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रिकॉर्ड स्तर पर खुदरा महंगाई दर, जानिये क्या होगा आपके रहन-सहन पर असर

India Inflation Rate 2022: खुदरा महंगाई दर बढ़ने या कम होने से आपकी जेब पर सीधा असर पड़ता है. अगर यह बढ़ता है तो खाने पीने से लेकर निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होने वाले सामानों की कीमत भी बढ़ जाती है. खाने पीने के सामान के लिए आपको पहले से अधिक कीमत चुकानी पड़ती है.

खुदरा महंगाई दर बढ़ने से सीधे-सीधे आपकी जेब पर असर पड़ता है खुदरा महंगाई दर बढ़ने से सीधे-सीधे आपकी जेब पर असर पड़ता है
हाइलाइट्स
  • खुदरा महंगाई दर जनवरी में 6.01% पहुंची

  • खुदरा महंगाई दर बढ़ने से सीधे-सीधे आपकी जेब पर पड़ता है असर

देश में खुदरा महंगाई दर(retail inflation rate) नई ऊंचाई पर पहुंच गई है. सरकार की तरफ से जारी डाटा के मुताबिक जनवरी में यह 6.01 फीसदी तक पहुंच गई है. यह पिछले सात महीनों में उच्चतम स्तर पर है और यह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के टारगेट रेंज से एक बार फिर ऊपर पहुंच गया है. मतलब ये कि आरबीआई की तरफ से सालाना आधार पर तय किए गए मुद्रास्फीति से भी खुदरा महंगाई दर ज्यादा हो गया है. दिसंबर में खुदरा महंगाई दर 5.66% थी. आखिर ये खुदरा महंगाई दर क्या है और इसके बढ़ने-घटने से आपकी जेब पर किस तरह से असर होता है? आइये इसे समझते हैं.

खुदरा महंगाई दर को ऐसे समझें-
खुदरा महंगाई दर को जानने के लिए WPI यानि होलसेल प्राइस इंडेक्स को भी साथ-साथ समझना होगा. होलसेल प्राइस इंडेक्स बाजार में सामान की औसत कीमतों में हुए बदलाव को मापता है. थोक बाजार मतलब कारोबारी या कंपनियों की तरफ से जो बड़ी मात्रा में सामान की खरीदारी की जाती है. होलसेल प्राइस इंडेक्स से बाजार में उपलब्ध सामान की मांग और आपूर्ति का पता चलता है. थोक यानि की एक बार में बड़ी मात्रा में किसी सामान का रेट क्या है. उदाहरण के तौर पर ऐसे समझ सकते हैं कि कोई कारोबारी 100 क्विंटल दाल या चावल खरीदता है तो वह उसे कम रेट में खरीदेगा जबकि उसे खुदरे में बेचेगा तो दाल की कीमत ज्यादा हो जाएगी. रिजर्व बैंक की यह जिम्मेदारी होती है कि थोक महंगाई दर और खुदरा महंगाई दर में ज्यादा अंतर नहीं हो.

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एक ग्राहक के तौर पर देखें तो हम थोक खरीदारी का हिस्सा नहीं होते हैं. कारोबारी उत्पादों को बड़े पैमाने पर खरीदते हैं और हमें खुदरे में बेचते हैं. इसी से उनका मुनाफा होता है. हम जो भी सामान खरीदते हैं और उसके लिए जो कीमत चुकाते हैं, उसके बदलाव को सीपीआई यानि कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स मापता है. इसी से देश की खुदरा महंगाई दर के बारे में जानकारी मिलती है. मतलब लोग किसी उत्पाद की जितनी कीमत चुका रहे हैं उसका रेट कितना घटा या बढ़ा, यह कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स से पता चलता है. एक बात और साफ है कि अगर थोक महंगाई महंगाई दर बढ़ेगी तो खुदरा मंगाई दर का बढ़ना लगभग तय ही रहता है. जाहिर है जब होलसेल दाम बढ़ेंगे तो खुदरा कीमतें भी बढ़ जाएंगी.

आपकी जेब पर क्या होगा असर?
अब इसे सीधे-सीधे आपकी जेब से जोड़कर देखते हैं. खुदरा महंगाई दर बढ़ने या कम होने से आपकी जेब पर सीधा असर पड़ता है. अगर यह बढ़ता है तो खाने पीने से लेकर निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होने वाले सामानों की कीमत भी बढ़ जाती है. खाने पीने के सामान के लिए आपको पहले से अधिक कीमत चुकानी पड़ती है. पिछले दिनों हुई मौद्रिक नीति समिति की बैठक में रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट नहीं बढ़ाने का फैसला किया गया था. लेकिन, जिस तरह से खुदरा महंगाई दर बढ़ी है उससे अगली मौद्रिक नीति की समीक्षा में ब्याज दरें बढ़ सकती हैं. खुदरा महंगाई दर से बढ़ने से लोन की ईएमआई कम होने की उम्मीद काफी कम हो जाती है. सरकार ने आरबीआई को यह लक्ष्य दे रखा है कि खुदरा महंगाई दर 4 से 6 फीसदी ही हो. लेकिन, इस बार यह टारगेट से भी आगे निकल गया है.