जिंदगी की बढ़ती भागदौड़ में लोग अपने खाने पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. हालांकि, कोविड-19 के बाद से हालात बदले हैं. लोगों अपनी सेहत और खानपान को लेकर काफी सजग हो गए हैं और ऑर्गनिक (Oragnic) चीजों पर ही भरोसा कर रहे हैं. इसी कड़ी में दिल्ली-NCR में किचन गार्डनिंग (Kitchen Gardening) का कॉन्सेप्ट देखने को मिल रहा है. जिसमें अपने घरों की छत पर लोग बागवानी कर रहे हैं. रोजमर्रा की खपत के लिए सब्जियां उगाने वाले शहरी परिवारों की संख्या में वृद्धि हुई है. हालांकि, ज्यादातर पौधों को उगाने और उनके रखरखाव के लिए मदद की जरूरत होती है. बस इसी को देखते हुए कपिल मंडावेवाला (Kapil Mandawewala) ने एडिबल रूट्स (Edible Routes) शुरू किया है.
कपिल मंडावेवाला मैनेजमेंट ग्रेजुएट हैं. गुजरात के जामनगर से ताल्लुक रखने वाले कपिल इससे पहले अमेरिका में डेलॉइट के साथ काम कर चुके हैं. खेती से जुड़े काम में उनकी रुचि ने उन्हें एडिबल रूट्स शुरू करने के लिए प्रेरित किया. वह कहते हैं, ''हम नहीं जानते कि जो खाना हम खाते हैं वह कहां उगाया जाता है या इसे उगाने के लिए किन केमिकल का उपयोग किया जाता है. ऐसे में हम लोगों को उन्हें उनके खाने से जोड़ने में मदद करते हैं." एडिबले रुट्स लोगों के लिए ताजी और जैविक सब्जियां उगाता है. इसके लिए वे किचन गार्डन या अपने खुद के फार्म का सहारा लेते हैं.
पिछले 5-6 साल में कपिल लगभग 2000 किचन गार्डन बना चुके हैं. वहीं तीनों फार्म में अभी 100 ग्राहक हैं जिनके लिए एडिबल रुट्स सब्जियां उगाने का काम कर रहा है. इतना ही नहीं लोगों के कई फार्म्स भी कपिल की टीम देख रही है.
2 मॉडल पर काम करते हैं कपिल
कपिल बताते हैं कि वे 2 मॉडल पर काम कर रहे हैं. एक लोगों को रेंट पर लैंड देकर सब्जियां उगाना औए दूसरा खुद उनके घरों या छतों पर सब्जियां उगाना. वे बताते हैं, “एडिबल रूट में कपिल की टीम लोगों को खाना उगाने में मदद करते हैं. ये स्पेशली शहरों में रहने वाले लोगों के लिए है. चाहे वे बालकनी में सब्जियां उगाएं या उनके पास कोई छोटा लैंड हो. उनके पास अगर जगह नहीं है तो हमारे पास अभी 3 फार्म हैं, जिसमें हम Monthly Subscription Basis पर फार्म देते हैं. जिसमें 1200 स्क्वायर फ़ीट देते हैं. ये दो मॉडल पर हम लोग काम करते हैं. दिल्ली-गुरुग्राम और नोएडा में हमारे 3 फार्म हैं. इसका मकसद लोगों को ये दिखाना है कि आखिर हमारा खाना कैसे उगता है. ये शहरों में रहने वाले लोगों का जो रिश्ता है अपने खाने से उसे जोड़ने में हम लोगों की मदद करते हैं.”
2014 से शुरू हुआ सफर
कपिल ने इसकी शुरुआत गुजरात से की थी जहां वे खेती करते थे. पहले वो अमेरिका में कॉर्पोरेट नौकरी में थे, उसके बाद 2008 में उन्होंने अपनी पारिवारिक जमीन पर खेती शुरू की थी. वे बताते हैं, “शुरुआत के 5-6 साल तो मैं नॉर्मल खेती ही कर रहा था, जिसमें अनाज-डाल वगेरह उगाता था. फिर मैंने धीरे धीरे अर्बन फार्मिंग या किचन गार्डनिंग का जो आईडिया है, कि हम छोटी जगहों में खाने का सामान केसव उगाएं इसपर मैंने एक्सपेरिमेंट शुरू किया. 2012-13 में मैंने ये शुरू किया था. हालांकि 2014 में एक दोस्त ने मुझे दिल्ली एक वर्कशॉप करने के लिए बुलाया कि लोग कैसे अपने घरों में सब्जियां उगा सकते हैं. इससे हमने मार्च 2014 में एक वर्कशॉप की थी. तभी से एडिबल रूट की जमीन सेट हो गई थी. एडिबल रूट को हमनें 2016 में लॉन्च किया था.”
