गौतम अडानी भले ही आज एशिया के सबसे बड़े व्यापारी हैं, लेकिन उन्हें यह अरबों की संपत्ति विरासत में नहीं मिली. अडानी ने अपना व्यवसाय एक हीरा व्यापारी के तौर पर शुरू किया था. लेकिन देखते ही देखते उन्होंने कुछ दशकों में अडानी एंटरप्राइज (Adani Enterprises) को खड़ा किया और देश के कई बड़े उद्योगपतियों को पीछे छोड़ दिया.
अडानी के इस विशाल बिजनेस को देखकर एक सवाल उठता है कि उन्होंने अपना सफर कहां से शुरू किया. और वह यहां तक कैसे पहुंचे. दरअसल अडानी ने हीरा व्यापार के बाद प्लास्टिक ट्रेडिंग के जरिए अपने ग्रुप की शुरुआत की थी. इस बिजनेस में अडानी ने अपने पांव कैसे जमाए और अपने विरोधियों को पीछे कैसे छोड़ा, इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है.
जब किया प्लास्टिक किंग बनने का फैसला
गौतम अडानी के जीवन पर किताब लिखने वाले पत्रकार आरएन भास्कर बताते हैं कि प्लास्टिक किंग बनने का सफर अडानी के लिए तब शुरू हुआ जब उन्होंने कम दाम में प्लास्टिक खरीदने का फैसला किया. अडानी का मानना था कि जब तक वह कम दाम पर प्लास्टिक नहीं खरीदते, तब तक अपने प्रतिस्पर्धियों को हरा नहीं सकते.
राज शमानी की पॉडकास्ट पर भास्कर कहते हैं, "सोर्स मटेरियल कहां से मिले, यह जानने के लिए गौतम ने खरीदारों से बात करना शुरू की. लोग उन्हें नजरंदाज करते थे लेकिन गौतम रुकने वाला नहीं था." भास्कर बताते हैं कि बहुत पड़ताल करने के बाद गौतम को पता चला भारत में प्लास्टिक कोरिया से इंपोर्ट हो रहा है. उन्होंने यह भी पता किया प्लास्टिक कौनसे व्यापारी इंपोर्ट करते हैं. यहीं से जागी ज्यादा प्लास्टिक इंपोर्ट करने की भूख.
जय भाई से मुलाकात... और संघर्ष
भास्कर बताते हैं कि अडानी ने प्लास्टिक इंपोर्ट करने वाले गुजरात के एक व्यापारी जय भाई से मुलाकात की और उनके साथ संबंध मजबूत किए. अडानी उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे और उनकी छोटी से छोटी आदत को अपने अंदर लाने की कोशिश करते थे. भास्कर बताते हैं कि एक समय ऐसा भी आया जब जय भाई के साथ ट्रेन में सफर करने के लिए अडानी ट्रेन के फर्श पर भी सोया करते थे.
इसकी वजह यह थी कि जय भाई फर्स्ट क्लास में सफर करते थे. अडानी सेकंड क्लास का किराया ही अदा कर सकते थे. ऐसे में वह सेकंड क्लास का टिकट लेकर ट्रेन में चढ़ जाते थे. वह दिन में जय भाई से बात करके समय बिताते थे. और रात होने पर वहीं अखबार बिछाकर सो जाते थे.
फिर कोरिया से किया बंपर इंपोर्ट
इस तरह अडानी ने जय भाई से अपने संबंध अच्छे किए. जब अडानी कोरिया से प्लास्टिक इंपोर्ट करने के लिए जय भाई की मदद मांगी तो उन्होंने कहा कि इसके लिए कम से कम 20 टन प्लास्टिक इंपोर्ट करना होगा. हालांकि अब तक अडानी ज्यादा से ज्यादा पांच टन प्लास्टिक ही आयात के जरिए मंगवाया करते थे.
अडानी ने यह चुनौती स्वीकारी और बड़े व्यापारियों से संपर्क साधकर उन्हें कम दामों पर प्लास्टिक बेचने का वादा किया. इस तरह उन्होंने 20 टन प्लास्टिक का सफलतापूर्वक आयात किया. हालांकि यहां अडानी का प्लान खत्म नहीं, बल्कि शुरू हुआ था. एक बार इन व्यापारियों से बिजनेस करने के बाद अडानी ने जय भाई से कहा कि वह भी उनके साथ कोरिया जाना चाहते हैं. यह अडानी की पहली विदेश यात्रा थी.
भास्कर बताते हैं, "जय भाई बताते हैं कि जब अडानी कोरिया पहुंचा तो उसने वहां की जमीन को झुककर चूमा. वह जानता था कि उसके पैसे यहां बनने वाले हैं." कोरिया जाकर अडानी ने वहां प्लास्टिक निर्यात करने वालों से बात की और 200 टन प्लास्टिक भारत लाने का फैसला किया. भास्कर बताते हैं कि अडानी को इसके लिए पैसों का इंतजाम करने में भी बैंक से कठिनाई हुई, लेकिन उन्होंने किसी तरह पैसों का भी इंतजाम कर लिया.
भास्कर कहते हैं, "माल आने पर उसने ऐसा धमाल मचाया कि जो उसका ग्राहक नहीं था, वह भी बन गया. जिस भाव से उसने माल खरीदा था उसकी बराबरी करना किसी के लिए मुमकिन नहीं था. 20 टन फटाफट बिक गया. फिर 200 टन के बाद 2000 टन हुआ और फिर 5000 टन."
भास्कर बताते हैं कि अडानी ने अपने कॉम्पिटीशन को मात देने के लिए हमेशा लगभग ऐसा ही मॉडल अपनाया है. इस तरह वह देश और पूरा महाद्वीप के सबसे बड़े व्यापारी बन सके हैं.