वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी सरकार का पहला बजट पेश कर रही हैं. इस तरह का बजट आम तौर पर भारत में हर पांच साल में पेश किया जाता है. हर पांच साल में, केंद्रीय बजट दो बार पेश किया जाता है - पहले आउटगॉइंग सरकार के अंतरिम बजट के रूप में (फरवरी में) और फिर नई सरकार के पूर्ण बजट के रूप में. सीतारमण ने 1 फरवरी को चालू वित्त वर्ष (2024-25) के लिए अंतरिम बजट पेश किया था.
बजट क्या है?
बजट एक ऐसी एक्सरसाइज है जहां सरकार संसद (और इसके माध्यम से, पूरे देश) को अपने फाइनेंस के बारे में बताती है. इसका मतलब है तीन मुख्य चीजों पर खरा उतरना: आय (इनकम), व्यय (खर्च) और उधार. बजट आम तौर पर एक वित्तीय वर्ष के खत्म होने और दूसरे की शुरुआत में आता है. यह नागरिकों को बताता है कि सरकार ने पिछले साल कितना पैसा जुटाया, इसे कहां खर्च किया, और कितना उधार लेना पड़ा. साथ-साथ यह अनुमान भी देता है कि अगले वित्तीय वर्ष (मौजूदा मामले में, चालू वित्तीय वर्ष) में क्या कमाई होने की उम्मीद है, सरकार इसे कितना और कहां खर्च करने की योजना बना रही है, और उन्हें कितना उधार लेना पड़ सकता है.
क्यों मायने रखता है बजट
आमतौर पर सामान्य लोगों का सवाल हो सकता है कि उन्हें सरकार के फाइनेंस के बारे में परेशान होने की जरूरत क्यों है? क्योंकि यह उनका पैसा नहीं है. या फिर ज्यादा से ज्यादा बस उन्हें इतनी ही उम्मीद रहती है कि किसी तरह की टैक्स से राहत मिल जाए या सरकार से कोई नकदी मदद मिले. लेकिन ऐसा सिर्फ उन लोगों को लगता है जिन्हें बजट की अच्छी समझ नहीं है. क्योंकि फैक्ट यह है कि सरकार का पैसा जैसा कुछ नहीं होता है जो भी सरकारी धन है वह सब टैक्सपेयर्स का पैसा है.
एक बार पूर्व ब्रिटिश प्रधान मंत्री मार्गरेट थैचर ने के के हाउस ऑफ कॉमन्स में कहा था कि इस फैक्ट को कभी न भूलें. राज्य (सरकार) के पास लोगों के कमाए गए पैसे के अलावा कोई दूसरा पैसे का स्रोत नहीं है. अगर राज्य (सरकार) ज्यादा खर्च करना चाहती है, तो वह ऐसा सिर्फ आपकी सेविंग्स उधार लेकर या आप पर ज्यादा टैक्स लगाकर कर सकती है. अगर आपको लगता है कि इस खर्च का भुगतान कोई और करेगा तो यह गलत है क्योंकि वह कोई और आप ही हैं.
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो बजट अनिवार्य रूप से नागरिकों के पैसे पर चर्चा करता है, सरकार की उधारी (फिसकल डेफिसिट), बिना किसी अनिश्चित शर्तों के, लोन में एडिशन है जिसे नागरिकों और उनकी आने वाली पीढ़ियों को चुकाना होगा. इसी तर्क से, नागरिकों के लिए इन चीज़ों पर बारीकी से नज़र रखना मायने रखता है: सरकार किस पर कर लगाती है और कितना? सरकार की खर्च के लिए प्राथमिकता क्या हैं? क्या यह शिक्षा और स्वास्थ्य पर पर्याप्त खर्च करता है? क्या यह योग्य लोगों को सब्सिडी देता है? यह अपनी आय और खर्च के बीच के गैप को कैसे पूरा करता है.
अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है यूनियन बजट
केंद्रीय बजट घरेलू बजट की तरह नहीं होते क्योंकि केंद्रीय बजट पूरे देश को प्रभावित कर सकते हैं. उधारी और लोन के बढ़ते स्तर के साथ लोगों पर ज्यादा बोझ न डालने के अलावा, सरकार बजट का उपयोग भारतीय नागरिकों और बिजनेसेज के व्यवहार को दो व्यापक तरीकों से प्रभावित करने के लिए कर सकती है.
एक यह है कि यह किस पर और कितना टैक्स लगाता है. उदाहरण के लिए, अगर कोई सरकार अर्थव्यवस्था के एक सेगमेंट में व्यवसायों को प्रोत्साहित करना चाहती है - शायद इसलिए क्योंकि उसका मानना है कि इस तरह के कदम से भारत की डेमोग्राफिक प्रोफ़ाइल को लाभ मिलेगा, नौकरियां पैदा होंगी और समृद्धि आएगी - यह टैक्स की दर को कम कर सकती है. हालांकि, टैक्स की दर कम करने से रेवेन्यू कम नहीं होगा क्योंकि संभव है कि बढ़ी हुई आर्थिक गतिविधि (कम कर दर के कारण) कम टैक्स रेट के बावजूद ओवरऑल रेवन्यू को बढ़ाने में मदद करे.
दूसरा, यह बदलाव करना कि सरकार कहां और कितना खर्च करती है. नई सरकार के कार्यकाल की शुरुआत में बजट अक्सर एक व्यापक बदलाव का संकेत दे सकता है कि सरकार अपना पैसा कैसे खर्च करना चाहती है. उदाहरण के लिए, पिछली सरकार (2019-2024) का सबसे बड़ा व्यापक आर्थिक नीति बदलाव निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करना था. इस उद्देश्य से, सरकार ने एक ओर कॉर्पोरेट टैक्स में टैक्स छूट दी, वहीं दूसरी ओर इंफ्रास्ट्रक्चर में अपने खर्च को बढ़ाया.