केंद्र सरकार ने खाद्य सामग्री और सीमेंट समेत कुछ अन्य सामानों की पैकेजिंग से जुड़े नियमों में कुछ अहम बदलाव किए हैं. इससे पहले, नया नियम 1 अक्टूबर को लागू होना था, लेकिन अब इस तारीख को बढ़ाकर 1 दिसंबर कर दिया गया है यानि नए नियम 1 दिसंबर से लागू होंगे. इनमें से ज्यादातक खाने-पीने की चीजें हैं, जिसके अनुसार कई तरह के बदलाव देखने को मिलेंगे.
किन चीजों पर होगा लागू?
केंद्र सरकार ने लीगल मेट्रोलॉजी, पैकेट कमोडिटी रूल्स (Packet Commodity Rules) में बदलाव कर दिया गया है. इसके अंदर दूध, चाय, बिस्किट, खाद्य तेल, आटा, बोतलबंद पानी और पेय, बेबी फूड, दाल, अनाज, सीमेंट बैग, ब्रेड एवं डिटर्जेंट जैसे 19 आइटम आएंगे. साथ ही आइटम पर मैन्युफैक्चरिंग डेट लिखना अब जरूरी होगा.
क्या होगा बदलाव?
इन वस्तुओं के पैकेट पर आप जो मुख्य परिवर्तन देखेंगे, उसमें गोल आकृति में एमआरपी शामिल होंगे. इसका मतलब है कि इन वस्तुओं की कीमत 110.5 रुपये नहीं हो सकती है, यह 110 रुपये या 111 रुपये होनी चाहिए, जिसमें कोई बीच का आंकड़ा नहीं होना चाहिए.
इसके अलावा, अगर प्रोडक्ट का वजन/मात्रा मानक वजन से कम है, तो निर्माता को प्रति ग्राम/एमएल कीमत को भी लिखना होगा. इससे उपभोक्ताओं को माल की सही कीमत जानने में मदद मिलेगी.
क्या होगा फायदा?
बदले हुए नियम के अनुसार, पैकेज्ड आइटम में मानक से कम वजन है तो प्रति ग्राम या प्रति मिलीलीटर के हिसाब से दाम लिखना होगा जरूरी हैं. मान लीजिए कि किसी पैकेट में 1 किलो से ज्यादा सामान है तो उसका रेट 1 किलो या 1 लीटर के हिसाब से लिखना जरूरी होगा. कई कंपनियां कीमतों को आकर्षक बनाने के लिए कम वजन के पैकेट बाजार में लेकर आती रहती हैं.
इससे पहले इस साल की शुरुआत में, उपभोक्ता मामलों के विभाग ने लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटीज), (दूसरा संशोधन) नियम 2022 के तहत इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को एक वर्ष की अवधि के लिए क्यूआर कोड के माध्यम से कुछ अनिवार्य घोषणाओं को घोषित करने की अनुमति दी थी, अगर पैकेज इसे खुद घोषित नहीं करता है.
कंपनिया खुद तय कर सकेंगी मात्रा
संशोधन ने उद्योग को क्यूआर कोड के माध्यम से विस्तृत जानकारी को डिजिटल रूप में घोषित करने की अनुमति दी. इससे पहले, इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों सहित सभी पूर्व-पैक वस्तुओं को पैकेज पर लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटीज), नियम 2011 के अनुसार सभी जरूरी डिक्लरेशन को घोषित करना आवश्यक है. केंद्र सरकार ने फूड कंपनियों के लिए नियम बनाया था कि स्टैंडर्ड पैकिंग होनी चाहिए. अब सामान बनाने वाली कंपनियों को पूरी आजादी होगी कि वह बाजार में जो पैकेज आइटम बेचती हैं, उसकी मात्रा खुद निर्धारित कर सकें.