गुजराती मतलब बिजनेस... पूरी दुनिया में यह कहावत पॉपुलर है और इस कहावत के बनने के पीछे सिर्फ अंबानी या अडानी नहीं हैं बल्कि और भी बहुत से नाम हैं जो भले ही देश के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में शामिल नहीं होते हैं लेकिन उनका कारोबार कई हजार करोड़ का है. इन गुजराती कारोबारियों में एक नाम है बिपिनभाई हडवानी का, जो Gopal Snacks के फाउंडर हैं. इस कंपनी की कहानी साल 1991 में गोपाल गृह उद्योग के नाम से शुरू हुई थी और आज 1300 करोड़ से ज्यादा पर पहुंच चुकी है.
पिता साइकिल पर बेचते थे नमकीन
राजकोट के एक गांव से संबंध रखने वाले बिपिनभाई एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता गांव में नमकीन की दुकान चलाते थे और घर पर बने पारंपरिक गुजराती नमकीन और स्नैक्स अपनी साइकिल पर रखकर गांव-गांव जाकर बेचते थे. स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद बिपिन के पिता चाहते थे कि बिपिन आगे पढ़ें और कॉलेज जाएं. लेकिन बिपिन के सपने अलग थे. वह राजकोट शहर जाकर बड़ा बिजनेस करना चाहते थे. Forbes India के मुताबिक, बेटे के सपने के बारे में जानकर उनके पिता ने उन्हें 4,500 रुपए दिए. बिपिन के पिता को लगा कि उनका बेटा शहर में पैसे खर्च करके घर लौट आएगा और उसका बिजनेस का शौक पीछे छूट जाएगा.
लेकिन यहां वह गलत थे क्योंकि बिपिन का यह सिर्फ शौक नहीं बल्कि सपना था कि वह बड़ा बिजनेस करें. उन्होंने राजकोट जाकर साल 1991 अपने रिश्तेदारों के साथ पारंपरिक गुजराती स्नैक्स की कंपनी, गोपाल गृह उद्योग की शुरुआत की. उनके इस वेंचर को अच्छा रिस्पॉन्स मिला और चार साल में ग्रोथ भी हो गई. लेकिन कुछ कारणों से उनके पार्टनर्स के साथ उनकी ज्यादा नहीं बन रही थी. क्योंकि बिपिन कुछ बड़ा करना चाहते थे लेकिन उनके पार्टनर्स की सोच अलग थी. तब बिपिनभाई के पिता ने उन्हें एक सलाह दी, "ज्यादा पैसा कमाना है तो दाम नहीं बिजनेस बढ़ाओ."
साल 1994 में की नई शुरुआत
1994 में बिपिनभाई ने पार्टनर्स से सलाह करके अपने पुराने बिजनेस को बंद किया और इससे उनके हिस्से में ढाई लाख रुपए आए. इन पैसे से उन्होंने अपने लिए राजकोट में घर खरीदा और एक बार फिर जीरो से Gopal Snacks की शुरुआत की. इस बार उनकी पत्नी, दक्षा उनके साथ खड़ी रहीं और बिजनेस में उनकी पार्टनर भी बनीं. पति-पत्नी ने घर से अपना काम शुरू किया. हालांकि, यह दूसरी पारी आसान नहीं थी लेकिन बिपिन और दक्षा के पास हार मानने का विकल्प ही नहीं था. उन्हें लगातार मेहनत करनी थी.
बिपिनभाई ने साइकिल पर राजकोट की गलियों के चक्कर लगाए, दुकानदारों, रिटेलर और डीलर्स से बात करके जाना की आखिर ग्राहकों के बीच क्या मांग है? उन्होंने अपने स्नैक्स के पैसे नहीं बढ़ाए बल्कि ग्राहकों की जरूरत और मांग के अनुसार प्रोडक्शन शुरू किया. चार साल तक लगातार मेहनत करने के बाद बिपिन और दक्षा ने शहर के बाहर जमीन खरीदकर अपना मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट लगाया. हालांकि, राह तब भी आसान नहीं थी लेकिन साल 2012 में उन्होंने कंपनी को 100 करोड़ के रेवेन्यू तक पहुंचा दिया.
"जो खाते हो वही खिलाना"
बिपिनभाई ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी सफलता में बहुत सी चीजों ने योगदान दिया. लेकिन सबसे ज्यादा योगदान था प्रोडक्ट्स का स्वाद और क्वालिटी. वह चिप्स, नमकीन से लेकर गाठिया, भाकरवड़ी जैसे स्नैक्स उपलब्ध कराते हैं. बिजनेस शुरू करते समय उनके पिता ने ही उन्हें यह सलाह दी थी कि ग्राहक को भी वहीं खिलाना जो आप खुद घर में खा सको. पिता की इस सलाह ने हमेशा उनका साथ दिया और आज इसलिए गोपाल स्नैक्स बड़ा ब्रांड है.
आज उनके गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में सात मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट्स हैं. गोपाल स्नैक्स 11 राज्यों में बिकता है और उनके पास 60 प्रोडक्ट्स हैं और 70 से ज्यादा देशों में उनके प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट होते हैं. उनके पास 750 डीलर्स और सात लाख रिटेलर्स का नेटवर्क है. यह गुजराती मार्केट में बालाजी के बाद दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है. कंपनी का IPO भी आ चुका है. लेकिन बिपिनभाई आज भी अपने पिता की दी सलाह को आधार बनाकर बिजनेस कर रहे हैं.