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Milk Processing Business: सरकारी नौकरी छोड़ी तो लोगों ने बनाया मजाक, आज वही किसान दूध की प्रोसेसिंग से कमा रहा है करोड़ों

आज हम आपको बता रहे हैं हरियाणा के सोमबीर बूरा के बारे में, जिन्होंने अपनी मेहनत और ईमानदारी से Milk Processing Business में सफलता हासिल की है.

Sombir Boora success story Sombir Boora success story
हाइलाइट्स
  • ग्रेजुएशन तक पढ़े हैं सोमबीर बूरा

  • किसान परिवार के बेटे की बड़ी सफलता

  • दूध की प्रोसेसिंग कर खड़ा किया कारोबार

कहते हैं कि गलतियों से अगर सीखा जाए तो ये आपकी सबसे बड़ी गुरु होती हैं. और इस कहावत को सच कर दिखाया है हरियाणा के एक किसान ने, जो आज एक उद्यमी बन चुके हैं. यह कहानी है हरियाणा में भिवानी के रोढ़ा गांव के रहने वाले सोमबीर सिंह की, जो आज हम सबके लिए मिसाल हैं. 

ग्रेजुएशन तक पढ़े सोमबीर सिंह आज न्यू किसान डेयरी के नाम से आज अपनी डेयरी और प्रोसेसिंग यूनिट चला रहे हैं. वह लोगों को दूध, दही, पनीर, मावा से लेकर कई तरह की मिठाइयां उपलब्ध करा रहे हैं. उनके गांव के आसपास के इलाकों और हिसार शहर में उनके दूध से लेकर मिठाइयां तक, सबकुछ बहुत फेमस है क्योंकि उनकी हर चीज में लोगों को शुद्धता और गुणवत्ता मिलती है. 

आज भारत में जहां ज्यादातर डेयरी फार्म असफल हो रहे हैं और लोगों को नुकसान हो रहा है, वहीं सोमबीर लगातार अपने काम को आगे बढ़ा रहे हैं. GNT Digital से बात करते हुए सोमबीर सिंह ने कहा कि आज वह जहां भी हैं उसकी वजह उनकी गलतियां हैं जिनसे उन्होंने सीखा और आगे बढ़ते रहे. 

सोमबीर बूरा

सरकारी नौकरी छोड़ शुरू की खेती
किसान परिवार में जन्मे सोमबीर ने अपनी पढ़ाई के बाद शिक्षा बोर्ड में सरकारी नौकरी हासिल की. उनके पिता खेती करते थे. सोमबीर की नौकरी भी अच्छी चल रही थी. हालांकि, उनके दफ्तर में एक ऐसा वाकया हुआ कि जीवन में सबकुछ बदल गया. दरअसल, एक दिन उनके सीनियर ने उन्हें डांटा और '4th क्लास इंसान' कहकर सोमबीर के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचाई. जबकि सोमबीर की कोई गलती नहीं थी. ईमानदारी से काम करने के बाद भी जब सोमबीर को अपमान मिला तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी. 

सोमबीर ने कहा, "उस समय मैंने नहीं सोचा था कि मैं क्या करूंगा. बस तैस में मैंने नौकरी छोड़ी दी और अपने पिताजी के साथ खेती में लग गया. हालांकि, इस कारण मुझे अपने परिवार और आस-पड़ोस के लोगों से ताने सुनने को मिले. जब मेरे अपने परिवार में मुझे 'नालायक' कहा जाने लगा तब मैंने तय किया कि मैं अपने प्रति इस धारणा को बदलकर रहुंगा."

सोमबीर ने जो ठाना वह किया भी. उन्होंने पारंपरिक खेती करने के बाद बहुत सालों तक जैविक खेती भी की. खेती में भी उन्होंने अच्छा मुनाफा कमाकर खुद को साबित किया. जो लोग उन्हें ताना दे रहे थे, वे भी उनसे सीखने लगे. लेकिन यह सोमबीर की मंजिल नहीं थी. उन्होंने कुछ भी तय नहीं किया था बस वह लगातार मेहनत करते रहे और अपने लिए नया रास्ता खोलते रहे. 

पशुपालन से शुरू हुआ डेयरी का काम
उन्होंने आगे कहा कि खेती करते-करते उन्होंने कुछ पशु पालना शुरू किया. धीरे-धीरे उनके मवेशियों की संख्या बढ़ गई और वह दूध का काम करने लगे. वह अपना दूध कंपनियों को देते थे. लेकिन उन्होंने देखा कि जितनी वह मेहनत कर रहे हैं उतनी बचत नहीं हो रही है. सोमबीर हमेशा से ही ईमानदारी और गुणवत्ता से काम करने में विश्वास करते हैं. जब उन्होंने पशु पाले तो उनके लिए भी वह पोषण से भरपूर चारा खुद तैयार करते थे. 

लेकिन उनके दूध की गुणवत्ता और उनकी लागत के मुताबिक आउटपुट उन्हें नहीं मिल रहा था. तब उन्होंने इसका कारण तलाशना शुरू किया. वह बताते हैं, "मैंने मार्केट में देखा कि जिस दूध को कंपनियां हमसे कम दाम में खरीद रही हैं उसे ही आगे ग्राहकों तक बहुत ज्यादा दाम में बेचा जाता है. और उनका काम सिर्फ इतना है कि वे हमारे दूध को पैकेट में पैक करके बेचते हैं."

