस उनके बेटे मूलचंद अग्रवाल के पास चला गया. मूलचंद अग्रवाल के चार बेटे शिवकिसन अग्रवाल, मनोहर लाल अग्रवाल, मधु अग्रवाल और शिवरतन अग्रवाल थे. शिवकिसन, मनोहरलाल और मधु ने मिलकर भुजिया का एक नया ब्रांड शुरू किया और नाम रखा अपने दादाजी के नाम पर- हल्‍दीराम. लेकिन चौथे बेटे शिवरतन अग्रवाल ने तीनों भाइयों के साथ मिलकर कारोबार करने की बजाय एक नए ब्रांड की शुरुआत की जिसका नाम बीकाजी रखा गया.

कौन हैं शिवरतन अग्रवाल?
शिवरतन अग्रवाल बीकाजी ब्रांड के संस्थापक और निदेशक हैं. उनकी कंपनी ब्रांड भुजिया, नमकीन, डिब्बाबंद मिठाइयां, पापड़ और साथ ही अन्य व्यंजन बनाती है. बीकाजी भारत की तीसरी सबसे बड़ी पारंपरिक स्नैक निर्माता है. बीकाजी को 1992 में इंडस्ट्रीयल एक्सीलेंस के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. आज यके समय में बीकाजी ढ़ाई सौ से ज्‍यादा प्रोडक्‍ट बनाती है. बीकाजी के प्रोडक्‍ट विदेशों में भी भेजे जाते हैं. उनके बनाए प्रोडक्‍ट्स में वेस्‍टर्न स्‍नैक्‍स और फ्रोजेन चीजें भी शामिल हैं और देश भर में 8 लाख से ज्‍यादा दुकानों में आज बीकाजी के प्रोडक्‍ट मिलते हैं. 

कहां तक की है पढ़ाई
शिवरतन अग्रवाल गंगाभिषण 'हल्दीराम' भुजियावाला के पोते हैं जिनका व्यवसाय 'हल्दीराम' के नाम से प्रसिद्ध था. शिवरतन के पिता मूलचंद भी भुजिया बनाने का व्यवसाय करते थे. बचपन से ही शिवरतन को नमकीन बनाने में गहरी रुचि थी और उन्होंने अपने दादाजी से भुजिया बनाना सीखा. शिवरतन ने केवल 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की है और फिर अपने फैमिली बिजनेस में शामिल हो गए.

बीकाजी समूह की यात्रा कठिनाई, विजय और उपलब्धि से भरी रही है. बीकाजी के संस्थापक शिवरतन की यात्रा आसान नहीं थी. बहुत लंबे समय तक, शिवरतन ने भुजिया ब्रांड को दुनिया के सामने पेश करने के लिए संघर्ष किया. अग्रवाल उस दौर में अपने सपनों के व्यवसाय की नींव रखने में सफल रहे जब व्यापक पैमाने पर भुजिया बनाने के लिए कोई तकनीक उपलब्ध नहीं थी तो मशीनों का उपयोग सीखने के लिए वो विदेश भी गए. शिवरतन के कुशल निर्देशन में अभी ये बिजनेस बहुत अच्छे से काम कर रहा है.