वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) 23 जुलाई 2024 को लोकसभा में वित्त वर्ष 2024-25 के लिए बजट पेश करेंगी. यह मोदी सरकार 3.0 (Modi 3.0 Government) का पहला बजट है. आज हम आपको बजट से जुड़े उन भारी-भरकम शब्दों का आसान मतलब बता रहे हैं, जिन्हें पढ़कर आपको बजट समझने में आसानी होगी.
क्या होता है बजट: फ्रांसीसी शब्द बौगेट से बजट (Budget) शब्द की उत्पत्ति हुई है. बौगेट का अर्थ है चमड़े की अटैची. हम जैसे अपने घर का बजट बनाते हैं, वैसे ही सरकार पूरे देश का बनाती है. बजट एक साल के आय-व्यय का लेखा-जोखा होता है. एक वित्तीय वर्ष में कितनी आमदनी होगी, कितना खर्च होगा और बचत कितनी होगी, यह सब बजट में शामिल रहता है. बजट तीन प्रकार को होता है पहला संतुलित बजट यानी बैलेंस्ड बजट, दूसरा अधिशेष या सरप्लस बजट और तीसरा घाटे वाला बजट यानी डेफिसिट बजट.
वित्त विधेयक: Finance Bill यानी वित्त विधेयक के माध्यम से ही बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री सरकारी आमदनी बढ़ाने के विचार से नए करों आदि का प्रस्ताव करते हैं. वित्त विधेयक में मौजूदा कर प्रणाली में किसी तरह का संशोधन आदि को प्रस्तावित किया जाता है. संसद की मंजूरी मिलने के बाद ही इसे लागू किया जाता है. यूनियन बजट को पेश करने के तुरंत बाद वित्त विधेयक को पास किया जाता है.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर: किसी व्यक्ति या संस्थान की आय पर जो टैक्स लगाया जाता है, उसे ही प्रत्यक्ष कर यानी डायरेक्ट टैक्स कहा जाता है. इसमें इनकम टैक्स, कॉर्पोरेट टैक्स और इनहेरिटेंस टैक्स शामिल हैं. अप्रत्यक्ष कर यानी इनडायरेक्ट टैक्स को वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाता है. यह ऐसा टैक्स है, जिसको सीधे उपभोक्ता जमा नहीं करते हैं. उपभोक्ता इसका भुगतान तब करते हैं जब वे वस्तुएं और सेवाएं खरीदते हैं. इनमें उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क आदि शामिल हैं.
उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क: हमारे देश में निर्मित और घरेलू उपभोग के लिए बनाई गई वस्तुओं पर लगाया जाने वाला एक अप्रत्यक्ष कर उत्पाद शुल्क है. सीमा शुल्क देश में माल आयात या निर्यात किए जाने पर लगाए जाते हैं. इनका भुगतान आयातक या निर्यातक की ओर से किया जाता है. आम तौर पर इन्हें उपभोक्ता पर भी डाला जाता है.
राजकोषीय और प्राथमिक घाटा: सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर (उधार को छोड़कर) को राजकोषीय घाटा कहा जाता है. इससे यह मालूम चलता है कि सरकार को कामकाज के लिए कितने उधार की जरूरत होगी. राजकोषीय घाटे की अवधारणा को नरसिम्हम समिति की सिफारिशों के बाद 1997-98 में बजट में पेश किया गया था. तब से राजकोषीय घाटा शासन का एक हिस्सा बन गया है. प्राथमिक घाटा राजकोषीय घाटे में से ब्याज भुगतान को घटाने पर मिलने वाला भाग है. यह बताता है कि सरकार की उधारी का कितना हिस्सा ब्याज भुगतान के अलावा अन्य व्ययों को पूरा करने में जा रहा है.
राजस्व घाटा: राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्ति के बीच के अंतर को राजस्व घाटा (रेवेन्यू डेफिसिट) कहा जाता है. यह सरकार की चालू प्राप्तियों की चालू व्यय से कमी को दर्शाता है. यह घाटा तब देखा जाता है जब राजस्व या व्यय की वास्तविक राशि बजट में बताए गए राजस्व या व्यय के अनुरूप नहीं होती है.
चालू खाता घाटा: देश में प्राप्त भुगतान और बाहरी देशों को चुकाई गई कीमत में जो अंतर आता है वह चालू खाता घाटा कहलाता है. जब देश की वस्तुओं, सेवाओं और ट्रांसफर का आयात इनके निर्यात से ज्यादा हो जाता है, तब चालू खाते घाटा की स्थिति पैदा होता है.
