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COP28 Climate Summit: जानें क्या है क्लाइमेट फाइनेंस, जिसको विकासशील देशों के लिए बताया जा रहा है जरूरी

इस पहल का उद्देश्य निजी क्षेत्र की पूंजी को जलवायु निवेश की ओर ले जाना है. साथ ही लोगों को पर्यावरण से संबंधित चीजों में निवेशों करने के लिए बढ़ावा देना है. भारत जैसे देशों के लिए इसे जरूरी बताया जा रहा है.

COP28 Climate Summit COP28 Climate Summit
हाइलाइट्स
  • क्लाइमेट फाइनेंस पर हो रही बात

  • भारत जैसे देशों के लिए है जरूरी

दुनियाभर में पर्यावरण को लेकर लंबी-लंबी चर्चाएं हो रही हैं. धरती के प्रदूषण को कम करने के लिए बड़े-बड़े सम्मेलन और फैसले लिए जा रहे हैं. अब इसी कड़ी में चल रहे COP28 जलवायु शिखर सम्मेलन में एक ऐतिहासिक घोषणा की गई है. संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने एक $30 बिलियन (3000 करोड़ रुपये) के फंड की घोषणा की है. इस पहल का उद्देश्य निजी क्षेत्र की पूंजी को जलवायु निवेश की ओर ले जाना है. साथ ही लोगों को पर्यावरण से संबंधित चीजों में निवेशों करने के लिए बढ़ावा देना है. यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल-नाहयान ने इस बात पर जोर दिया कि यह फंड रणनीतिक रूप से क्लाइमेट फाइनेंस गैप को पाटने और 2030 तक 250 बिलियन डॉलर के अतिरिक्त निवेश को ट्रिगर करने के लिए डिजाइन किया गया है.

क्या है क्लाइमेट फाइनेंस?

क्लाइमेट फाइनेंस या जिसे जलवायु वित्त कहा जा रहा है, COP28 का एक केंद्रीय विषय है. इसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने या उसको कंट्रोल करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश करना शामिल है. लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन से पैदा हो रहे खतरे को कम करने या उससे नपटने के लिए ये कदम उठाया जा रहा है. इस फंड का इस्तेमाल अलग-अलग जगहों पर किया  जा सकेगा. जैसे तटीय समुदायों को समुद्र के बढ़ते स्तर से बचाने के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करना. इसके अलावा, ग्रीनहाउस गैस एमिशन को कम करना, रिन्यूएबल एनर्जी सोर्सेज के उपयोग को बढ़ाना, बड़े स्तर पर पेड़ पौधे लगाना आदि शामिल है. 

विकासशील देशों ने इसे लेकर क्या कहा है?

दरअसल, विकासशील देशों का तर्क है कि वित्तीय सहायता जरूरी है. यह देखते हुए कि जलवायु संकट अब विकसित दुनिया को बड़े स्तर पर प्रभावित कर रहा है ऐसे में ये कदम उठाना जरूरी है. बता दें, इसके बारे में जलवायु परिवर्तन पर 1992 के संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन में जिक्र किया गया है. इसके मुताबिक, उच्च आय वाले देशों को अपने से कम समृद्ध देशों को ये क्लाइमेट फाइनेंस प्रदान करना होगा. हालांकि, इसे लेकर साल 2009 से ही बात चल रही है. 2009 में विकसित देशों ने 2020 तक विकासशील देशों को सालाना 100 बिलियन डॉलर का योगदान देने का वादा किया था, लेकिन इसे लेकर अभी तक कोई भी वादा पूरा नहीं किया गया है. 

विकासशील देशों के पास नहीं है इतना फंड

बता दें, यूएनएफसीसीसी की स्थायी समिति ने 2021 में एक विश्लेषण किया था. इसमें क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर बात की गई थी. इस विश्लेषण में इस बात का जिक्र मिलता है कि विकासशील देशों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को पूरा करने के लिए 2030 तक कम से कम 5.8 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत है. यह लगभग 600 बिलियन डॉलर की सालाना जरूरत के बराबर है. ऐसे में जरूरी है कि विकसित देश भी विकासशील देशों की मदद करें ताकि इस गैप को भरा जा सके.