हरियाणा के लोग अक्सर कहते हैं कि जो स्वाद गांव में मिट्टी के चूल्हे के सामने बैठकर गर्म-गर्म रोटी चटनी और छाछ से खाने में है वह आपको किसी बड़े से बड़े होटल में भी नहीं मिलेगा. चूल्हे पर बनी रोटी, जिसमें घर पर बना घी थोक के भाव भरा जाता है, सिलबट्टे पर पिसी चटनी और नमक-जीरा डालकर बनाई गई छाछ, इसका मुकाबला दुनिया की महंगी से महंगी डिश नहीं कर सकती है. और इस स्वाद को परोस रही है गुरुग्राम में रहने वाली एक टीचर, सुमन बोक्कन.
मूल रूप से हरियाणा के हसनपुर गांव से ताल्लुक रखने वाली सुमन बोक्कन पेशे से टीचर हैं. वह गुरुग्राम के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती हैं. पढ़ाने के साथ-साथ सुमन अपना एक छोटा-सा फूड स्टार्टअप, 'रोटी चटनी छाछ' चला रही हैं. सुमन को हमेशा से खाना बनाकर खिलाने का शौक है. खाना भी वह कोई फैंसी नहीं बल्कि एकदम देसी बनाती हैं. लेकिन उनके इस देसी खाने न उन्हें इतना फेमस कर दिया है कि आज वह अपनी जॉब के साथ पार्ट-टाइम फूड बिजनेस कर रही हैं. साथ ही, आज की जनरेशन को शुद्ध खाने से जोड़ रही हैं.
अपने इस सफर के बारे में सुमन ने GNT Digital से बातचीत करते हुए बताया, "मेरा इस काम को करने का उद्देश्य आज की पीढ़ी को शुद्ध और देसी खाने से जोड़ना है. आजकल के बच्चे पिज़्ज़ा, बर्गर खाकर बड़े हो रहे हैं, उन्हें मैं हमारे पारंपरिक और शुद्ध खाने से जोड़ना चाहती हूं. आज बहुत से बच्चे मेरे पास खाना खाने आते हैं और शौक से यह सादा खाना खाते हैं तो संतुष्टि मिलती है."
"मां चली गई मिट्टी के बर्तन रह गए"
सुमन बताती हैं, "मैंने अपने घर की छत पर मिट्टी का चुल्हा रखा हुआ है और यहीं पर मैं अपने परिवार को खाना बनाकर खिलाती हूं. मेरे घर में दूध भी गांव से आता है और इससे घर पर ही मेरी सास दही, घी और छाछ बनाती हैं. मैंने हमेशा अपने बच्चों को देसी खाने से जोड़े रखा ताकि उनकी सेहत अच्छी रहे और वे अपनी जड़ों से जुड़े रहे."
हालांकि, अब सवाल है कि उनका यह शौक बिजनेस में कैसे बदला? इस बारे में सुमन ने बताया कि कोरोना महामारी के समय उनकी मां को कैंसर डिटेक्ट हुआ. उन्होंने कहा कि मां के पास ज्यादा समय नहीं बचा था लेकिन वह और उनका परिवार अपनी तरफ से कोशिश करनी चाहता था. इसलिए उन्होंने रिसर्च करके कैंसर के कारण पता करने की कोशिश की और एक जगह उन्होंने पढ़ा कि एल्यूमिनियम के बर्तनों में खाना बनाने से भी कैंसर होने की संभावना रहती है.
सुमन ने कहा, "इसके बाद हमने मिट्टी के बर्तनों की तलाश शुरू की और एक जगह से बर्तन लाकर खाना बनाना शुरू किया. मिट्टी के बर्तनों में बने खाने का स्वाद एकदम ही अलग था. पूरे परिवार मे इसे महसूस किया. खासकर कि बच्चों को स्वाद बहुत अच्छा लगा. उस समय कैंसर मेरी मां तो चली गई लेकिन मिट्टी के बर्तन रह गए."
सोशल मीडिया पर फेमस हुई- रोटी चटनी छाछ
अपने सफर के बारे में बात करते हुए सुमन के बताया कि जब उन्होंने इन मिट्टी के बर्तनों में चूल्हे पर खाना बनाया तो यह और ज्यादा स्वादिष्ट बना. अपने बच्चों की डिमांड पर लगभग हर रोज मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने लगीं और साथ में, सिलबट्टे पर चटनी बनाती थीं. शौक-शौक में उन्होंने अपने सोशल मीडिया स्टेट्स पर चूल्हे और मिट्टी के बर्तनों के साथ खाने की थाली की तस्वीरें शेयर कीं. इन तस्वीरों को देखकर उनके स्कूल के सहकर्मियों ने ही उनसे इस बारे में पूछना शुरू कर दिया.
