भारत का लक्ष्य रुपए को इंटरनेशनल करेंसी बनाने का है. इसके लिए आरबीआई के कार्यकारी निदेशक राधा श्याम राठो की अगुवाई वाली कमेटी ने कई शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म सुझाव दिए हैं. इसमें सीमा पार व्यापारिक लेनदेन के लिए रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट का इंटरनेशनल इस्तेमाल करना, भारतीय रुपए को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के एसडीआर समूह में शामिल करना और घरेलू रुपए में विदेश लेनदेन की भारतीय बैंकों को मंजूरी देना शामिल है.
आरबीआई के इंटर डिपार्टमेंटल ग्रुप के आईडीजी ने कहा कि भारत तेजी से विकास करने वाले देशों में बना हुआ है और विपरीत परिस्थितियों में लचीलापन दिखा रहा है. रुपए में इंटरनेशनल मुद्रा बनने की क्षमता है.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पश्चिमी देशों के लगाए गए आर्थिक बैन से कई देश सतर्क हो गए हैं. अब इंटरनेशनल लेनदेन के लिए अमेरिकी डॉलर का विकल्प खोजने की मांग बढ़ रही है. ऐसे में इस कमेटी की सिफारिश काफी महत्वपूर्ण है.
रुपए के इंटरनेशनलाइजेशन का क्या मतलब है-
इंटरनेशनलाइजेशन एक ऐसा प्रोसेस है, जिसमें क्रॉस-बॉर्डर ट्रांजेक्शन में रुपए का इस्तेमाल बढ़ाना शामिल है. इसमें इंपोर्ट और एक्सपोर्ट कारोबार के अलावा दूसरे करेंट अकाउंट ट्रांजेक्शन के लिए रुपए का बढ़ावा देना शामिल है. करेंसी के इंटरनेशनलाइजेशन का सीधा संबंध देश की आर्थिक प्रगति से है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इसके होने से करेंसी की बिना किसी रोक के फंड्स को क्रॉस बॉर्डर ट्रांसफर किया जा सकता है.
भारत में अभी सिर्फ करेंट अकाउंट पर करेंसी की फुल कन्वर्टिबिलिटी की इजाजत है. लेकिन इंटरनेशनलाइजेशन के बाद कैपिटल अकाउंट पर भी इसकी इजाजत होगी. फिलहाल दुनिया में डॉलर, यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग मुख्य रिजर्व करेंसी हैं. चीन भी अपनी मुद्रा को इंटरनेशनल करेंसी बनाने में जुटा है, लेकिन उसको इसमें अभी तक लिमिट सफलता ही मिल पाई है.
डॉलर को मिलता है ऑप्शन नहीं होने का फायदा-
इस समय दुनिया में सबसे मजबूत अमेरिकी डॉलर है. दुनिया के ज्यादातर देश इंटरनेशनल लेनदेन के लिए अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल करते हैं, इससे अमेरिका को कई फायदे होते हैं. फिलहाल दुनिया में डॉलर का कोई उचित विकल्प नहीं है, जिसका फायदा अमेरिकी डॉलर को होता है. इंटरनेशनल मार्केट में अमेरिकी डॉलर को फायदा मिलने के कई कारण हैं, इसमें अमेरिकी अर्थव्यवस्था का बड़ा होना, उनके वित्तीय नेटवर्क की पहुंच, यूएस फाइनेंशियल मार्केट की लिक्विडिटी और डेप्थ शामिल है. अमेरिकी डॉलर को विकल्प नहीं होने का भी फायदा मिलता है.
रूस पर बैन से सतर्क हो गए हैं कई देश-
आरबीआई के कमेटी के मुताबिक चीनी करेंसी रेनमिन्बी अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती है. हालांकि चीनी करेंसी अमेरिकी डॉलर को कितना टक्कर दे पाती है, ये अमेरिका और चीन की भविष्य की नीतियों पर निर्भर है. इसमें दोनों चीन की अर्थव्यवस्था और इसकी फाइनेंशियल सिस्टम की लॉन्ग टर्म लचीलापन, ट्रांसपरेंसी, खुलापन और स्टेबिलिटी की भी अहम भूमिका होगी.
रूस की सरकार, उसके पब्लिक सेक्टर और उनसे जुड़े व्यक्तियों पर लगाए गए बैन से कई देश सतर्क हो गए हैं. उनका सोचना है कि अगर पश्चिमी देश उनके खिलाफ बैन लगाते हैं तो उनको बड़ा नुकसान हो सकता है.
चीन रूस और कुछ दूसरे देश अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व वाली ग्लोबल करेंसी सिस्टम पर मुखरता से सवाल उठा रहे हैं. ये देश अमेरिकी डॉलर और उसके फाइनेंशियल मार्केट पर अपनी निर्भरता के अलावा SWIFT मैसेजिंग सिस्टम पर आधारित इंटरनेशनल पेमेंट मैकेनिज्म पर अपनी निर्भरता कम करना चाहेंगे. आरबीआई की कमेटी का मानना है कि भारत के लिए डॉलर और यूरो के विकल्प तलाशना जारी रखना जरूरी है.
रुपए के इंटरनेशनलाइजेशन का फायदा-
अगर रुपए का इंटरनेशनलाइजेशन होता है तो इससे भारतीय कारोबार के लिए करेंसी रिस्क कम होगा. करेंसी की अस्थिरता से सुरक्षा होगी तो इससे व्यापार की लागत में कमी होगी. इसके अलावा भारतीय कारोबार का इंटरनेशनल लेवल पर बढ़ने की संभावना बढ़ेगी. रुपए कि इंटरनेशनलाइजेशन से विदेशी मुद्रा भंडार रखने की जरूर कम होगी. जब विदेशी मुद्रा भंडार पर निर्भरता कम होगी तो भारत पर बाहरी झटकों का असर कम होगा. जैसे-जैसे रुपए का इस्तेमाल बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे भारतीय कारोबार की सौदेबाजी की पॉवर में सुधार होगा. भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और भारत का कद और सम्मान बढ़ेगा.
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