किसी खेत की कटाई के बाद जो कुछ भी बचता है उसे आमतौर पर जला दिया जाता है या जगह से हटा दिया जाता है. और इसमें ज्यादा पैसे लगते हैं. लेकिन अब किसानों को इस बचे हुए सामान से भी फायदा हो सकता है. इतना ही नहीं ये आय का एक स्रोत भी हो सकता है. इसमें किसानों की मदद कर रहा है-पुणे स्थित बायोफ्यूलसर्कल. ये स्टार्टअप जून 2020 में सुहास बक्सी और अश्विन सेव ने शुरू किया था. ये एक तरह का ऑनलाइन मार्केट है, जो बायोमास और जैव ईंधन, जैव उर्वरक और बायोगैस जैसी संबंधित वस्तुओं की बिक्री के लिए किसानों को इंडस्ट्री प्रोडक्ट्स से जोड़ता है. पुणे का ये स्टार्टअप उद्योगों को कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद कर रहा है.
पराली के लिए बनाया एक डिजिटल प्लेटफॉर्म
बायोफ्यूलसर्कल ने बड़े उद्योगों और निर्माताओं को जीवाश्म ईंधन को इस पराली से बने ब्रिकेट और छर्रों से बदलने में मदद करने के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया है. बायोफ्यूलसर्कल कार्बन फुटप्रिंट की समस्या को हल करने की कोशिश कर रहा है. पुणे स्थित स्टार्टअप ने इसके लिए एक ऐप चलाता है, जिसमें किसानों को ऑनलाइन मार्केट दिया जाता है. इसमें पराली से ब्रिकेट्स यानि कृषि से जो बच जाता है. जैसे सरसों की भूसी, मूंगफली के छिलके, सोयाबीन, लकड़ी की भूसी, चूरा से ये सब बनाए जाते हैं.
2070 तक है कार्बन फुटप्रिंट जीरो करने का लक्ष्य
कृषि-अवशेष वह होता है जो किसी फसल के अनाज या फल की कटाई के बाद बचा रहता है. ऐसे में इसे जलाकर खत्म किया जाता है, जिसके कारण काफी मात्रा में प्रदूषण होता है. इसी कार्बन फुटप्रिंट को 2070 तक शून्य करने का लक्ष्य रखा गया है. बस भारत के इस जीरो कार्बन फुटप्रिंट के लक्ष्य को पाने में बायोफ्यूलसर्कल स्टार्टअप मदद कर रहा है.
कृषि अवशेषों या कचरे से बने ब्रिकेट और छर्रों का उपयोग जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है. हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे उद्यमी कई दशकों से स्थानीय स्तर पर ब्रिकेट और पेलेट बना रहे हैं. बायोफ्यूलसर्कल का डिजिटल प्लेटफॉर्म इन स्थानीय विक्रेताओं को बड़ी कंपनियों और उद्योगों से जोड़ता है.
800 से ज्यादा विक्रेता हैं प्लेटफॉर्म पर
वर्तमान में, प्लेटफॉर्म पर लगभग 850 विक्रेता और 150 से अधिक उपभोक्ता हैं. इसको लेकर बायोफ्यूलसर्कल के को-फाउंडर और सीओओ अश्विन सेव इंडियन एक्सपेरस से कहते हैं “अभी, हर उद्योग जो जीवाश्म ईंधन का उपयोग करता है, यानी लगभग हर उद्योग, कार्बन न्यूट्रल होना चाहता है. यहां तक कि Apple ने भी घोषणा की है कि वह 2030 तक हर उत्पाद को कार्बन-न्यूट्रल बना देगा. लेकिन आप इस लक्ष्य को कैसे पूरा करेंगे? आप उस ईंधन से शुरुआत कर सकते हैं जिसका आप उपभोग कर रहे हैं.''
हर साल पराली बनता है बड़ा मुद्दा
गौरतलब है कि हर साल भारत में, खासकर दिल्ली में, पराली जलाना एक मुद्दा बन जाता है. पराली लगभग पूरे भारत में होती है. लेकिन दिल्ली पर इसका ज्यादा प्रभाव पड़ता है क्योंकि हवा की दिशा और जलवायु राख और धुआं को साफ होने नहीं देती है. रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल बर्बाद होने वाली 235 मिलियन टन पराली में से 90 मिलियन टन उत्तर भारत से, दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों से आती है.
दूसरी ओर, भारत अपनी तेल, गैस और कोयले की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है. मई 2023 में, यह बताया गया कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत का कोयला आयात 30 प्रतिशत बढ़कर 162.46 मिलियन टन हो गया, जो एक साल पहले 124.99 मीट्रिक टन था. एक ब्रिकेट आम तौर पर प्रति किलोग्राम 3,000 से 3,800 किलोकैलोरी देता है, जो कि मध्यम श्रेणी के कोयले के बराबर है. ऐसे में इसे एक ऑप्शन के तौर पर देखा जा सकता है.