scorecardresearch

कंपनी नहीं कर सकती है Pregnant महिला को Fire, पढ़िए भारत में क्या हैं Maternity Leave को लेकर नियम 

Maternity leave policy India: सुप्रीम कोर्ट ने नीरा के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि उन्हें नौकरी से निकाला जाना पूरी तरह से गलत है और भेदभावपूर्ण है. एलआईसी को नीरा को पुरानी सैलरी और सभी फायदों के साथ बहाल करने का आदेश दिया गया.

Maternity leave benefits India (Representative Image/Unsplash) Maternity leave benefits India (Representative Image/Unsplash)
हाइलाइट्स
  • मैटरनिटी राइट्स की रही है लंबी लड़ाई 

  • कामकाजी महिलाओं के लिए मैटरनिटी लीव का अधिकार

कल्पना कीजिए कि आप एक कामकाजी महिला हैं. आप अपने पहले बच्चे के जन्म की तैयारी कर रही हैं. अचानक से आपको अपने ऑफिस से फायरिंग का नोटिस आता है. आप एक मेहनती एम्प्लोयी हैं, लेकिन जैसे-जैसे आपकी डिलीवरी की तारीख नजदीक आ रही है, आपकी प्रेग्नेंसी आपकी नौकरी खोने का कारण बन गई है. भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) में काम कर रही नीरा माथुर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उनकी दुनिया तब उलट गई जब उन्हें मैटरनिटी लीव के दौरान बर्खास्त कर दिया गया. एलआईसी ने दावा किया कि नीरा ने जॉइनिंग के समय अपनी प्रेग्नेंसी की बात को छुपाया था. 

भारत की कई महिलाओं की तरह, नीरा को भी इसी कड़वी सच्चाई का सामना करना पड़ा कि उनकी प्रेग्नेंसी उनकी नौकरी जाने का कारण बन गई. कोई दूसरा विकल्प न होने पर, नीरा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. उनकी कहानी ने आखिर में भारत भर में अनगिनत महिलाओं के लिए मैटरनिटी से जुड़े अधिकारों की दिशा बदल दी. 

मैटरनिटी राइट्स की लड़ाई 
नीरा माथुर का मामला सिर्फ उनके बारे में नहीं था; यह एक ऐसी व्यवस्था से लड़ने के बारे में था जो दशकों से कामकाजी महिलाओं के अधिकारों को पहचानने में विफल रही. मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट ऑफ 1961 (Maternity Benefit Act of 1961) को उनके जैसी महिलाओं की सुरक्षा करनी थी, लेकिन कई ऑफिसों में, इस नियम को या तो नजरअंदाज कर दिया गया या इसका पालन नहीं किया गया. 

सम्बंधित ख़बरें

नीरा माथुर बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम (1992)
नीरा के मामले में, LIC ने गलत तरीके से उन्हें नौकरी से निकाल दिया था. साथ ही यह दावा किया कि नीरा ने अपनी प्रेग्नेंसी को छुपाया था. इसके जवाब में, नीरा ने मुकदमा दायर किया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया गया कि मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट के तहत उनका टर्मिनेशन गलत था. 

लेकिन, सुप्रीम कोर्ट (Supreme court of india) ने नीरा के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि उन्हें नौकरी से निकाला जाना पूरी तरह से गलत है और भेदभावपूर्ण है. एलआईसी को नीरा को पुरानी सैलरी और सभी फायदों के साथ बहाल करने का आदेश दिया गया. इस फैसले में एम्प्लॉयर को प्रेग्नेंट कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करने की जरूरत पर जोर दिया गया. साथ ही कहा गया कि महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी उनके टर्मिनेशन का कारण नहीं हो सकता है. 

हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) बनाम सरोज मंडल (2011)
एक और मामला जिसने मातृत्व अधिकारों की लड़ाई को आगे  बढ़ाने का काम किया, वह सरोज मंडल का है. एलिजिबल होने के बावजूद, उनके एम्प्लॉयर, एचपीसीएल ने उन्हें मैटरनिटी राइट्स नहीं दिए. इस इनकार ने उन्हें प्रेग्नेंसी के दौरान काफी परेशान किया, जिससे उसे बिना सैलरी के छुट्टी लेने के लिए मजबूर हुआ पड़ा. 

सरोज ने शिकायत दर्ज करके लड़ाई लड़ी और इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया. एचपीसीएल को सरोज को सभी को मैटरनिटी बेनिफिट देने का आदेश दिया गया. 

सुप्रीम कोर्ट (फोटो-PTI)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो-PTI)

एयर इंडिया बनाम नर्गेश मिर्जा (1981)
एयर इंडिया भी ऐसे मामले से अछूता नहीं रहा. ऑफिस में लैंगिक समानता के लिए संघर्ष तब सामने आया जब एयर इंडिया की एक एयर होस्टेस नर्गेश मिर्ज़ा को इसका सामना करना पड़ा. एयर इंडिया ने नर्गेश मिर्जा को प्रेग्नेंट होने के बाद जबरदस्ती रिटायर होने के लिए कहा गया. इस पॉलिसी ने महिलाओं के करियर की संभावनाओं को सीमित कर दिया. 

एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ये पॉलिसी भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है. एयर इंडिया को सभी कर्मचारियों के लिए इस पॉलिसी को बदलने का आदेश सुनाया गया. 

भारत में कामकाजी महिलाओं के लिए मैटरनिटी लीव का अधिकार
आज मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट के तहत, महिलाएं को कई फायदे मिलते हैं: 

-पहले दो बच्चों के लिए 26 सप्ताह की पेड मैटरनिटी लीव. 

-तीसरे बच्चे के लिए 12 सप्ताह का मैटरनिटी लीव.

-मिसकैरेज के मामलों में 6 सप्ताह की छुट्टी. 

-अगर बच्चा तीन महीने से कम उम्र का है तो गोद लेने वाली माताओं के लिए 12 सप्ताह का मैटरनिटी लीव. 

-50 या ज्यादा कर्मचारियों वाले ऑफिस पर क्रेच सुविधाएं. 

-मैटरनिटी लीव के दौरान किसी भी महिला को काम से नहीं निकाला जाए.

-जैसे डिलीवरी के बाद घर से काम करने की व्यवस्था. 

-ट्यूबेक्टोमी (सर्जिकल नसबंदी) जैसे मामलों में, एक महिला दो सप्ताह की छुट्टी की हकदार है. अगर प्रेग्नेंसी, डिलीवरी या समय से पहले जन्म के कारण कोई बीमारी होती है, तो वह एक महीने की अलग से छुट्टी ले सकती है.