नेचर नाम के अंतरराष्ट्रीय जर्नल ने सितंबर 2024 में जारी एक स्टडी में बताया कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन करता है. दुनियाभर में जितने प्लास्टिक का उत्पादन होता है, उसका पांचवां हिस्सा भारत से निकल रहा है. देश ने भले ही दो सितंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण रोकथाम दिवस (National Pollution Control Day) मनाया. लेकिन भारत प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में फिलहाल काफी हद तक पिछड़ा हुआ है.
बात अगर खास तौर पर प्लास्टिक की हो तो प्लास्टिक उत्पादन भारत के लिए भी एक सिरदर्द बना हुआ है. यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरा हुआ प्लास्टिक चुभता तो सभी की आंखों को है, लेकिन इससे निपटने की एक तरकीब गुरुग्राम के दो दोस्तों को सूझी है. ऋषभ पटेल और नितिन यादव की जोड़ी ने वेस्ट-मैनेजमेंट की अपनी अनूठी इनोवेशन से डंप इन बिन (Dump In Bin) नाम की कंपनी खड़ी कर डाली है.
डंप इन बिन एक ऐसी कंपनी है जो कूड़े में पड़े प्लास्टिक को रिसाइकिल कर उससे पेवमेंट सहित कई प्रोडक्ट्स बना रही है. अपने इस स्टार्टअप को लेकर ऋषभ ने जीएनटी टीवी डॉट कॉम से खास बातचीत की और अपनी कंपनी के उतार-चढ़ाव भरे सफर के बारे में बताया. आइए डालते हैं डंप इन बिन के काम और सफर पर एक नजर.
कहां से आया आइडिया
कंपनी के सीईओ (Chief Executive Officer) ऋषभ पटेल ने बताया कि उन्हें यह कंपनी खोलने का खयाल तब आया जब वे घर से लौटते वक्त सफर कर रहे थे. गुरुग्राम आते हुए उन्हें दिल्ली-जयपुर हाइवे पर एक कचरे का ढ़ेर दिखा. इसे देख उन्होंने सोचा कि क्यों न इस प्रॉब्लम को सॉल्व किया जाए. यही वो समय था जब उन्होंने आपदा में अवसर ढूंढ निकाला.
अपने सपने को साकार करने के लिए ऋषभ ने कई कबाड़े वालों से संपर्क साधा. और काम से जुड़ी रिसर्च करना शुरू की. उन्हें समझ आया कि यह काम अकेले नहीं किया जा सकता. और फिर ऋषभ ने अपने जुगाड़ू दोस्त नितिन यादव से अपना आइडिया शेयर किया. आइडिया के बारे में सुनते ही नितिन ने साथ काम करने के लिए हामी भर दी. और फिर क्या था, लग गए दोनों दोस्त काम में.
कैसे काम करती है कंपनी?
ऋषभ ने बताया कि यह कंपनी (Dump In Bin) कबाड़ी वालों से अलग-अलग तरह के प्लास्टिक खरीदती है. इन प्लास्टिक की अच्छी तरीके से छंटाई कर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है. इस प्लास्टिक का कुछ हिस्सा उन व्यवसायियों को दिया जाता है जो इसे रिसाइकिल करके इससे नए प्रोडक्ट बनाती हैं. जिस प्लास्टिक को रिसायकल करना मुश्किल होता है उसके ऊपर काम करना शुरू किया जाता है.
यहां से ऋषभ और नितिन की असली चुनौती शुरू हुई. उन्हें इस प्लास्टिक को काम में लाना था. काफी रिसर्च करने के बाद दोनों ने एक ऐसा प्रोडक्ट बनाने की कोशिश की, जो कंक्रीट की जगह इस्तेमाल हो सके. कई कोशिशों के बाद जो प्रोडक्ट बना, वह कंक्रीट से कई गुना ज्यादा मजबूत था. उसे इन्होंने प्लेव (Plave) का नाम दिया.
प्लेव बनाने का सफर इसलिए भी खास था क्योंकि इसके लिए उन्हें नई मशीनरी भी तैयार करनी पड़ी. यह मशीन सिंगल यूज प्लास्टिक और मल्टीलेयर प्लास्टिक को चपटा करके प्लेव बनाती है. इस पूरे प्रोसेस में डंप इन बिन को दो साल का समय लगा. लेकिन प्रोडक्ट तैयार हुआ एकदम पैसा-वसूल.
प्लेव इतना मजबूत है कि ये एक बुलेट ट्रेन तक को सह सकता है. यह एक सस्टेनेबल बिल्डिंग मटेरियल है जिसके अंदर कोई भी सीमेंट नहीं डाली जाती. बल्कि इसका इस्तेमाल सीमेंट के बदले किया जा सकता है. यह मटेरियल इतना मजबूत होता है कि इसे रोड और फूटपाथ बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है.
5 लाख के लोन से खड़ी की करोड़ों की कंपनी
भले ही ऋषभ और नितिन का बिजनेस नई ऊंचाइयां छू रहा है लेकिन एक ऐसा भी समय था जब उनके अपने घर वालों ने भी भौहें सिकोड़ना शुरू कर दी थीं. हालांकि खूब समझाने के बाद घर वालों नें दोनों के सपनों को समझा. ऋषभ ने बताया कि उन्होंने इस कंपनी की शुरूआत 2017 में की थी. इसे बनाने के लिए दोनों दोस्तों ने पांच लाख रुपए का लोन लिया था. आज इस कंपनी की नेट वर्थ 2.5 करोड़ रुपये है. इस कंपनी में फिलहाल 9 लोग काम कर रहे हैं. इसे बढ़ा कर 25 करने की तैयारी की जा रही है.
क्या है आगे का प्लान?
ऋषभ ने बताया कि वह कंपनी के विस्तार के बारे में सोच रहे हैं. वह डंप इन बिन के लिए एक ऐसा केंद्र बनाने पर विचार कर रहे हैं जहां कूड़े के कलेक्शन से लेकर उसके रिसाइकल तक का सभी काम हो. वहीं आगे उन्होंने सोचा है कि वह अपनी कंपनी का मटेरियल दूसरे शहरों में भी निर्यात करेंगे. इसके साथ ही ऋषभ ने भारतीयों से निवेदन किया है कि कचरे को अलग-अलग कूड़ेदानों में ही डालें. जिससे रिसायकल का काम आसान हो सके.
(जीएनटी टीवी डॉट कॉम के लिए यामिनी सिंह बघेल की एक्सक्लुसिव रिपोर्ट. यामिनी फिलहाल जीएनटी के साथ बतौर इंटर्न काम कर रही हैं)