प्रोसेसिंग यूनिट में पैक होता दूध

सोमबीर ने इस आइडिया को अपनाया और अपने खेतों में ही प्रोसेसिंग यूनिट शुरू कर दी. हालांकि, यह इतना आसान नहीं था. सोमबीर का कहना है कि आज डेयरी फार्म्स के असफल होने का सबसे बड़ा कारण है कि लोग पूरी रिसर्च नहीं करते हैं और ज्यादातर लोग सोचते हैं कि पैसे इंवेस्ट करने से मुनाफा मिल जाएगा. जबकि सफल होने के लिए सही तरीके और संयम, दोनों ही बहुत ज्यादा जरूरी हैं. उन्होंने अपना काम शुरू करने से पहले देश के अलग-अलग डेयरी फार्म मालिकों से बात की. वह उनसे भी मिले जो असफल रहे और उन्हें भी जाना जो आज सफल हैं. 

हर महीने 10 हजार लीटर दूध की प्रोसेसिंग 
साल 2017 में सोमबीर ने दूध की प्रोसेसिंग के काम को अच्छे से समझकर अपना काम शुरू किया. इस काम में उन्होंने अपने दूध की क्वालिटी को कम करने की बजाय उन जगहों पर लागत कम की जहां आसानी से हो सकती थी. उन्होंने अपने खेतों में यूनिट लगाई ताकि किराए की जगह न लेनी पड़े. इस प्रोसेसिंग यूनिट में उन्होंने ज्यादातर उपकरण और मशीने सेकंड हैंड इस्तेमाल की ताकि उनकी लागत बजट में रहे. उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे प्रोसेसिंग यूनिट में काम बढ़ने से उन्होंने पशुपालन छोड़कर, दूसरे किसानों के यहां से दूध खरीदना शुरू कर दिया. 

सोमबीर ने अपना काम 10 लीटर दूध से शुरू किया था. उन्होंने अपने काम के बारे में बताया कि पहले उन्होंने दूध को पैक करके मार्केट करना शुरू किया. वैसे तो दूध की कई बड़ी ब्रांड मार्केट में हैं लेकिन लोगों ने उनके दूध को तवज्जो दी क्योंकि वह लोगों को ताजा और क्वालिटी दूध दे रहे हैं. उन्होंने बताया कि बड़े ब्रांड्स बहुत दूर-दूर से दूध इक्ट्ठा करते हैं और इस दूध को उनके अलग-अलग चिलिंग सेंटर पर भेजा जाता है. इसके बाद दूध को मुख्य सेंटर पर पहुंचते-पहुंचते कई दिन का समय लग जाता है और इतने दिन तक दूध को चलाने के लिए दूध में प्रिजर्वेटिव्स भी मिलाए जाते हैं. 

उनकी प्रोसेसिंग यूनिट

लेकिन सोमबीर ने इस कई दिन की प्रक्रिया को चंद घंटों में बदल दिया. वह सुबह पशुपालकों से दूध इकट्ठा करके अपनी प्रोसेसिंग यूनिट पर लाते हैं जहां मात्र तीन घंटे में बिना किसी मिलावट के दूध को पैक किया जाता है और फिर अगले दो घंटे में दूध को ग्राहकों तक पहुंचा दिया जाता है. उनका कुल समय इस सबमें मात्र पांच घंटे रहता है. जब लोगों को दूध की ताजा क्वालिटी मिली तो उनके दूध की मांग बढ़ने लगी और देखते ही देखते उनका काम भी बढ़ गया. 

एक गलती से शुरू हुआ मिठाई का बिजनेस 
सोमबीर कहते हैं कि दूध के बाद मिठाइयों का काम शुरू होने के पीछे एक गलती थी. उन्होंने बताया कि एक दिन उनके पास 200 लीटर दूध बच गया और उनकी गाड़ी मार्केट जा चुकी थी. वह चाहते तो दूध को ठंड़े तापमान में रखकर दूसरे दिन ग्राहकों को दे सकते थे लेकिन सोमबीर के लिए काम में ईमानदारी सबसे पहले है. इसलिए उन्होंने तय किया कि इस दूध का मावा बना लिया जाए जिसे वह और उनके स्टाफ के लोग घर में इस्तेमाल कर लेंगे. 

इसके लिए उन्होंने एक टेंट हाउस से बर्तन आदि मंगवाकर काम शुरू किया. प्रोसेसिंग यूनिट पर जब मावा बनाने का काम चल रहा था तो बहुत से जानने वाले लोग उनसे मेल-मिलाप के लिए आते रहे. जो भी आता, उनसे पूछता कि क्या हो रहा है तो वह बताते कि मावा बना रहे हैं. लोगों ने यह सुनते ही मावा का ऑर्डर देना शुरू कर दिया. सोमबीर का कहना है कि इस तरह से ही इतने ऑर्डर आ गए कि उनके अपने लिए जरा भी मावा नहीं बचा. और दो-तीन दिन बाद लोग उन्हें मावा के लिए फोन करने लगे. इस तरह से उन्होंने मावा बनाना शुरू किया और फिर धीरे-धीरे लोगों की मांग पर मिठाइयों का काम शुरू हो गया. 

आज उनकी प्रोसेसिंग यूनिट से 3000 से ज्यादा ग्राहक जुड़े हैं और 23 लोगों को उन्होंने रोजगार दिया हुआ है. सोमबीर कहते हैं कि उनका सालाना टर्नओवर आज करोड़ों में है. लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे 22 सालों की कोशिशें और मेहनत है. अंत में वह लोगों के लिए सिर्फ यही सलाह देते हैं कि सिर्फ नौकरी के पीछे न भागें. छोटा ही सहीं लेकिन अपना काम करें और धैर्य रखें क्योंकि सफलता रातोंरात नहीं मिलती है.