सरकारी राजस्व और व्यय: सरकार को सभी स्रोतों से होने वाली आमदनी को सरकारी राजस्व कहा जाता है. सरकार जिन-जिन मदों में खर्च करती है उसे सरकारी व्यय कहते हैं. यदि राजस्व प्राप्तियां राजस्व खर्च से अधिक हैं, तो यह अंतर राजस्व सरप्लस की श्रेणी में होगा.
राजकोषीय नीति: फिस्कल पॉलिसी यानी राजकोषीय नीति राजस्व और व्यय के समग्र स्तरों के संबंध में सरकार की तरफ से लिया गया एक्शन है. राजकोषीय नीति को बजट के जरिए लागू किया जाता है. इसके माध्यम से सरकार अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है.
बजट आकलन: संसद में बजट प्रस्ताव रखते हुए वित्तमंत्री विभिन्न तरह के कर और शुल्क के माध्यम से होने वाली आमदनी और योजनाओं के खर्चों का लेखा पेश करते हैं, उसे ही आमतौर पर बजट आकलन कहा जाता है.
GDP: ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट यानी जीडीपी (GDP) किसी भी देश में एक निश्चित अवधि के दौरान उत्पादित हुई सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य होता है. किसी देश में स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग मापने के लिए जीडीपी को पैमाना माना जाता है.
पूंजी बजट: इस बजट में सरकार को पूंजी प्राप्तियां और भुगतान शामिल होते हैं. इसमें सरकार की ओर से रिजर्व बैंक और विदेशी बैंक से लिए जाने वाले कर्ज, ट्रेजरी चालानों की बिक्री से होने वाली आय के साथ ही पूर्व में राज्यों को दिए गए कर्जों की वसूली से आए धन का हिसाब-किताब भी शामिल होता है.
मौद्रिक नीति: मॉनिट्री पॉलिसी यानी मौद्रिक नीति ऐसी प्रक्रिया है, जिसकी मदद से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति को नियंत्रित करता है. मौद्रिक नीति से कई मकसद साधे जाते हैं. इनमें महंगाई पर अंकुश, कीमतों में स्थिरता और टिकाऊ आर्थिक विकास दर का लक्ष्य हासिल करना शामिल है.
मुद्रास्फीति: मुद्रास्फीति का मतलब आम बोलचाल की भाषा में महंगाई से है. जब उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में स्थाई या अस्थाई बढ़ोतरी होती है तो उसे मुद्रास्फीति या महंगाई कहते हैं. मुद्रास्फीति वो स्टेज है, जिसमें मुद्रा की मूल्य गिरता है. इससे कीमतें बढ़ती रहती हैं.
विनियोग विधेयक: केंद्र सरकार को वित्तीय वर्ष के दौरान व्यय को पूरा करने के लिए समेकित निधि से धन निकालने की शक्ति विनियोग विधेयक देता है. विनियोग विधेयक का सीधा अर्थ यह है कि तमाम तरह के उपायों के बावजूद सरकारी खर्चे पूरे करने के लिए सरकार की कमाई नाकाफी है और सरकार को इस मद के खर्चे पूरे करने के लिए संचित निधि से धन की जरूरत है. वित्तमंत्री एक तरह से इस विधेयक के जरिए संसद से संचित निधि से धन निकालने की अनुमति मांगते हैं.
योजना और गैर योजना खर्च: योजना खर्च में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सहायता के अलावा केंद्र सरकार की योजनाओं पर होने वाले सभी तरह के खर्चों को शामिल किया जाता है. उधर, गैर योजना खर्च में ब्याज की रक्षा, सब्सिडी, अदायगी, डाक घाटा, पुलिस, पेंशन, आर्थिक सेवाएं, सार्वजनिक उपक्रमों को दिए जाने वाले कर्ज और राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और विदेशी सरकारों को दिए जाने वाले कर्ज शामिल होते हैं.
लेखानुदान: संसद की ओर से नए वित्तीय वर्ष के एक भाग के लिए अनुमानित व्यय के संबंध में अग्रिम रूप से दिया जाने वाला अनुदान को लेखानुदान कहते हैं, जो अनुदानों की मांग पर मतदान और विनियोग अधिनियम के पारित होने से संबंधित प्रक्रिया के पूरा होने तक लंबित रहता है.