कपिल बताते हैं, “इस वर्कशॉप के बाद हमें कई लोगों ने अपनी सोसाइटी में बुलाया कि आप हमारे यहां भी करिए. पहले 3-4 साल, 2014 से 2018 तक हमने लोगों को उनका किचन गार्डन सेट करने ही सिखाया. 2018 में फिर हमने ये मिनी फार्म वाला कॉन्सेप्ट शुरू किया. इसका आईडिया हमें लोगों ने ही दिया. 2018 में हमने एक फार्म से शुरू किया था. अब हमारे पास 3 फार्म हैं.”
लोग कर सकते हैं अपने मिनी फार्म के लिए सब्सक्राइब
दरअसल, कोई भी एडिबल फार्म में सब्जियों के लिए सब्सक्राइब कर सकता है. इसमें आप एक मिनी फार्म के लिए सब्सक्राइब करते हैं, जिसमें फिर जितनी भी सब्जी उगती है वो आपको डिलीवर कर दी जाती है. इस कॉन्सेप्ट के बार मे बात करते हुए कपिल कहते हैं, “जब किसी को सब्सक्राइब करना होगा है फार्म के लिए तो पहले हम उन्हें आकर देखने के लिए कहते हैं. जब उनका विश्वास बन जाता है तब हम उन्हें सब्सक्राइब करने को कहते हैं. जिस तरह से हमने मॉडल डिजाइन किया है उसमें जो सब्जियां उनके फार्म में उगती हैं हम सीधा उन्हें वो डिलीवर कर देते हैं. अगर हम केमिकल डालेंगे तो हमारा विश्वास टूटेगा. सब्जी कितनी भी हो चाहे 2 किलो है या 20 किलो वो पूरा हम लोगों को डिलीवर कर देते हैं. लोग अपने फार्म पर आकर देखते रहते हैं.”
झेलनी पड़ती है मौसम की मार
ये सफर इतना आसान नहीं रहा है. कपिल के मुताबिक उन्हें शुरुआत में कई सारी मौसमी परेशानियों का सामना करना पड़ा था. वे बताते हैं, “शुरआत में जब हमने दिल्ली में शुरू किया था तो यहां के मौसम ने हमें बहुत परेशान किया. ज्यादा गर्मी या ज्यादा ठंड की वजह से सब्जियां सूख जाया करती थी. हमने 10-20 किचन गार्डन बनाए थे, वो सब खराब हो गए थे. लेकिन फिर धीरे धीरे हमने मौसम को समझा. और पौधों को बचाने के लिए अलग-अलग तरीके ढूंढे. अब इतने साल हो गए हैं तो थोड़ी स्टेबिलिटी आ गई है. इसके अलावा, शहरों में जानवरों की वजह से कई बार खेती खराब हो जाती है. हम पहले ही लोगों को समझा देते हैं कि आपके लैंड में कितनी सब्जियां उग सकती है. इससे हम इस पूरे कॉन्सेप्ट को पारदर्शी बनाते हैं.”
बनाना चाहते हैं मालियों का नेटवर्क
Edible Routes में अभी 15 लोग काम कर रहे हैं. वहीं भविष्य को लेकर कपिल एक मालियों का नेटवर्क बनाने पर काम कर रहे हैं. कपिल कहते हैं, “हम।मालियों को सब्जियां उगाना सिखाना चाहते हैं. शहरों में किचन गार्डन कैसे बनाया जाए इसको लेकर हम एक ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाना चाहते हैं. हम मालियों की स्किल को बढ़ाना चाहते हैं. इसके लिए हम पहले दिल्ली-एनसीआर के मालियों को ये सिखाना चाहते हैं. इसके अलावा, हम देश के अलग-अलग टियर-1 और टियर-2 शहरों में ऐसे फार्मलैंड शुरू करना चाहते हैं. इसे हम एक पार्टनरशिप मॉडल पर शुरू करना चाहते हैं.”
आखिर में कपिल कहते हैं कि हमें खाने के साथ एक रिश्ता जोड़ना चाहिए. कई लोगों को ये मुश्किल लगता है लेकिन ये काफी आसान है. क्योंकि ये हमारी सेोहत के लिए खर्च हो रहा है. हम आमतौर पर भी खर्चा कर ही देते हैं, लेकिन इसमें हम अपनी ऑर्गेनिक सब्जियों पर खर्चा करेंगे, जो भविष्य में होने वाले मेडिकल खर्चों से हमें बचाएगा.