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Successful Guava Farmer: लंदन से की MBA की डिग्री, पर वतन लौटकर बन गए किसान, अमरूद की खेती से कमा रहे करोड़ों

इंग्लैंड के चेस्टर विश्वविद्यालय से कॉर्पोरेट फाइनेंस में MBA ग्रेजुएट कबीर चंद्राकर ने 2014 में जॉब न करके अपनी पारिवारिक खेती को आगे बढ़ाने का फैसला किया और आज वह एक सफल किसान हैं.

Success story of Guava Farmer Success story of Guava Farmer
हाइलाइट्स
  • कम की खेती की लागत 

  • 40 एकड़ में लगाए अमरूद

आज बहुत से ऐसे युवा हैं जिन्होंने विदेशों के बड़े-बड़े संस्थानों से पढ़ाई की है लेकिन वहां की कॉर्पोरेट कंपनियों में काम करने की बजाय अपने वतन लौटकर अपने देश को आगे बढ़ा रहे हैं. इन युवाओं में से एक हैं कबीर चंद्राकर. छत्तीसगढ़ के कबीर चंद्राकर साल 2014 में कॉर्पोरेट फाइनेंस में एमबीए पूरा करने के बाद लंदन से लौटे, तो उनके पास दो विकल्प थे. एक- वह कॉर्पोरेट जगत में शामिल हो सकते हैं या दूसरा- अपने परिवार के खेती के व्यवसाय को संभाल सकते थे. 

पीढ़ियों से कबीर का परिवार छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के मुजगहन गांव में अपने खेत में धान और सब्जियां उगा रहा है. उन्होंने हमेशा से देखा कि अक्सर उनके पिता की खेती में लागत कमाई से ज्यादा होती थी. उनका परिवार अपनी 45 एकड़ ज़मीन में से ज्यादा जमीन पर धान की खेती करता था. 2011-12 में, उनके पिता ने छह एकड़ में VNR बिही किस्म का अमरूद लगाया. यह किस्म तीसरे वर्ष में फल देना शुरू कर देती है. कबीर ने भारत में रहकर अपनी खेती को आगे बढ़ाने का फैसला किया. 

कम की खेती की लागत 
कबीर ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया कि एक बार जब अमरूद के फल छोटे नींबू के आकार के हो जाते हैं, तो हमें उन्हें विभिन्न जैविक और अजैविक तनावों से बचाने के लिए तीन-परत बैगिंग का सहारा लेना पड़ता है. तीन-परत बैगिंग में फलों को क्रमशः फोम नेट, एंटी-फॉग पॉलिथीन बैग और कागज से ढंकना शामिल है. 

उस समय, उनके पिता गुजरात के एक व्यापारी से फोम नेट 2.5 रुपये प्रति पीस पर खरीद रहे थे. लेकिन कबीर ने इन्हें 60 पैसे प्रति पीस पर थोक के भाव में खरीदा और एक ठीक-ठाक मार्जिन के साथ पर दूसरों को भी बेचा. इस अनुभव से उन्हें अमरूद की खेती, इसकी पैकेजिंग और फिर बिक्री के बारे में अच्छी जानकारी मिली. 

40 एकड़ में लगाए अमरूद
कबीर को इस सेक्टर में मुनाफा नजर आया और उन्होंने अपने करियर की तरह इसे लिया. उन्होंने पट्टे पर जमीन लेकर छत्तीसगढ़ में तीन जगहों पर अमरूद की खेती का क्षेत्र 110 एकड़ (अपने परिवार की भूमि सहित) तक बढ़ा लिया है. लगभग 70 एकड़ में पौधे अभी भी छोटे हैं और एक-दो साल में फल देंगे. वहीं, 40 एकड़ में फैले अमरूद के बागान से, कबीर ने पिछले साल 2.50 करोड़ रुपये या लगभग 6 लाख रुपये प्रति एकड़ का टर्नओवर कमाया है.

कबीर का कहना है कि साल 2020 में लगाए गए पेड़ अब उत्पादन के लिए तैयार हैं. उन्हें उम्मीद है कि इस साल का उत्पादन लगभग 1,000 टन होगा, जिससे उनका कारोबार लगभग 3 करोड़ रुपये हो जाएगा. लेकिन यह सफलता 2014 की शुरुआत में की गई उनकी कड़ी मेहनत का नतीजा है. 

मिली सरकारी सब्सिडी
2015 में, कबीर ने अपनी पैतृक भूमि पर अमरूद की खेती को छह एकड़ से बढ़ाकर 10 एकड़ कर दिया था. उन्होंने लोन लिया और राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) से सब्सिडी का लाभ उठाया. कबीर ने रायपुर में वीएनआर नर्सरी से अमरूद के पौधे खरीदे, कबीर ने पानी की बर्बादी को कम करने के लिए ड्रिप सिंचाई का विकल्प चुना. 2018 में एक बार जब अमरूद के पेड़ों पर फल लगने लगे, तो कबीर ने औसतन 45 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से उपज बेची.

वीएनआर बिही ज्यादा उपज देने वाली अमरूद की किस्म है. इसे सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. यह पौधा 25 वर्षों तक उपज देता है जिसके बाद उत्पादन कम हो जाता है. तीसरे से चौथे साल में, वार्षिक उपज लगभग 15 से 20 किलोग्राम प्रति पेड़ होती है और चौथे वर्ष में 25 किलोग्राम तक जा सकती है. उन्होंने अपने अमरूद को मंडी ले जाने की बजाय खेत से मार्केट किया. 

दूसरे देशों में जा रहे हैं उनके अमरूद 
थोक विक्रेता सीधे उनसे अमरूद खरीदकर लेकर गए. 2018 में, उन्होंने अपने परिवार की 40 एकड़ जमीन पर अमरूद लगाया. तीन एकड़ में एक तालाब और एक एकड़ में छंटाई, ग्रेडिंग और पैकेजिंग की सुविधा तैयार की. वे अपनी अमरूद की फसल को एवीएम अमरूद के रूप में ब्रांड किया है और बक्सों पर अपना संपर्क विवरण दिया है. इससे उनको ज्यादा पहुंच मिली. 

उनका अमरूद आज अगरतला, सिक्किम और अन्य स्थानों के अलावा नेपाल और भूटान तक जाता है. उत्तर में बिहार और उत्तर प्रदेश से लेकर पूरे दक्षिण भारत और ओडिशा तक, वे अपने अमरूद पूरे देश में भेजते हैं.