सुमन कहती हैं कि उनके साथ पढ़ाने वाल दूसरे टीचर्स वीकेंड पर अपने परिवार के साथ उनके घर खाना खाने आने लगे. इन टीचर्स ने अपने और जानन वालों को उनके बारे में बताया तो लोग उनके पास से खाना ऑर्डर करने लगे. सुमन का कहना है कि उन्होंने बिजनेस तो कभी सोचा ही नहीं था लेकिन लोगों की डिमांड पर उन्हें इसे बिजनेस बनाना पड़ा. और बस इस तरह से शुरू हो गया उनका Terrace Kitchen Dhaba- रोटी चटनी छाछ.
जॉब के साथ फूड स्टार्टअप
अब बात आती है कि वह जॉब के साथ इस काम को कैसे मैनेज कर रही हैं. सुमन ने बताया कि उनकी स्कूल टाइमिंग सुबह 8 बजे से 4 बजे तक है. सप्ताह के वर्किंग दिनों में सुमन घर पहुंचकर फ्रेश होने के बाद 4:30 बजे से अपना काम शुरू करती हैं. उन्होंने अपनी मदद के लिए एक हेल्पर को रखा है जो उनके स्कूल से आने तक सब्जियां काटना, आटा लगाना जैसे कामों को करके रखती हैं. सुमन की सास घर में ही दही, छाछ और घी बनाती हैं.
सुमन हर दिन का मेनू शेयर करती हैं और लोग व्हाट्सएप पर उन्हें एक दिन पहले या सुबह में ऑर्डर दे देते हैं. शाम को लगभग डेढ़-दो घंटे में उनका खाना तैयार हो जाता है. शाम 6-6:30 बजे से वह अपने ऑर्डर्स की डिलीवरी शुरू कर देती हैं. उन्होंने बताया कि डिलीवरी के लिए वह उबर पैकेजिंग डिलीवरी सर्विस इस्तेमाल करती हैं. वीकेंड में लोग उनके घर आकर खाना खा सकते हैं. बात अगर ऑर्डर्स की करें तो वह हर दिन 10-12 थाली ऑनलाइन डिलीवर करती हैं और वीकेंड पर उनके पास इससे ज्यादा लोग खाना खाने आते हैं.
क्या रहता है उनका मेनू
सुमन का कहना है कि उनके बिजनेस की खासियत उनका सादा मेनू और इस सादे खाने का असाधारण स्वाद है. उनके मेनू में एक दाल, एक सीजनल सब्जी, चूल्हे पर बनी रोटियां, चटनी, मक्खन और छाछ रहती है. हर दिन वह अलग-अलग दाल और सब्जियां बनाती हैं. सप्ताह में किसी दिन पनीर तो किसी दिन कढ़ी पकौड़ा जैसे ऑप्शन्स भी रखती हैं. रोटियों में लोगों के पास विकल्प होते हैं- गेहूं, चना-गेहूं मिक्स, रागी, ज्वार, बाजरा आदि. फिलहाल, वे सिर्फ गुरुग्राम के सेक्टर 46 के आसपास ही ऑनलाइन डिलीवरी करती हैं. हालांकि, उनके घर जाने के लिए पहले से बुकिंग की जा सकती है.
समुन बताती हैं कि बहुत से लोग तो उनसे सप्ताह में तीन-चार बार ऑर्डर करते हैं तो कोई हर वीकेंड उनके घर खाना खाने आता है. सबसे ज्यादा खुशी उन्हें इस बात की है कि जिन बच्चों को वह कभी फास्ट फूड ही खाते देखती थीं वही बच्चे उनके यहां आकर शौक से खाना खाते हैं. सुमन ने बताया, "स्कूल में मैं कई बार देखती हूं कि बच्चों के टिफिन कोई पैकेज्ड या प्रोसेस्ड खाना होता है जैसे मैगी, बर्गर या फ्राइड स्नैक्स आदि. यह देखकर मुझे बहुत बुरा लगता है कि हम बच्चों को क्या खिला रहे हैं. इसलिए पैसे से भी ज्यादा मेरा उद्देश्य जितने बच्चों को हो सके अच्छा खिलाना है."
अपनी सफलता का श्रेय सुमन अपने परिवार को देती हैं. उनका कहना है कि शुरुआत में घरवालों को लगता था कि जॉब के साथ यह सब करने की क्या जरूरत है लेकिन जब लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स देखा तो सभी उनकी मदद करते हैं. उनका कहना है कि संयुक्त परिवार में रहने का यही फायदा है कि आप किसी भी काम में अकेले नहीं पड़ते हैं. अंत में वह बस यही मैसेज देती हैं कि महिलाओं को अपने बच्चों को जितना हो सके घर का बना खाना खिलाने की कोशिश करनी चाहिए. अपने बच्चों को वह खाना बनाकर खिलाएं जो आपने अपने बचपन में खाया है.
रोटी चटनी छाछ से देसी खाना ऑर्डर करने के लिए या उनके घर जाकर खाने के लिए 09811764099 पर मैसेज कर सकते हैं.
तस्वीर साभार: सुमन बोक्कन